लखनऊ (ब्यूरो)। कहा जाता है कि बच्चों को अच्छे संस्कार देने का काम जहां एक मां बखूबी करती है, तो वहीं उन बच्चों पर आने वाली हर मुसीबत पर पिता एक मजबूत ढाल बनकर उनकी हिफाजत करता है। उनकी सलाह और अनुभव हर कदम पर बच्चों की मदद करता है और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है, जिसके चलते न सिर्फ वे खुद समाज में अपना एक खास मुकाम हासिल करते हैं बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा बनकर उभरते हैं। पेश है इस फादर्स डे पर समाज के लिए प्रेरणा बनीं कुछ ऐसी ही कहानियों पर अनुज टंडन की स्पेशल रिपोर्ट

'अच्छा सोचो, अच्छा करो' का मिला मंत्र

मैं आज जो कुछ भी हूं, अपने पिता की दी हुई सीख की वजह से ही हूं। बचपन में कई आर्थिक दिक्कतें थीं, लेकिन उन्होंने कभी इस बात का एहसास नहीं होने दिया। मेरी पढ़ाई और मेरे आत्मविश्वास में उनका बड़ा योगदान रहा है। दूसरों की मदद करना भी मैंने उन्हीं से सीखा है। मेरे फादर स्व। बद्रीनारायण सिंह का निधन 2009 में हो गया था, पर उनकी एक सीख कि 'अच्छा सोचिए, अच्छा कीजिए' और जितना हो सके दूसरों की मदद कीजिए, का गुरुमंत्र आज भी मेरे काम आ रहा है।

-चंद्र भूषण सिंह, कमिश्नर, परिवहन

परिवार में एक अधिकारी होना चाहिए

मेरा गांव अमेठी के कटारी में है। मेरे फादर चंद्रमा प्रसाद बच्चों के लिए स्कूल चलाते हैं। जब हम लोग गांव में रहते थे तो काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। पर मेरे पिता हमेशा यही कहते थे कि भले ही मैं बाहर नहीं निकल सका, लेकिन तुम पढ़ाई के लिए बाहर जरूर निकलना। फिर चाहे प्रयागराज या दिल्ली ही क्यों न जाना पड़ा। वह हमेशा मुझसे कहते थे कि हमारे परिवार में कोई बड़ा अधिकारी नहीं है इसलिए तुम आईएएस बनकर परिवार का नाम रोशन करो। उनके इसी सीख और सपने को आत्मसात कर मैं पढ़ाई के लिए बाहर निकला, दिल्ली जाकर तैयारी की और उनका सपना पूरा करते हुए आईएएस अधिकारी बना। मेरे पिता हमेशा कहते हैं कि कुछ अच्छा करने के लिए सपना जरूर देखना चाहिए और उसे पूरा करने के लिए पूरी मेहनत और लगन से काम करना चाहिए। उनकी यही सीख मुझे आज भी आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।

-डॉ। हरिओम, प्रमुख सचिव, समाज कल्याण विभाग

पिता ने ही सबकुछ सिखाया

हम लोग गांव में रहते थे। उस समय घर में न तो टीवी था और न ही रेडिया, इसलिए क्रिकेट आदि क्या होता है यह सब मुझे पता तक नहीं था। पर जब मेरे फादर ने यह सब देखा तो उन्होंने मुझे इसके बारे में विस्तार से बताया। मेरे फादर स्व। शंकर कुमार सेन शर्मा पेशे से इंजीनियर थे। उन्होंने मुझे लाइफ में हमेशा डिसिप्लिन और इंटिग्रिटी के साथ जीना सिखाया, जिसे मैं आज तक फॉलो करता हूं। साथ ही दूसरों की हर संभव मदद करने का पाठ भी पढ़ाया। यही सीख अब मैं अपने बच्चों को भी देता हूं। एक बच्चे की लाइफ में फादर का महत्व सबसे अधिक होता है।

-पार्थ सारथी सेन शर्मा, प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य विभाग

फादर से मिला डिसिप्लिन, हार्ड वर्क का मंत्र

मेरे फादर स्व। राम प्रसाद धीमन हाई स्कूल के बच्चों को पढ़ाते थे। उनको हर कोई प्रोफेसर साहब कहता था। वह गरीब बच्चों को फ्री में पढ़ाते थे। उनको देखकर ही हम लोगों ने भी दूसरों की मदद करना बचपन से ही सीखा। इसके अलावा, उनसे तीन बातें-डिसिप्लिन, हार्ड वर्क और इंटिग्रिटी सीखी, जिससे मैं कभी समझौता नहीं करता हूं। उसी की बदौलत आज मैं यहां तक पहुंच सका हूं। मेरे फादर कभी डंडा लेकर पीछे नहीं पड़े। उनको काम करता देख हम भी काम करते रहते थे।

-पद्मश्री प्रो। आरके धीमन, डायरेक्टर, संजय गांधी पीजीआई