- राजधानी में कई हिंदू भी घरों में रखते हैं ताजिया, मनाते हैं मातम

LUCKNOW: मुहर्रम के माह में मुस्लिम समाज में मातम और मजलिसों का दौर चलता है लेकिन राजधानी की तमाम हिंदू भी गंगा-जमुनी तहजीब को आगे बढ़ाते हुए न सिर्फ घरों में ताजिया रखते हैं, बल्कि मुहर्रम ठीक उसी तरह मनाते हैं, जिस तरह शिया मुसलमान। आइए जानते हैं, कुछ ऐसे ही लोगों के बारे में

इमाम हुसैन में आस्था

मैं बचपन से ही मुहर्रम में शरीक हो रहा हूं। इसके अलावा इमाम हुसैन की शान में नोहा ख्वानी करता व पढ़ता हूं। प्रदेश में कई जगह इसे पढ़ने के लिए भी जाता हूं। मेरी इमाम हुसैन में गहरी आस्था है। मुझे कभी लगा ही नहीं कि मैं एक हिंदू होकर मुहर्रम क्यों मना रहा हूं। जितनी श्रद्धा मेरी अपने धर्म को लेकर है, उतनी ही दूसरे धर्म को लेकर भी है।

ऋषि पांडे

खुद की एक अंजुमन बना रखी है

मुहर्रम के मातम और जुलूसों में शामिल होता हूं और खुद की एक अंजुमन भी बना रखी है। अंजुमन में जितने भी लड़के हैं, वे सभी जुलूस में भी हिस्सा लेते हैं। मैं मजलिस में शामिल होता हूं और पढ़ता भी हूं। इस बार जुलूस न निकलने से मायूसी है, लेकिन यही दुआ है कि कोरोना जल्द खत्म हो। लोग कर्बला के जीवन को खुद में उतारें और अच्छी संगत करें।

राजू पांडे

घर पर रखते हैं ताजिया

इमाम हुसैन से बीमारी से ठीक होने की मन्नत मांगी थी और मैं ठीक हो गया। इसके बाद उन पर और भी बढ़ गई। मैं घर पर ताजिया रखता हूं। हर साल 10 दिन का मातम मनाता था, लेकिन इस बार मजलिस और जुलूस न होने से निराश हूं। सरकार को कुछ छूट तो देनी चाहिए थी। मुहर्रम के दौरान हम हर प्रोटोकॉल को पूरी तरह मानेंगे।

राहुल सिंह