लखनऊ (ब्यूरो)। एक तरफ जहां गोमती में नालों का गिरना बदस्तूर जारी है, वहीं दूसरी तरफ गोमा के आंचल में वेस्ट के ढेर भी समाते जा रहे हैैं। समितियों के सफाई अभियान में इस भयावह सच को देखा जा सकता है। आलम यह है कि गोमती का कोई भी घाट हो, एक बार में जो वेस्ट बाहर निकलता है, उसमें 50 फीसदी वेस्ट प्लास्टिक बेस्ड होता है। इससे खुद अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्लास्टिक की वजह से गोमा का जल कितना जहरीला हो रहा है।

लगातार बढ़ रहा प्लास्टिक वेस्ट

समितियों की ओर से जो सफाई अभियान चलाया जाता है, उसमें 50 से 60 फीसदी प्लास्टिक वेस्ट बाहर निकलता है। इस वेस्ट में खाद्य सामग्रियों जैसे टॉफी, बिस्कुट, चिप्स, ब्रेड, रेडीमेड कपड़ों की पैकिंग, कांच की बोतल, पानी की प्लास्टिक बोतलें इत्यादि भारी मात्रा में निकलती हैैं। नदी के अंदर प्लास्टिक का वेस्ट होना, यह अपने आप में ही चिंताजनक स्थिति है।

केमिकल घुल रहे पानी में

प्लास्टिक वेस्ट का ढेर होने की वजह से पानी में अलग-अलग तरह के केमिकल जैसे एथिलीन, यूरोथेन, पॉलीविनाइल क्लोराइड घुल रहे हैैं, जिसकी वजह से पानी प्रदूषित हो रहा है। एक सर्वे की माने तो प्लास्टिक में करीब 13 हजार से अधिक केमिकल होते हैैं। इससे खुद अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्लास्टिक वेस्ट कितना खतरनाक है। चूंकि ये वेस्ट घुलनशील नहीं होता है, इस वजह से ये लंबे समय तक पानी के अंदर मजबूती से जमा रह सकता है।

हर घाट की यही स्थिति

गोमती के प्रमुख घाटों की बात की जाए तो इसमें गऊ घाट, गुलालाघाट, कुड़ियाघाट, महाराज अग्रसेन घाट, रामजानकी घाट, लल्लूमल घाट, गोमेश्वरम घाट, झूलेलाल पार्क घाट, हनुमंतधाम घाट इत्यादि शामिल हैं। इसके साथ ही पीपे के पुल को भी एक घाट ही माना जाता है। इनमें से सबसे प्रमुख घाट झूलेलाल पार्क घाट और कुड़ियाघाट हैैं। इन दोनों घाटों पर पब्लिक का फुटफॉल अधिक रहता है। ऐसे में जब समितियों की ओर से इन घाटों में सफाई अभियान चलाया जाता है तो कुल वेस्ट 15 कुंतल तक निकलता है और इसमें प्लास्टिक वेस्ट 50 फीसदी होता है। वहीं, अन्य घाटों में 8 से 9 कुंतल वेस्ट निकलता है और उसमें भी 50 प्रतिशत वेस्ट प्लास्टिक बेस्ड होता है। मतलब साफ है कि सभी घाटों से प्लास्टिक वेस्ट पब्लिक के माध्यम से गोमती में फेंका जा रहा है।

ये हैैं कार्रवाई का प्राविधान

धारा 277 के तहत जलस्त्रोत या जलाशय में कचरा डालने या गंदा करने पर तीन महीने की सजा और 500 रुपये जुर्माना का प्राविधान है। अब अगर लखनऊ की बात की जाए तो अभी तक कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की गई है, जिसकी वजह से लोग धड़ल्ले से गोमा में गंदगी डाल रहे हैैं।

गोमती में खुलेआम फेंकते हैं वेस्ट

1090 को समता मूलक को जोड़ने वाले गोमती के नए और पुराने पुल की बात की जाए तो यहां पर नगर निगम की ओर से डस्टबिन लगवाए गए हैैं। ये डस्टबिन इसलिए ही लगे हैैं कि लोग गोमती में वेस्ट फेंकने के बजाए इसमें डालें लेकिन स्थिति यह है कि डस्टबिन लगे होने के बाद भी 90 फीसदी लोग सीधे गोमती में ही सूखे फूल या अन्य वेस्ट फेंक देते हैैं। कमोवेश यही स्थिति निशातगंत पुल पर भी देखने को मिलती है। यहां भी लोग गोमती में सीधे वेस्ट फेंक देते हैैं।

बोले लोग

यह बात सही है कि लोगों की ओर से गोमती में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वेस्ट फेंक दिया जाता है। जब हम सफाई अभियान चलाते हैैं, तो कुल वेस्ट में सबसे अधिक प्लास्टिक वेस्ट निकलता है, जो बेहद चिंताजनक है।

रणजीत सिंह, संयोजक, स्वच्छ पर्यावरण सेना

गोमती नदी की दुर्दशा के लिए सरकार के साथ साथ हम सभी जिम्मेदार हैैं। आम जनता और धर्म गुरुओं को नदियों को बचाने के लिए एक साथ आगे आना होगा।

इकबाल रसूल अब्बासी, मौलवीगंज

आज गोमती नदी की जो दुर्दशा है, उसके लिए कोई एक नहीं बल्कि सिस्टम के साथ-साथ जनता भी जिम्मेदार है। हम सबकी जिम्मेदारी है कि गोमती को स्वच्छ रखें और एक-दूसरे पर ठीकरा न फोड़ें। फिलहाल इस विषय पर कोई गंभीर नहीं है।

प्रदीप पांडेय, इंद्रपुरी कॉलोनी

अगर कोई व्यक्ति गोमा में वेस्ट फेंक रहा है तो उसके खिलाफ विधिक एक्शन लिया जाना चाहिए साथ ही जुर्माना भी लगाना चाहिए।

कविता मिश्रा, अमीनाबाद