लखनऊ (ब्यूरो)। छोटी आंत में बैक्टीरिया का संक्रमण (सीबो) से निजात अब 60 गुना कम कीमत पर भी संभव है। संजय गांधी पीजीआई के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो। यूसी घोषाल के इस विषय पर हुए शोध को आधार बनाकर भारतीय कंपनी सस्ती दवा तैयार की है। क्योंकि इस परेशानी के इलाज के लिए अभी विदेशी कंपनी का दवा का इस्तेमाल मरीजों में करना पड़ता है। जिसके पूरे कोर्स में लगभग 60 हजार रुपये का खर्च आता था। पर देसी दवा में पूरे कोर्स का खर्च महज एक हजार हो जायेगा। ऐसे में मरीजों को बड़ी राहत मिलेगी।

रिसर्च में मिले अच्छे परिणाम

प्रो। यूसी घोषाल के मुताबिक, सीबो के साथ 1331 मरीजों सहित 32 रिसर्च का विश्लेषण किया गया। जिसमें देखा गया कि रिफाक्सीमिन उपचार के साथ सीबो को ठीक करने में 70.8 फीसदी तक कारगर है। इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (आईबीएस) के 20 से 30 फीसदी लोगों में सीबो जुड़ा हुआ होता है। यह दवा आईबीएस के लक्षणों को दूर करने के लिए 41 फीसदी तक प्रभावी रहा है। 15 रोगियों में से 87.5 फीसदी में 1 महीने में इलाज का अच्छा परिणाम मिला है। सीबो के बिना आईबीएस के 65 मरीजों में 25 फीसदी रोगियों अच्छे परिणाम मिले हैं।

कब्ज में भी कारगर

लैक्टूलोज हाइड्रोजन ब्रेथ टेस्ट, एलएचबीटी के जरिए देखा गया कि सांस में अधिक मीथेन गैस पुरानी कब्ज और धीमी कोलन ट्रांजिट से जुड़ा है। देखा गया है कि रिफाक्सीमिन, नियोमाइसिन या इन दोनों के संयोजन दवाओं के साथ उपचार से सांस में मीथेन में कमी होती है। कब्ज में सुधार होता है। देखा गया है कि सांस में मीथेन की कमी लाने और कोलन ट्रांजिट के कमी के इलाज में रिफाक्सीमिन प्रभावी रहा है।

सीबो कई अन्य बीमारियों में बढ़ जाता है। इसके इलाज के लिए खास एंटीबायोटिक दवा इस्तेमाल होती है। देसी दवा आने के बाद इलाज सस्ता हो गया।

-प्रो। यूसी घोषाल, एचओडी गैस्ट्रो, पीजीआई