लखनऊ (ब्यूरो)। महिलाओं को आगे बढ़ने और खुद का एक मुकाम हासिल करने के लिए कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। हालांकि, अगर परिवार का साथ हो तो हम हर वह काम कर सकते हैं, जो हमें मुश्किल लगता है। इसी के चलते महिलाएं हर सेक्टर में आगे बढ़ रही हैं। इंटरनेशनल वीमेंस डे के अवसर पर हम राजधानी की कुछ ऐसी ही महिलाओं के बारे में आपको बताएंगे, जिन्होंने दिन-रात मेहनत कर आगे बढ़ने का काम किया और अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनीं। पेश है अनुज टंडन की विशेष रिपोर्ट

पोलियो नहीं बन पाया कमजोरी

जब मैं 9 माह की थी तो पोलियो हो गया था। पर मेरी मां, जो बेहद साधारण परिवार से हैं, ने मेरी परवरिश इस तरह से करी कि मुझे मजबूती से खुद के लिए काम करने की प्रेरणा मिली। स्कूल में पोलियो के कारण काफी कुछ सुनने को मिलता था। एक बार पैर का ऑपरेशन कराने गई तो डॉक्टर की रिस्पेक्ट होते देखी। मन में ठान लिया के मुझे भी डॉक्टर बनना है, जिसका लोगों ने काफी मजाक उड़ाया। 1997 में कानपुर मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस में दाखिला लिया। इस दौरान काफी दिक्कतें आईं, लोग ताने मारते थे कि डॉक्टर बनना आसान नहीं है। उस दौरान साथ के कई दोस्तों ने काफी मदद की और मैं अपने मिशन में जुटी रही। आज मैं आब्स एंड गाएनी की डॉक्टर हूं और रानी लक्ष्मीबाई संयुक्त महिला चिकित्सालय में तैनात हूं, जहां मैं गरीब मरीजों खासकर दिव्यांग मरीजों की अपने स्तर से मदद करने की पूरी कोशिश करती हूं।

डॉ। शशि वर्मा, रानी लक्ष्मीबाई अस्पताल

खुद की बेटी मान कराई शादी

मैं लोहिया संस्थान के ईएनटी विभाग में बतौर नर्स तैनात हूं। मेरे दो बेटे हैं, लेकिन कोई बेटी नहीं है। जब मेरे घर के पास रहने वाले एक गरीब को बेटी की विदाई करने में समस्या हुई तो मैंने उसमें मदद की। अबतक दो जरूरतमंद बेटियों की शादी अपने खर्च से कर चुकी हूं। बारात के खर्च से लेकर शादी में देने वाले गिफ्ट तक मैंने अपने अकेले खर्च से ही दिये। इसमें किसी की भी कोई मदद नहीं ली। लोगों ने मुझको टोका भी कि क्यों मैं अपना पैसा बर्बाद कर रही हूं। पर परिवार का पूरा साथ था और बेटियों का मामला था तो खुद को रोक नहीं पाई। इसके अलावा, अपने स्तर से जो संभव हो पाता है, वो मदद करने की कोशिश करती हूं। इससे मुझे काफी सुख और संतोष मिलता है।

सिस्टर गीता, लोहिया संस्थान

पैरेंट्स के सपोर्ट से मिला मुकाम

स्कूल से मुझे एक्टिंग का शौक था। जब पैरेंट्स को बताया तो वे शॉक्ड हो गये। पर बाद में थियेटर करते देखा तो उनको लगा कि बेटी कुछ कर सकती है। हालांकि, कई लोग बोलने लगे कि लड़की है, इसको एक्टिंग में आगे मत भेजना। पर 2019 में फादर मुझे मुंबई लेकर गए। 1-2 माह तक कोई काम नहीं मिला तो वापस लखनऊ आ गई। कुछ दिनों के बाद पिता ने हौसला बढ़ाया और वापस मुंबई लेकर गये। सुबह वह उन जगहों पर जाते थे जहां ऑडिशन के बारे में लिखा होता था। इसके बाद वह मुझे लेकर जाते और घंटों इंतजार करते। चूंकि मेरा कोई गॉडफादर और कांटेक्ट नहीं था, इसलिए काफी डर भी था। किस्मत से निर्देशक महेश भट्ट के शो में एक छोटा रोल मिला था। लॉकडाउन में वापस आ गई। इस दौरान मेरी मां ने मुझे संघर्ष और मेहनत के लिए प्रेरित किया। दोबारा मुंबई गई और कई सीरियल्स में अहम किरदार निभाये और लगातार काम कर रही हूं। अपने पैरेंट्स की वजह से आज मुंबई में अपना एक मुकाम बना सकी हूं।

नंदिनी मौर्या, एक्टेस

अपनी जैसी लड़कियों के लिए काम शुरू किया

मैं मुस्लिम कम्युनिटी से हूं। मेरे दो भाई हैं और हम छह बहने हैं। मैं छठे नंबर पर हूं। हमारे यहां लड़कियों की पढ़ाई पर ज्यादा जोर नहीं दिया जाता था। सरकारी स्कूल में दाखिला लिया, लेकिन फीस भरने के पैसे नहीं थे, तो फूल चुनने का काम शुरू किया। उससे स्कूल फीस भरी। इसी दौरान हाई स्कूल में पिता का इंतकाल हो गया। पर मां मेरी मदद करती थी इसलिए किसी तरह 12वीं फर्स्ट क्लास से पास की और सरकार से 20 हजार रुपये मिले। जिससे घर-वालों से लड़-झगड़ कर ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद लखनऊ आई और एक फैलोशिप मिली और तीन बस्तियों में काम करने का मौका मिला। तब देखा कि मेरे जैसी बहुत सी लड़कियां हैं। फिर फैलोशिप के पैसे से एक लैपटॉप खरीदा और लड़कियों को ट्रेनिंग देने का काम किया। इसके बाद फोटोग्राफी सिखाई और विमेंस फोटोग्राफर की टीम बनाई। जो खासतौर पर मुस्लिम समाज की शादियों में महिलाओं के पंडाल में जाकर फोटो और वीडियो बनाती हैं। धीरे-धीरे लीडरशिप बिल्डिंग प्रोग्राम शुरू किया और हजारों लड़कियों को रोजगार उपलब्ध कराया। टेक्नोलॉजी पर ज्यादा फोकस किया।

हमीदा खातून, सोशल वर्कर