लखनऊ (ब्यूरो)। कंप्टीशन के इस दौर में टीनएजर्स के लिए ओवर-शेड्यूलिंग एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। स्कूल, घर, ट्यूशन के अलावा एक्स्ट्रा टाइम में भी ओवर शेड्यूल होने से उनमें स्ट्रेस लेवल बढ़ रहा है। टीनएजर्स न सिर्फ एंग्जायटी का शिकार हो रहे हैं, बल्कि कई बार ओवर शेड्यूलिंग की वजह से खुद को नुकसान भी पहुंचा लेते हैं। बच्चों के लिए सही रूटीन क्या होना चाहिए? किस तरह उनको एंग्जायटी से बचा सकते हैं? पैरेंट्स को बच्चों पर कैसे ध्यान देना चाहिए? बच्चों पर पढ़ाई का लोड कैसे कम किया जाए? पढ़ें इन तमाम सवालों का जवाब तलाशती दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की खास रिपोर्ट

अक्सर तनाव और चिंता
बीते कुछ माह की बात की जाए तो राजधानी में टीनएजर्स के सुसाइड केस बढ़ गए हैं। इनमें लड़के और लड़कियां, दोनों शामिल हैं। पैरेंट्स भी हैरान हैं कि आखिर इतनी कम उम्र में उनके बच्चे ने मौत को गले क्यों लगा लिया। कई केसों में यह भी सामने आया कि बच्चों पर पड़ने वाला पढ़ाई का बोझ उनकी जान ले रहा है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि जिन बच्चों का रूटीन शेड्यूल अधिक बिजी होता है, वे अक्सर तनावग्रस्त या चिंतित रहते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे समय से अधिक पढ़ना, खेलने का मौका न मिलना, होमवर्क की टेंशन बनी रहना, बात-बात पर पैरेंट्स का उन्हें डांटना आदि।

अपनों से हो जाते हैं दूर
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, बच्चों को लगता है कि उनके पास ग्राउंड में जाकर खेलने, मोबाइल पर गेम खेलने, दोस्तों के साथ टाइम स्पेंड करने या गपशप का समय नहीं है, क्योंकि उनके रूटीन शेड्यूल में ये सब शामिल ही नहीं है। इसके पीछे का मुख्य कारण उनके पैरेंट्स भी होते हैं। वहीं, कई ऐसे बच्चे भी होते हैं जो दूसरों से आगे निकलने की होड़ में खुद की ही लाइफ को ओवर-शेड्यूल्ड कर लेते हैं और यह सब सिर्फ वे अपने पैरेंट्स की वजह से करते हैं। इससे बाहर निकलने की जरूरत है, ताकि बच्चे ओवर-शेड्यूलिंग से प्रभावित न हों। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, 5 से 10 साल के बच्चे 5-6 घंटे और 10 से 17 साल के बच्चे 7 से 8 घंटे तक ही पढ़ाई करें, इसमें स्कूल या ट्यूशन वगैरह में बिताया वक्त भी शामिल है।

पैरेंट्स को रखना होगा ख्याल
पैरेंट्स को समझना चाहिए कि बच्चों पर स्कूल में पढ़ाई का काफी प्रेशर होता है। उन्हें इतना होमवर्क मिलता है कि वे उसे घर में घंटों पूरा करते रहते हैं। साथ ही ट्यूशन में भी पढ़ाई होती है। ऐसे में बच्चों पर पढ़ाई का लोड काफी बढ़ जाता है। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि बच्चों पर बिलकुल भी प्रेशर न डालें।

इन प्वाइंट्स से जानें
ओवर-शेड्यूलिंग-एक्सपर्ट्स के मुताबिक, बचपन खेलने के लिए होता है। हां ये जरूर है कि इसमें कुछ समय पढ़ाई का भी शामिल है, लेकिन अधिकतर केसों में पाया जाता है कि पैरेंट्स बच्चों को रूटीन शेड्यूल के साथ-साथ ओवर-शेड्यूलिंग थोप देते हैं, जिससे बच्चों में एंग्जायटी समेत अन्य समस्याएं पैदा होने लगती है।
पढ़ाई कमजोर- ओवर-शेड्यूलिंग से पढ़ाई कई बार बेहतर हो जाती है, लेकिन सच यह भी है कि कई बार यह कमजोर भी हो जाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बच्चों को जो सीखा है उसे आत्मसात करने और उस पर विचार करने के लिए खाली समय ही नहीं मिल पाता है। ऐसे में यह शेड्यूलिंग अच्छे के साथ-साथ बुरा भी है।
दोस्तों से दूरी- किसी बच्चे का शेड्यूल हमेशा बड़ों की तरह रहता है तो वे अक्सर अपने दोस्तों को समय नहीं दे पाते, जिससे आगे चलकर उन्हें काफी परेशानियां उठानी पड़ती हैं। इस बात को पैरेंट्स को समझना चाहिए और अपने बच्चों पर पढ़ाई का उतना ही जोर डालना चाहिए जितना उनके लिए जरूरी हो।
थकावट- लगातार ओवर-शेड्यूलिंग से बच्चों में शारीरिक थकावट हो सकती है। यह बच्चे के समग्र विकास, प्रतिरक्षा कार्य को प्रभावित कर सकता है और यहां तक कि सिरदर्द और पेट दर्द जैसी समस्याएं भी पैदा कर सकता है।
मानसिक तनाव- अत्यधिक समय-निर्धारण से दबाव और तनाव बढ़ सकता है। जब बच्चों को लगातार एक गतिविधि से दूसरी गतिविधि की ओर ले जाया जाता है, तो वे चिंता महसूस कर सकते हैं और उनमें सोने में कठिनाई, खाने के विकार, अवसाद जैसी समस्याएं विकसित हो सकती हैं।
पारिवारिक समय में कमी- जब बच्चे अपने शेड्यूल में बहुत व्यस्त होते हैं, तो परिवार के साथ गुणवत्तापूर्ण बातचीत के लिए उनके पास कम समय बचता है। इससे बच्चे के भावनात्मक विकास और पारिवारिक जुड़ाव पर असर पड़ सकता है।
खाली समय और आराम की कमी- ओवर-शेड्यूलिंग से ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है, जहां बच्चे के पास आराम और आत्म-चिंतन के लिए बहुत कम या बिल्कुल समय नहीं होता। बच्चों को आराम करने और चिंतन करने का समय देना जरूरी है।

पहचानें इन लक्षणों को
- बच्चा परिवार से दूरी बनाने लगेगा, दोस्तों को भी समय नहीं देगा
- चिड़चिड़ापन, बात-बात पर गुस्सा आना, खुद को अकेला रखना
- खेलकूद का शौक खत्म हो जाए, सिर्फ पढ़ाई की बातें करना
- स्कूल, घर और फिर ट्यूशन के बाद भी हमेशा पढ़ते ही रहना
- हमेशा थका-थका रहना, किसी से बात न करना
- खुद की ही पढ़ाई पर मंथन न कर पाना, हमेशा सोचते रहना

ऐसे करें बचाव
- बच्चों पर एक्स्ट्रा बर्डन न दें
- उसे उतना ही पढ़ने को बोलें, जितना उसे पसंद है
- अगर उसका पढ़ाई में मन नहीं है तो उससे उसकी रुचि पूछें
- आपको समझना होगा कि आपका बच्चा, स्कूल, घर और ट्यूशन में भी पढ़ता है
- चिड़चिड़ापन और बात-बात पर गुस्सा करता है तो डॉक्टर से मिलें
- बच्चों को ग्राउंड में खेलने को जाने दें, उसे मना न करें

अक्सर ऐसा होता है कि बच्चों को पहले घर, फिर स्कूल और फिर ट्यूशन से आने के बाद फिर घर में पढ़ना होता है। कई-कई घंटे लगातार वे पढ़ते ही रहते हैं, जिससे बच्चों पर लोड बढ़ जाता है। वह ओवर-शेड्यूलिंग का शिकार होने लगते हैं। ऐसी कंडीशन में पैरेंट्स को ध्यान देने की जरूरत है। बच्चों पर उतना ही पढ़ाई का पे्रशर डालें, जितनी जरूरत है। अधिक दबाव से बच्चे के बिहेवियर में काफी बदलाव होने लगेगा, जो आगे चलकर उसकी सेहत पर बुरा असर डाल सकता है।
-डॉ। देवाशीष शुक्ल, वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ, कैंसर संस्थान