लखनऊ (ब्यूरो)। कॉम्प्टिीटिव एग्जाम्स की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स पर किस हद तक दबाव रहता है, इसका अंदाजा लखनऊ और देश के अलग-अलग शहरों से आने वाली ऐसे स्टूडेंट्स के सुसाइड की खबरों से ही लगाया जा सकता है। पैरेंट्स, टीचर्स, सोसाइटी वगैरह का प्रेशर उन्हें अंदर से तोड़कर रख देता है और वे गलत कदम उठा लेते है। एक्सपर्ट्स की माने तो बच्चों पर स्कूल से लेकर अच्छी जॉब पाने तक पैरेंट्स का काफी दबाव रहता है, जिसके बोझ तले वे दबे रहते हैं। ऐसे में, पैरेंट्स को भी समझना चाहिए कि अगर एक रास्ता बंद हो गया है तो कई रास्ते और भी मौजूद हैं। आपके बच्चे की जिंदगी से बढ़कर कुछ नहीं, इसलिए बच्चों पर प्रेशर नहीं डालना चाहिए बना उनका मजबूत सपोर्ट सिस्टम बनना चाहिए।

केस 1 - जनवरी 2024

यूपी के झांसी में यूपीएससी की परीक्षा में तीन बार फेल होने वाले 26 वर्षीय युवक ने खुदकुशी कर ली।

केस 2 - अप्रैल 2024

लखनऊ के 19 वर्षीय युवा ने जेईई मेंस परीक्षा से एक दिन पहले ही फांसी लगा ली।

केस 3 - फरवरी 2023

नोएडा निवासी 19 वर्षीय युवक ने अग्निवीर परीक्षा में फेल होने के बाद फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।

मन में आते हैं निगेटिव थॉट्स

साइकियाट्रिस्ट व कैंसर संस्थान के एमएस डॉ। देवाशीष शुक्ला बताते हैं कि पैरेंट्स को समझने की जरूरत है कि बच्चों में अनुशासन लाने के लिए उन्हें सजा देने की जरूरत नहीं है। डांट-फटकार से उनके अंदर निगेटिव भाव आने लगते हैं। इससे बच्चों की मेंटली हेल्थ खराब होने से उनके करियर पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जब बच्चा कॉम्प्टीशन की तैयारी करता है तो वे नकारात्मक भाव उसके मन में भरे रहते हैं, जिसके कारण वे ठीक से परफॉर्म नहीं कर पाते हैं और परिवार व समाज के डर से गलत कदम उठा लेते हैं।

दो बातों का ध्यान रखें पैरेंट्स

केजीएमयू के साइकियाट्री विभाग के डॉ। आदर्श त्रिपाठी बताते हैं कि जिनके बच्चे कोई एग्जाम खासतौर पर कोई कॉम्प्टीटिव एग्जाम दे रहे हैं तो उनको दो बातों का ध्यान रखना चाहिए। पहला यह कि सक्सेस जरूरी है, लेकिन जिंदगी में और चीजें भी जरूरी हैं। पैरेंट्स को बच्चों को मोटिवेट करना चाहिए, इससे रिजल्ट अलग आता है। पैरेंट्स खुद समझें और बच्चों को भी समझाएं कि एग्जाम लाइफ का एक पार्ट है, पूरी लाइफ नहीं है। दूसरा यह कि जिन फैमिलीज में बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार होता है, यानि बच्चे को पता होता है कि जो हम कहेंगे पैरेंट्स सुनेंगे और आलोचना नहीं करेंगे, तो बच्चे गलत कदम नहीं उठाते हैं।

'टाइम आउट' सिद्धांत को करें फॉलो

डॉ। आदर्श के मुताबिक, अगर बचपन से ही बच्चों की सही से ग्रूमिंग और परवरिश हो तो बड़े होकर वे संयमित और बेहतर परफॉर्मर साबित होते हैं। बचपन से ही टाइम आउट सिद्धांत को फॉलो करना चाहिए। दरअसल, अगर कोई बच्चा गलती या बदमाशी कर रहा है तो उसे डांटने या मारने की जगह टाइम आउट का सहारा लें। यह छोटे बच्चों के लिए एक स्ट्रैटेजी होती है, जिसमें बच्चे की उम्र के अनुसार उसे ऐसी एकांत जगह बैठाया जाता है जहां टीवी, मोबाइल, बुक्स या लोग न हों। जैसे बच्चा पांच साल का है तो पांच मिनट, सात साल का सात मिनट तक बैठाना चाहिए। ऐसा करने पर बच्चा शांत हो जाता है। इसके बाद बच्चे को आराम से समझाएं की उसने क्या गलती की है और उसे सुधरना चाहिए। स्टडी बताती है कि इस सिद्धांत से बच्चों में सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला है।

करियर काउंसलर की लें मदद

अभिभावक कल्याण संघ के प्रदीप श्रीवास्तव के मुताबिक, आजकल पैरेंट्स भेड़चाल के अनुसार चलते हैं। दूसरे का बच्चा क्या कर रहा है इसको देखकर वे भी अपने बच्चे पर वही करने का दबाव बनाने लगते हैं, जबकि उनको अपने बच्चों की पसंद और कैलिबर के बारे में समझना चाहिए। आजकल तो करियर काउंसलर की भी सुविधा है। जो बच्चों की क्षमता के अनुसार उनको करियर चुनने की सलाह देते हैं, जिसे पूरा न कर पाने के कारण बच्चे गलत कदम उठा लेते हैं। ऐसे में, पैरेंट्स को बच्चों का साथ देना चाहिए।

ज्यादा डांटने और दबाव बनाने से बच्चों पर बुरा असर पड़ता है। पैरेंट्स को बच्चों पर बेवजह दबाव बनाने से बचना चाहिए।

-डॉ। देवाशीष शुक्ला, कैंसर संस्थान

पैरेंट्स को समझना चाहिए कि एग्जाम जिंदगी का पार्ट है, जिंदगी नहीं। बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखना चाहिए ताकि उनमें सकारात्मक भाव आयें।

-डॉ। आदर्श त्रिपाठी, केजीएमयू

पैरेंट्स दूसरों को देखकर अपने बच्चों को भी वही करने का दबाव बनाते हैं, जबकि आजकल करियर काउंसर की भी सुविधा है। करियर बनाने के लिए कई अन्य फील्ड भी हैं।

-प्रदीप श्रीवास्तव, अभिभावक कल्याण संघ