LUCKNOW NEWS: लखनऊ (ब्यूरो)। नवजात बच्चों में कई गंभीर बीमारियां जन्मजात होती हैं। जिसे कांजनाइटल हार्ट डिजीज कहते हैं। इंडियन पीडियाट्रिक्स के अनुसार भारत में 1 हजार लाइव बर्थ में यह समस्या 8-12 नवजातों में होने की आशंका होती है। कई बार कोई लक्षण न होने और जानकारी के अभाव में यह समस्या गंभीर हो जाती है और सर्जरी करानी पड़ती है। ऐसे में समय रहते इसकी जांच और ट्रीटमेंट बेहद जरूरी है। ऐसे मामले राजधानी के पीजीआई, केजीएमयू और लोहिया में हर माह 450-500 मामले सामने आ रहे है।

40 फीसद में सर्जरी की जरूरत
संजय गांधी पीजीआई के कार्डियोलॉजी विभाग के डॉ। अंकित साहू बताते हैं कि विभाग में हर सप्ताह ऐसे केसेज के लिए स्पेशल ओपीडी चलती है। जिसमें हर सप्ताह 70-80 मामले यानि हर माह 300-350 आ जाते हैं। इसमें, 1 दिन से लेकर 13 साल तक के बच्चे होते हैं। वहीं, करीब 40 फीसद मामलों में दिल का छोटे अपने आप ठीक हो जाता है। 30-40 फीसद मामलों में छेद को भरने के लिए सर्जरी करनी होत है और 30 फीसद केस में कैथेटर लगाते हैं।

कई कारण होते हैं
लोहिया संस्थान के सीवीटीएस विभाग के डॉ। एपी जैन ने बताया कि यह समस्या पैदाइशी होती है। इसके कई कारण हंै जैसे अपने आप विकृति, गर्भावस्था में रूबेला यानि जर्मन मिजल्स वायरस से संक्रमण हुआ हो, डायबिटीक, दवाईयां, स्मोकिंग, तंबाकू का सेवन आदि प्रमुख कारणों में से एक है।यह जेनेटिक और पर्यावरण के चलते भी होता है। ऐसी समस्या को कांजनाइटल हार्ट डिजीज कहा जाता है।

2डी ईको कराना बेहद जरूरी
लोहिया संस्थान में पीडियाट्रिक सर्जन डॉ। श्रीकेश सिंह बताते हंै कि इस तरह के 50-60 मामले आते रहते हैं। इसमें, महज 5 फीसद में ही सर्जरी की जरूरत पड़ती है। 95 फीसद मामलों में छेद अपने-आप बंद हो जाता है। यह समस्या जन्मजात होती है। ऐसे में दो दिन से ले छह हफ्ते तक के बच्चे में 2डी ईको कराया जाता है। ताकि पता चल सके कि बच्चे में कोई जन्मजात दिन की समस्या तो नहीं है। लेकिन, कई बार कोई लक्षण नहीं होने से बड़े होने पर यह समस्या देखने को मिलती है।

हर हफ्ते एक सर्जरी कर रहे
वहीं, केजीएमयू के लारी कार्डियोलॉजी में डॉ। अक्षय प्रधान बताते हैं कि बच्चों के दिल में होने वाले कुछ छेद अपने आप बंद हो जाते हैं। यह कई तरह और प्रकार के होते हैं। दिल में छेद जितना छोटा होगा वो उतना अपने आप भर जाएगा। हफ्ते में एक ऑपरेशन करते हैं। जबकि, हर माह करीब 60-70 मामले आ जाते हैं।

लक्षण
- दूध पीने के दौरान शरीर नीला पडऩा
- सांस लेने में दिक्कत
- चेस्ट इंफेक्शन
- ग्रोथ में रुकावट आना

यह समस्या जन्मजात या कई अन्य कारणों से होती है। समय रहते इसका पता लगने से इलाज किया जा सकता है।
- डॉ। एपी जैन, लोहिया संस्थान

हर सप्ताह 70-80 मामले ऐसे आ रहे हंै। जिसमें करीब 40 फीसद में सर्जरी की जरूरत पड़ती है। लोगों को इस समस्या के प्रति जागरूक रहना चाहिए।
- डॉ। अंकित साहू, पीजीआई