लखनऊ (ब्यूरो)। केजीएमयू मेडिकल क्षेत्र में टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल की मदद से उपकरण बनाने के लिए उद्यमियों और इनोवेटर्स की मदद करेगा। ताकि मरीजों के इलाज में एंडवांस तकनीक का इस्तेमाल किया जा सके। इसके लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), कानपुर के साथ मिलकर डीबीटी स्कूल ऑफ इंटरनेशनल बायोडिजाइन-सिनर्जाइजिंग हेल्थकेयर इनोवेशन एंड एंटरप्रेन्योरशिप (एसआईबी-शाइन) फेलोशिप प्रोग्राम के लिए 9 फेलो की सूची की घोषणा की है। ताकि मेडिकल के क्षेत्र में विदेशी उपकरणों पर निर्भरता कम की जा सके। जिसका फायदा भारतीय मरीजों को उनके इलाज में मिलेगा।

प्रशिक्षित इनोवेटर्स की जरूरत

एसआईबी-शाइन प्रोग्राम एक आवासीय फेलोशिप प्रोग्राम है, जिसका उद्देश्य बायोमेडिकल उद्यमियों की अगली पीढ़ी का निर्माण करना है। आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो। अभय करंदीकर ने कहा कि आईआईटी कानपुर भारत में मेडटेक क्षेत्र के विकास में योगदान दे रहा है। हालांकि, हमें प्रशिक्षित इनोवेटर्स और उद्यमियों की आवश्यकता है, जो चिकित्सा उपकरणों और आपूर्ति के मामले में भारत को आत्मनिर्भर बनाने में क्रांति का नेतृत्व कर सकें।

50 लोगों को करेंगे ट्रेंड

वहीं, प्रो। ऋषि सेठी, कार्डियोलॉजी विभाग केजीएमयू और एसआईबी शाइन कार्यक्रम प्रमुख ने कहा कि करीब पांच साल के इस फेलोशिप प्रोग्राम के तहत 50 बायोमेडिकल इंजीनियर्स को तैयार करने का काम किया जायेगा। उम्मीद की जा रही है कि उनमें से करीब 18-20 लोग आइडिया को कॉमर्शियल स्टेज पर लेकर जाएंगे, जो मेक इन इंडिया के तहत काम करेंगे। यह मेडीटेक प्रोडक्ट इंडियन मार्केट को ध्यान में रखकर डिजाइन किए जाएंगे ताकि भारतीय मरीजों को इसका अधिक से अधिक लाभ मिल सके।

आये थे करीब 150 आवेदन

पहले बैच में देशभर से करीब 150 आवेदन आये थे। जिसमें से 9 लोगों को सेलेक्ट किया गया है। यह प्रोग्राम 1 सितंबर से शुरू हो रहा है। इसके बाद 12-12 के बैच बनाकर ट्रेनिंग दी जायेगी, जिसे आईआईटी कानपुर और केजीएमयू मिलकर देंगे। इसमें 6 माह केजीएमयू और 6 माह आईआईटी कानपुर में ट्रेनिंग दी जायेगी। चयनित एसआईबी शाइन फेलो इंपोर्टेड चिकित्सा उपकरणों और साधनों पर भारत की निर्भरता को कम करने का काम करेंगे।

ऐसे मिलेगी ट्रेनिंग

इस प्रोग्राम के तहत केजीएमयू लखनऊ में क्लीनिकल अभ्यास से बैच गुजरेंगे। क्लीनिकल अभ्यास के दौरान, फेलो प्रख्यात डॉक्टरों का अनुसरण करेंगे और विभिन्न क्लीनिकल आवश्यकताओं की पहचान करेंगे। अपने क्लीनिकल अभ्यास को पूरा करने के बाद फेलो पहचान की गई बायोमेडिकल समस्याओं के लिए प्रोटोटाइप विकास शुरू करने के लिए आईआईटी कानपुर आएंगे। जहां पहचान की गई समस्याओं के आधार पर वैचारिक आधार तैयार किया जाएगा। निर्माण चरण में, अध्येताओं को निष्कर्षों के आधार पर प्रोटोटाइप विकसित करने के लिए निर्देशित किया जाएगा। इसके बाद अंतिम चरण पुष्टिकरण होगा। जहां प्रभावकारिता का पता लगाने के लिए प्रोटोटाइप क्लीनिकल परीक्षणों से गुजरेंगे।