लखनऊ (ब्यूरो)। मकर संक्रांति के दिन दान-पुण्य करना शुभ माना जाता है और इस दिन हर कोई ऐसा करता भी है। हमारे और आपके बीच कई ऐसे लोग हैैं, जो एक ऐसा दान करते हैैं, जिसे महादान कहा जाता है। हम बात कर रहे हैैं शिक्षादान की। शिक्षादान करने वालों की ओर से अपने बिजी शेड्यूल से समय निकालकर शहर से लेकर गांव तक गरीब बच्चों के जीवन में शिक्षा का उजियारा किया जा रहा है। आइए जानते हैैं ऐसे लोगों के बारे में

बच्चों का कर रहे सर्वांगीण विकास

आलमबाग निवासी युवा गीतकार सोमनाथ कश्यप पिछले सात सालों से गरीब बच्चों को शिक्षित कर रहे हैैं। कोविड के दौरान उनकी मुहिम रुकी जरूर लेकिन अब उन्होंने फिर से बच्चों को शिक्षित बनाने संबंधी अभियान शुरू कर दिया है। उन्होंने बताया कि वह सप्ताह में दो बार आलमबाग स्थित मलिन बस्तियों में जाकर क्लास लगाते हैैं साथ ही बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए स्पोट्र्स एक्टिविटीज भी कराते हैैं।

250 से अधिक बच्चों का एडमिशन

सोमनाथ ने बताया कि उनका मुख्य उद्देश्य बच्चों को पढ़ाना तो है ही साथ में उनकी ओर से सरकारी स्कूलों में उनका एडमिशन भी कराया जाता है। उनके द्वारा 250 से अधिक बच्चों का एडमिशन कराया जा चुका है। अगर किसी बच्चे के पैरेंट्स बुक्स नहीं खरीद पाते हैैं तो इस दिशा में भी वह मदद करते हैैं।

गांव-गांव तक जाकर बच्चों को कर रहे शिक्षित

पवनपुरी आलमबाग निवासी चंदन तिवारी की ओर से भी गांव-गांव जाकर बच्चों को शिक्षित किया जा रहा है। उनकी ओर से ऐसे बच्चों का चयन किया जाता है, जो वित्तीय संकट की वजह से स्कूल नहीं जा पाते हैैं। उनकी ओर से गांव में जाकर हर सप्ताह क्लास लगाई जाती है और बच्चों को शिक्षित बनाने की कवायद की जाती है।

चार साल से चला रहे क्लासेस

चंदन ने बताया कि ग्रामीण परिवेश में शिक्षा जागरण को लेकर वह शुरू से ही जागरूक रहे हैैं। इसे ध्यान में रखते हुए ही उन्होंने गांव-गांव जाकर गरीब बच्चों को शिक्षित बनाने की ठानी और अपने कदम आगे बढ़ाए। पहले तो कुछ चुनौतियां सामने आईं लेकिन हर चुनौती को पार करते हुए उन्होंने बच्चों को पढ़ाना शुरू किया।

400 से अधिक बच्चों को लाभ

चंदन का कहना है कि उनकी मेहनत रंग लाती नजर आ रही है। पहले जहां लोग बड़ी ही मुश्किल से अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए भेजते थे, वहीं अब तस्वीर बदल रही है। लोगों की ओर से खुशी-खुशी अपने बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए भेजा जा रहा है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अभी तक उनकी ओर से 400 बच्चों को शिक्षित बनाने की कवायद की जा रही है। बच्चों में शिक्षा प्राप्त करने के लिए उत्सुकता रहे, इसके लिए उनकी ओर से समय-समय पर विभिन्न प्रतियोगिताओं और ज्ञान विज्ञान कार्यों का भी आयोजन किया जाता है।

गरीब बच्चों के लिए 'पुलिस वाली दीदी' की पाठशाला

'शिक्षा दान, महा कल्याण' यह फलसफा है वर्दी वाली दीदी का। महिला कांस्टेबल सारित शुक्ला केवल शहर की शांति व्यवस्था बनाए रखने की अपनी ड्यूटी को ही नहीं निभा रही हैं, बल्कि एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर अशिक्षा के अंधकार को मिटाने में भी अपना योगदान दे रही हैं। लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट में तैनात सारित शुक्ला लगन व सच्चे मन से गरीब बच्चों के जीवन मेें शिक्षा का उजाला फैला रही हैं।

क्लास ऑन रोड, हर दिन दो घंटे पढ़ाई

इस महिला कांस्टेबल को बच्चे मैैम या टीचर नहीं बल्कि 'पुलिस वाली दीदी' कहकर पुकराते हैं। वह इन गरीब बच्चों को पिछले एक साल से हर दिन दो घंटे पढ़ाती हैं। बाकी क्लासेस और उनकी क्लास में अंतर बस यह है कि न उनके पास क्लासरूम है और न कोई छत। खुले आसमान और रोड किनारे हर दिन यह क्लास लगती है। इस क्लास में ऐसे बच्चे आते हैं जिनके मां-बाप के पास उन्हें पढ़ाने के न तो पैसे हैं और न ही रहने को घर। डायल 112 में तैनात महिला कांस्टेबल सरिता शुक्ला जानकीपुरम में पुलिस वाली मैडम के नाम से मशहूर हैं। वह अपनी पाठशाला में 30 से ज्यादा बच्चों को पढ़ाती हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने कई बच्चों के तो सरकारी स्कूलों में दाखिले भी करवाए हैं।

गरीब बच्चों को दे रहीं शिक्षा

जानकीपुरम के चंद्रिका टावर में उनकी क्लास चलती है। पहले आस-पास के झुग्गी झोपड़ी के बच्चे उनके पढऩे आते थे, लेकिन अब खदरी, रेलवे क्रासिंग समेत कई जगहों से बच्चे हर दिन उन के पास पढऩे आते हैं। सरिता शुक्ला का कहना है कि उनकी ड्यूटी दो शिफ्ट में लगती है। जिस दिन ड्यूटी सुबह 6 से दोपहर 2 बजे तक होती है, उस दिन उनकी क्लास शाम 4.30 बजे लगती है। जिस दिन ड्यूटी दोपहर 2 से रात 8 बजे होती है तो उनकी क्लास सुबह 10 बजे से चलती है।

बच्चों को रह रहे शिक्षित

मैं और मेरे फ्रेंड्स हर्षित और आशीष कुमार अपने घरों के आसपास अक्सर गरीब बच्चों को ऐसे ही घूमते देखते थे। उसी समय मन में आया कि क्यों न इनको अपने फ्री टाइम में पढ़ाने का काम किया जाये। इसी को देखते हुए राजाजीपुरम में पहले शाम को 1 घंटा मिलकर पढ़ाना शुरू किया। उस समय केवल गिनती के ही बच्चे साथ जुड़े थे। हम लोगों का मानना है कि बच्चों को शिक्षित करके ही समाज में बदलाव लाया जा सकता है। इसी के तहत हम लगातार काम करते रहे और 2015-16 में इनोवेटिव पाठशाला के तहत इसे फुल टाइम करना शुरू किया। जहां गरीब बच्चों को फ्री में पूरी पढ़ाई कराई जाती है। इस समय हमारे साथ करीब 400 बच्चे जुड़े हुए हैं। इस काम के लिए हम लोगों को कोई फंडिंग नहीं मिलती है। हम जो कमाते हैं, उसी से इसको चला रहे हैं। इसके अलावा, अगर कोई मदद करता है तो उससे काफी सपोर्ट मिल जाता है। इसके अलावा, बड़ी बच्चियों को हम कढ़ाई-बुनाई भी सिखाते हैं, ताकि वे अपना जीवन यापन पूरे सम्मान के साथ कर सकें।

-विशाल कनौजिया

साइकिल से जला रहे शिक्षा की अलख

ट्यूशन पढ़ाने के दौरान कई ऐसे बच्चे आते थे, जो ट्यूशन फीस नहीं दे पाते थे। उनकी इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए करीब 1997 में ऐसे ही गरीब बच्चों को पढ़ाने की ठानी। जिसके तहत शुरुआत में कुछ गरीब बच्चों को अपने खर्चे से पढ़ाना शुरू किया। धीरे-धीरे साइकिल चलाते-चलाते अन्य जगहों पर जाने लगा और वहां के गरीब बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। मैं बीते 26 वर्षों से साइकिल से यात्रा कर गरीब बच्चों, बुजुर्गों के साथ सभी वर्ग को शिक्षित करने का काम कर रहा हूं। मैं आमदनी के लिए मजदूरी करता हूं, उससे जो कमाई होती है उसी से पढ़ाने का काम करता हूं। अगर कोई मदद कर देता है तो उससे भी अपना काम चला लेता हूं। मैं साइकिल से गांव-गांव व शहर-शहर जाकर पढ़ाने का काम करता हूं। साइकिल जहां रुक जाती है, वहीं पर पढ़ाई शुरू हो जाती है। समाज को शिक्षित के अपने इस अभियान के लिए मैंने शादी भी नहीं की है। मेरी इस मुहिम से बहुत सारे बच्चे स्कूल पहुंच गये हैं। यही बात मेरे मन को सुकून देती है। हालांकि, इस दौरान कई तरह की समस्याएं भी आती हैं। मेरे इस काम के लिए मेरा नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉड्र्स में भी आ चुका है। साथ ही, पूर्व गवर्नर राम नाइक भी मुझे सम्मानित कर चुके हैं।

-आदित्य कुमार