लखनऊ (ब्यूरो)। संजय गांधी पीजीआई का चौथा रिसर्च शो केस बुधवार को मनाया गया। जहां दो सौ से अधिक रिसर्च पेपर्स फैकल्टी और स्टूडेंट्स द्वारा प्रस्तुत किये गये। निदेशक प्रो। आरके धीमान ने बताया कि इनमें से 40 विशेष शोध को समिति द्वारा चुना गया। इन शोध वैज्ञानिकों को संस्थान के 40वें स्थापना दिवस समारोह के मौके पर सम्मानित किया जाएगा। वहीं, रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए इंट्रामुरल रिसर्च का बजट पांच से दस लाख किया जा चुका है। इससे नए और अधिक रिसर्च करने के प्रति रुचि बढ़ेगी। इस मौके पर अमेरिका से डॉ। शिखर मेहरोत्रा, सीडीआरआई के डॉ। अरुण त्रिवेदी और आईआईटी कानपुर के डॉ। संतोष कुमार मिश्रा ने व्याख्यान दिया।

स्टेरायड से इंफेक्शन का खतरा होगा कम

लंग्स में इंफेक्शन, सूक्ष्म रक्त वाहिका में रुकावट (वेस्कुलाइटिस), सीओपीडी सहित कई बीमारियों में स्टेरायड (इम्यूनो सप्रेसिव) देना पड़ता है। इसके लिए डॉक्टर्स द्वारा अमूमन हाई डोज डेक्सामेथासोन दिया जाता है। इससे फंगल इंफेक्शन होने की आशंका बढ़ जाती है। इसी को लेकर संस्थान के पल्मोनरी मेडिसिन के प्रो। जिया हाशिम की रिसर्च में पाया कि कम मात्रा में डेक्सामेथासोन की जगह वाइसोलोन, मिथाइन प्रिडलीसिलोन स्टेरायड देना चाहिए। इससे इंफेक्शन की आशंका कम हो जाती है। इसके लिए सौ से अधिक मरीजों पर शोध किया है। इस शोध को विश्व स्तर पर स्वीकार किया गया है। ऐसे में मरीजों को इलाज में बड़ी राहत मिलेगा।

जल्द बन सकती है दवा

नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर की दवा का निर्माण जल्द भारत में शुरू हो सकता है। इसके लिए संस्थान में चूहों पर शोध हुआ है। जिसमें संस्थान के एंडोक्राइनोलॉजी विभाग के डॉक्टरों को सफलता मिली है। विभाग के डॉ। रोहित सिन्हा के मुताबिक, खराब लाइफस्टाइल के कारण लोगों में नॉन अल्कोहलिक फैटी लीवर हो जाता है। जो आगे बढ़ने पर फाइब्रोसिस हो जाता है और लिवर ट्रांसप्लांट करने तक की नौबत आ सकती है। इसी को देखते हुए चूहों पर किये गये शोध में उस एंजाइम का पता चला है, जिससे फैटी लिवर को ठीक किया जा सकता है। मानव शरीर पर इसके प्रयोग की तैयारी की जा रही है। उन्होंने बताया कि इस शोध में शोधार्थी अर्चना तिवारी ने भी अहम भूमिका निभाई है।

बेवजह एंटीबायोटिक की जरूरत नहीं

आटो इम्यून डिजीज एसएलई से ग्रस्त मरीजों में बुखार का कारण पता लगाना होगा संभव होगा। इस बीमारी से ग्रस्त मरीज इमरजेंसी में बुखार के साथ आते हैं। बुखार का कारण बीमारी की सक्रियता या इंफेक्शन का पता लगाना जरूरी होता है, तभी इलाज की सही दिशा तय होती है। कारण का पता जल्दी लगाने के लिए क्लीनिकल इम्यूनोलाजी विभाग के डॉ। किशन मजिठिया ने विभाग की प्रमुख प्रो। अमिता अग्रवाल के साथ 159 मरीजों पर शोध किया। जिसमें पाया गया कि बैक्टीरियल इंफेक्शन होने पर सीआरपीए टीएलसी, न्यूट्रोफिल एवं लिम्फोसाइट का अनुपात, सीडी64, सीडी14 मार्कर बढ़ जाता है। यह सभी जांच संस्थान में उपलब्ध है और इनकी जांच रिपोर्ट चार से पांच घंटे में मिल जाती है। बुखार का कारण बैक्टीरियल इंफेक्शन होने पर एंटीबायोटिक चलाते है और बीमारी की सक्रियता के कारण बुखार होने पर इलाज उस दिशा में किया जाता है। इस मार्कर के कारण का सही पता लगने पर आनावश्यक एंटीबायोटिक मरीज को नहीं देना होता है। यदि कारण बीमारी की संक्रियता है तो एंटीबायोटिक का कोई रोल नहीं होता है। ऐसे में एंटीबायटिक के साइड इफेक्ट से बचाव हो सकेगा।

12 कोर प्रोस्टेट बायोप्सी का दर्द नहीं सहना पड़ेगा

अब प्रोस्टेट कैंसर के मरीजों को बायोप्सी का दर्द बार-बार नहीं सहना पड़ेगा। पीजीआई के यूरोलाजिस्ट एवं किडनी ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ प्रो। संजय सुरेका ने सौ से अधिक मरीजों पर शोध के बाद साबित किया है। यदि एडवांस प्रोस्टेट कैंसर है तो पूरे विश्व में प्रचलित 12 कोर बायोप्सी की जरूरत नहीं है। 12 कोर बायोप्सी में मल द्वार के जरिए 12 बार निडिल डाल कर प्रोस्टेट के 12 जगह से बायोप्सी को अल्ट्रासाउंड के जरिए लिया जाता है। यह काफी दर्द युक्त होता है। रक्त स्राव की आशंका के साथ इंफेक्शन की आशंका रहती है। प्रो। सुरेखा ने अपने शोध में साबित किया कि यदि प्रोस्टेट स्पेस्फिक एंडीजन 65 से अधिक है। रेक्टम एक्जामनेशन में प्रोस्टेट हार्ड है तो केवल पुष्टि के लिए दो कोर बायोप्सी की जरूरत है। इसमें केवल दो बार दो जगह से बायोप्सी लेना चाहिए। एडवांस प्रोस्टेट कैंसर के मरीजों मो दो कोर बायोप्सी से 97 फीसदी में बायोप्सी से कैंसर की पुष्टि हुई। हालांकि, प्रारंभिक प्रोस्टेट कैंसर के मामले में 12 कोर बायोप्सी ही कारगर है।