लखनऊ (ब्यूरो)। अभी तक फैटी लिवर की समस्या अधिकतर बड़ों में ही देखने को मिलती थी लेकिन अब बिगड़ी लाइफस्टाइल, प्रोसेस्ड फूड खाने, एक्सरसाइज न करने के चलते बच्चे भी इसका शिकार हो रहे हैं। फैट उनके लिवर में जम रहा है। यह जानकारी शनिवार को संजय गांधी पीजीआई के पीडिया गेस्ट्रोइंट्रोलॉजी के स्थापना दिवस पर आयोजित सेमिनार के दौरान फैकल्टी डॉ आघ्र्य सामंता ने दी।

साइलेंट एपिडेमिक कहा गया है
डॉ आघ्र्य ने बताया कि हर 10 में 1 से 2 बच्चों और मोटापा वाले बच्चों में हर तीन में 1 को फैटी लिवर प्रभावित कर रहा है। जिसकी वजह से कई बार लिवर ट्रांसप्लांट तक करना पड़ता है। यह बीमारी नहीं है। यह खराब लाइफस्टाइल के चलते हो रहा है। इसके कोई लक्षण भी नहीं होते हैं। इसकी पहचान के लिए हर बच्चे का ब्लड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड नहीं करा सकते हैं। ओपीडी में रोज दो से तीन बच्चे फैटी लिवर की समस्या लेकर आ रहे हैं। संदेह के आधार पर जांच कराने से ही इसकी जानकारी होती है, इसलिए इसे साइलेंट एपिडेमिक कहा जाता है। बच्चों को इससे बचाने के लिए हेल्दी डाइट लेनी चाहिए और एक्सरसाइज करवानी चाहिए।

लीवर डायलिसिस करना पड़ रहा
चिल्ड्रेन लीवर स्पेशलिस्ट डॉ नरेश शनमुगम ने बताया कि किडनी फेल्योर बच्चों में एक तरह का किडनी डायलिसिस की तरह प्रोसेस होता है। इसके बेहतर परिणाम मिलते हैं। इसमें लिवर से ब्लड निकाला जाता है और ब्लड कंपोनेंट को अलग करके संक्रमित प्लाज्मा को निकालकर प्योर ब्लड वापस भेज दिया जाता है। यह 3 से 4 बार करने से ब्लड प्यूरीफाइड हो जाता है और लिवर रीजनरेट हो जाता है। यह कोई स्थाई निवारण नहीं है लेकिन कुछ बच्चों में बेहद कारगर हो सकता है। देश में हर माह करीब 10 मामले ऐसे आ रहे हैं।

एक से तीन साल के बच्चों में अधिक दिक्कत
भारत में हेपेटाइटिस ए और सी के कारण बच्चों में लिवर फेल्योर हो रहा है। इसके जेनेटिक कारण भी होते हंै। इसके अलावा विल्सन डिजीज भारत में कॉमन है। इसमें जो बच्चे कॉपर का इनटेक करते हैं उनके लीवर को नुकसान पहुंचता है। यह समस्या एक से तीन साल के बच्चों में अधिक हो रही है।

छोटे बच्चों में लिवर फेल्योर के मामले लगातार बढ़ रहे हंै। जिसकी बड़ी वजह हेपेटाइटिस ए व सी है। इसके अलावा जेनेटिक कारण भी हंै।
- डॉ नरेश शनमुगम, चैन्ने

बड़ों की तरह बच्चों में फैटी लिवर की समस्या चिंता का विषय है। इसके कोई लक्षण नहीं होते हैं इसलिए ज्यादा मामले पकड़ में नहीं आते हैं।
- डॉ आघ्र्य सामंता, पीजीआई