लखनऊ (ब्यूरो)। डेंगू की बीमारी अब सीजनल नहीं रह गई है। एडीज मच्छर के अंडे तेज गर्मी से लेकर अत्यधिक ठंड तक में भी खुद को ढाल ले रहे हैं। थोड़ी सी भी परिस्थितियां अनुकूल होती हैं तो अंडों में से लार्वा निकल आता है। जिसके कारण डेंगू के मच्छर अब केवल मानसून में ही नहीं, बल्कि पूरे साल मिल रहे हैं। यही वजह है कि इन्हें कंट्रोल करना मुश्किल हो रहा है। एक्सपर्ट्स के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग भी इसकी एक बड़ी वजह है।

मौसम में बदलाव से बदला लाइफ साइकिल

आईआईटी मंडी और इन्स्टेम, बेंगलुरु की रिसर्च टीम ने जैव-रासायनिक प्रक्रियाओं की खोज की है। जो डेंगू पैदा करने वाले मच्छर के अंडों को कठिन परिस्थितियों में जीवित रहने और अनुकूल परिस्थितियां मिलने पर दोबारा जीवित होने में सक्षम बनाता है। इस स्टडी की मदद से डेंगू मच्छर को कंट्रोल करने में मदद मिल सकती है। वहीं, लोहिया संस्थान में माइक्रोबायलॉजी विभाग की हेड डॉ। ज्योत्सना अग्रवाल बताती हैं कि डेंगू अब सीजनल बीमारी नहीं है। क्योंकि अब हर सीजन में भी बदलाव देखने को मिल रहा है। इसकी एक बड़ी वजह ग्लोबल वार्मिंग भी हो सकती है। मौसम में अचानक आ रहे बदलाव के चलते जीव-जंतुओं का लाइफ साइकिल भी बदला है। वहीं, शहरों में कूड़ा, गंदगी, पॉल्युशन आदि भी ज्यादा हो रहा है। ये सब चीजें आपस में रिलेटेड हैं, इसलिए बीमारियों का भी असर अब पूरे साल देखने को मिल रहा है।

स्ट्रेन डी2 ज्यादा खतरनाक

डॉ। ज्योत्सना ने बताया कि डेंगू का स्ट्रेन जानने के लिए पीसीआर करते हैं। डेंगू के मुख्यता चार स्ट्रेन होते हैं। सीजन के अनुसार डेटा देखा जाता है कि किस सीजन में कौन से स्ट्रेन का ट्रेंड चल रहा है। हमारे यहां जांच में डी2 स्ट्रेन ज्यादा मिलता है। चूंकि हर सैंपल का पीसीआर नहीं होता है इसलिए और भी स्ट्रेन हो सकता है। वहीं, डी2 स्ट्रेन सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है। इसमें ब्लीडिंग ज्यादा होती है। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि जिनको पहले डेंगू हो चुका है, अगर उनको दोबारा डेंगू होता है, तो वह ज्यादा सीरियस होता है। ऐसे में लोगों को ज्यादा सतर्क रहना चाहिए।

तापमान का असर मच्छरों पर नहीं दिख रहा

जिला सर्विलांस अधिकारी डॉ। निशांत निर्वाण बताते हैं कि डेंगू को लेकर लगातार अभियान चलाया जा रहा है। मच्छर अधिकतर 25-35 डिग्री तापमान के बीच ज्यादा पनपते हैं। वहीं, तापमान 20 डिग्री के नीचे हो जाये तो मच्छर गायब हो जाते हैं। पर पैटर्न में बदलाव देखने को मिल रहा है। अब मच्छर हर तरह के तापमान में पनप रहे हैं। चूंकि डेंगू मच्छर के अंडों को पनपने के लिए एक बूंद पानी ही काफी होता है। ऐसे में पनपने की थोड़ी सी भी परिस्थिति मिले तो लार्वा निकल आता है। इसको देखते हुए विभाग लगातार फॉगिंग और एंटी-लार्वा का छिड़काव तो करवा ही रहा है। साथ ही सोर्स रिडक्शन भी किया जा रहा है। लोगों को ज्यादा सतर्क रहना चाहिए और घर में कहीं भी पानी नहीं ठहरने देना चाहिए।

एंटी-लार्वा छिड़काव भी हो रहा बेअसर

अंडों से लार्वा न पनपे इसके लिए पहले केरोसिन का इस्तेमाल किया जाता था, पर बाद में इसे बंद कर दिया गया। जिसके बाद अन्य एंटी-लार्वा का इस्तेमाल किया जाने लगा। हालांकि, इसके बावजूद फॉगिंग और एंटी-लार्वा छिड़काव का मच्छरों पर कोई असर देखने को नहीं मिला, जिसकी वजह से समस्या और बढ़ रही है।

डेंगू बीमारी अब सीजनल नहीं रही है। मच्छरों को कंट्रोल करने वाले साधन अब ज्यादा इफेक्टिव नहीं देखने को मिल रहा है। ऐसे में लोगों को ज्यादा सतर्क रहना चाहिए।

-डॉ। ज्योत्सना अग्रवाल, लोहिया संस्थान

तापमान का असर अब मच्छरों पर देखने को नहीं मिल रहा है। पर विभाग पूरी तरह से काम कर रहा है। डेंगू को लेकर सघन अभियान चलाया जा रहा है।

-डॉ। निशांत निर्वाण, जिला सर्विलांस अधिकारी