लखनऊ (ब्यूरो)। भारत में गर्भावस्था में हाई बीपी के केस 5 से 15 पर्सेंट तक मिलते हैं, जबकि इक्लैम्प्सिया के केस लगभग 1.5 पर्सेंट होते हैं। वहीं, उत्तर प्रदेश में गर्भावस्था में हाई बीपी का प्रसार विभिन्न अध्ययनों से 4.01 पर्सेंट से 10 पर्सेेंट तक होता है, जो चिंता का विषय है। ऐसे में, महिलाओं को विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि यह समस्या लेकर आने वाली प्रेग्नेंट महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यह जानकारी लोहिया संस्थान के मातृ एवं शिशु रेफरल हॉस्पिटल की डॉ। मालविका मिश्रा ने दी।

बीपी कंट्रोल रखना बेहद जरूरी

डॉ। मालविका मिश्रा के मुताबिक, गर्भावस्था में हाई बीपी का प्रबंधन बहुत आवश्यक है। बीपी असंतुलित रहने पर मां को फिट्स आने की आशंका रहती है। यह बहुत ही गंभीर स्थिति होती है। इसमें मां अचानक बिना किसी सूचना के अपने शरीर का नियंत्रण खो देती है और कुछ भी दर्दनाक होने की आशंका बढ़ जाती है। हालांकि, सही देखभाल से हम समस्याओं का सामना कर सकते हैं। वहीं, ठंड में हार्ट अटैक की घटनाएं भी ज्यादा होती हैं और इस मौसम में ब्लड प्रेशर सही रख पाना एक चुनौती है। खासकर हर गर्भवती को अपना ब्लड प्रेशर नियमित चेक करते रहना चाहिए। यह गर्भस्थ शिशु के विकास में सहायक होता है। ब्लड प्रेशर दुरुस्त रहने से गर्भस्थ शिशु को आवश्यक विटामिन और प्रोटीन मिलता रहता है। साथ ही इससे उसका वजन भी संतुलित रहता है।

नियमित चेकअप कराएं

हाई ब्लड प्रेशर से समय से पूर्व डिलीवरी की आशंका रहती है। वहीं, अगर महिला को गर्भावस्था के दौरान हाई ब्लड प्रेशर की समस्या है तो प्रसव के 20 सप्ताह के बाद हृदय संबंधी बीमारियों के होने का खतरा बढ़ जाता है। गर्भवती महिलाएं नियमित चेकअप्स कराएं और अपने डॉक्टर के साथ समय-समय पर बातचीत करें। इससे वह भी स्वस्थ रहेंगी और उनका बच्चा भी स्वस्थ पैदा होगा।