लखनऊ (ब्यूरो)। बहुत से लोगों के सपने उनकी जिंदगी के अलग-अलग पड़ावों पर आईं जिम्मेदारियों के तले दब जाते हैैं। कई बार पर्सनल तो कई बार प्रोफेशनल लाइफ में बिजी होने की वजह से उनके शौक कहीं पीछे छूट जाते हैैं। हालांकि, बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो अपने सपनों का पीछा करना नहीं छोड़ते और देर से ही सही उन्हें पूरा करने का समय निकाल ही लेते हैं। आज हम 40 साल की उम्र का पड़ाव पार कर चुके कुछ ऐसे लोगों की बात कर रहे हैं जिन्हें म्यूजिक से प्यार था और उन्होंने इसकी बारीकियां सीखकर अपना सपना साकार भी किया। पढ़ें नंदिनी चतुर्वेदी की रिपोर्ट

बचपन से थी संगीत में रुचि

भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय से पढ़ाई कर चुके शिवनाथ मौर्य बताते हैैं कि उनको बचपन से ही संगीत में काफी रुचि थी। हालांकि, जैसे-जैसे वह बड़े होते गए, उनकी जिम्मेदारियां बढ़ती गईं। वह जब सुबह पार्क में टहलने जाते थे तब अपने ग्रुप के साथ गाना गाते थे। ऐसे ही गाते-गाते उन्होंने इसे ढंग से सीखने के बारे में सोचा और अपने शौक को फिर से जगाया। तब उन्होंने भातखंडे ज्वाइन किया और सुगम संगीत में एडमिशन लिया और अपनी प्रोफेशनल लाइफ से अपनी हॉबी के लिए वक्त निकाला।

समय का सदुपयोग करने के लिए सीखा संगीत

हाउसवाइफ आभा शुक्ला ने भी भातखंडे से तीन साल का कोर्स किया है। वह बताती हैैं कि उनका भजन में काफी इंट्रेस्ट था। शादी के बाद कुछ समय तक तो जिम्मेदारियां बढ़ीं, लेकिन एक समय आया जब उनके बच्चे भी पढ़ने में व्यस्त हो गए। इसी समय का सदुपयोग करते हुए उन्होंने भातखंडे से तीन साल का कोर्स किया, जिसमें उन्होंने सुगम संगीत सीखा और अपने भजन के इंटरेस्ट को जगाए रखा।

शौक से करियर तक का रहा सफर

पेशे से कलाकार रश्मि उपाध्याय ने बताया कि जब वह पढ़ रही थीं तभी उनकी शादी हो गई। ऐसे में अपने लिए उनके पास समय ही नहीं बचा। जब बच्चे बड़े होकर हॉस्टल चले गए तब खुद के लिए समय निकाला। एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी से संगीत में विशारद करने के बाद उन्होंने सुगम संगीत में भातखंडे से एमए किया। वहां टॉप करने के बाद वहीं पर डिप्लोमा के बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। आज वह इसमें पीएचडी कर रही हैैं। गाने के लिए कई संस्थाएं उन्हें बुलाती हैैं।

तबला और हारमोनियम भी सीखा

सुनीता सिंह, जो एक हाउसवाइफ हैं, ने बताया कि उन्हें संगीत में बहुत रुचि थी। उनके पति ने इसको समझा और उन्हें प्रोत्साहित किया। इसके बाद उन्होंने भातखंडे से तीन साल का कोर्स किया। साथ ही उनकी वर्कशॉप में तबला और हारमोनियम भी सीखा।

सपने पूरे करने की कोई उम्र नहीं होती

पेशे से कलाकार अलका चतुर्वेदी का मानना है कि सपनों को पूरा करने की कोई उम्र नहीं होती है। इसी सोच के साथ उन्होंने 2022 में भातखंडे से वोकल क्लासिकल में एमए किया था, जिसमें वह डिस्टिंक्शन के साथ पास हुई थीं। उन्होंने बताया कि उनके जैसे और भी लोग हैं जोकि इस उम्र में संगीत में भी संगीत में इंटरेस्ट ले रहे हैैं। आज वह जगह-जगह कार्यक्रमों के लिए जाती हैैं।

भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय में हर उम्र के लोग एडमिशन लेने आते हैैं और सुगम संगीत के अलावा तबला, पखावज, हारमोनियम जैसे इंस्ट्रूमेंट्स भी सीखते हैैं। डिप्लोमा में 40 से अधिक उम्र वाले लोग ज्यादा रहते हैैं। हालांकि, यूजी और पीजी में भी एडल्ट्स एडमिशन ले रहे हैैं।

- कमलेश दूबे, टीचर, भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय