लखनऊ (ब्यूरो)। बच्चों में निमोनिया की वजह से मौत सबसे ज्यादा होती है, लेकिन अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद हो रही मौतें बड़ी चिंता का कारण हैं। फॉलोअप न होने से यह खतरा और बढ़ रहा है। इसको लेकर केजीएमयू के पीडियाट्रिक विभाग ने यूपी-बिहार के विभिन्न अस्पतालों से डेटा लेकर स्टडी करते हुए पाया कि गंभीर निमोनिया के कारण नेशनल हॉस्पिटल मोर्टेलिटी रेट 1.9 पर्सेंट के मुकाबले अस्पताल से डिस्चार्ज होने पर तीन माह के भीतर करीब 3 पर्सेंट बच्चों की मौत घरों में ही हो जाती है, जोकि चिंता का विषय है। यह स्टडी डॉ। शैली अवस्थी और डॉ। अनुज कुमार पांडे द्वारा की गई है। इसे लैंसेट एशिया में पब्लिश किया जा चुका है।

117 अस्पतालों को किया गया शामिल

दुनियाभर में 5 वर्ष से कम उम्र के 14 पर्सेंट बच्चों की मौत निमोनिया सीएपी से हो जाती है। इसी को देखते हुए भारतीय राष्ट्रीय लक्ष्य 2030 तक पांच साल से कम उम्र की मृत्युदर को 2021 में 41.9 से घटाकर 23 प्रति हजार जीवित जन्म करना है। इसलिए वर्तमान अध्ययन को लेकर काम करना बेहद जरूरी है। केजीएमयू के पीडियाट्रिक विभाग की पूर्व हेड डॉ। शैली अवस्थी ने बताया कि निमोनिया से होने वाली मौतों को लेकर यूपी के लखनऊ व इटावा और बिहार के पटना व दरभंगा के 117 अस्पतालों के सीएपी निगरानी नेटवर्क से कलेक्ट किया गया। जिसमें पाया गया कि अस्पताल से डिस्चार्ज होने वाले बच्चों में करीब 3 पर्सेंट की मौत तीन माह के भीतर ही घरों में हो जाती है, जोकि एक बड़ा आंकड़ा है।

ये प्रमुख कारण

डॉ। शैली अवस्थी के मुताबिक, इन मौतों की पीछे का बड़ा कारण जन्मजात दिल का कोई रोग, गंभीर कुपोषण, ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले और रेडियोलॉजिकल निमोनिया से पीड़ित लोगों में अधिक था।

6 माह तक फॉलोअप जरूरी

डॉ। शैली अवस्थी के मुताबिक, निमोनिया से पीड़ित बच्चों को अस्पताल में इलाज तो मिल जाता है। पर बाद में उनका फॉलोअप नहीं किया जाता। स्टडी में सुझाव दिया गया है कि गंभीर मामलों में कम से कम 6 माह तक घर पर फॉलोअप होना चाहिए, ताकि इन मौतों के आंकड़ों को कम किया जा सके। इसके लिए एक विस्तृत नेटवर्क बनाने की जरूरत है।