लखनऊ (ब्यूरो)। नींद की कमी से कई तरह की मानसिक बीमारियों के होने का खतरा काफी बढ़ जाता है। बचपन में ही अगर नींद न आने या कम आने की समस्या हो जाए तो बड़े होने पर साइकोसिस की समस्या हो सकती है। बीएचयू के न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट में की गई स्टडी से यह बात सामने आई है। ऐसे में इस समस्या का समय रहते इलाज कराना जरूरी है।
मतिभ्रम हो जाता है
केजीएमयू के साइकियाट्री विभाग के डॉ। आर्दश त्रिपाठी ने बताया कि साइकोसिस एक मानसिक रोग है, जिसका मुख्य लक्षण मतिभ्रम होना होता है। इसमें लगता है कि कोई मुझे मारना चाहता है, जहर देना चाहता है, कानों में अजीब तरह की आवाजें सुनाई देती हैं। ओपीडी में एक तिहाई मरीज इस समस्या को लेकर आ रहे हैं। यह बीमारी पुरुषों में 18 से 32 साल की उम्र में देखने को मिलती है। वहीं, महिलाओं में इस बीमारी के लक्षण 18 से 25 वर्ष की उम्र में दिखने लगते हैं।
इस बीमारी के प्रमुख कारण
- ब्रेन में केमिकल की गड़बड़ियों के कारण
- नींद न आने की समस्या का होना
- बचपन में घर-परिवार से अलग रहना
- अपनी भावनाएं दूसरों से न साझा करना
लोग इसे बीमारी ही नहीं मानते
सिविल अस्पताल के साइकियाट्रिस्ट डॉ। दीप्ती सिंह बताती हैं कि साइकोसिस एक कॉमन बीमारी है। लोगों को इसका पता ही नहीं होता है और बहुत से लोग तो इसे बीमारी ही नहीं मानते हैं। यही कारण है कि जब समस्या काफी बढ़ जाती है तो वह इसका इलाज कराने के लिए आते हैं। इन दिनों रोज ओपीडी में इस समस्या को लेकर 30 के करीब मरीज आ रहे हैं। इसका मुख्य कारण देर रात तक जागना है जिससे न सिर्फ तनाव बढ़ता है बल्कि दिमाग के केमिकल भी अनियंत्रित हो जाते हैं।
लंबी चलती है दवा
डॉ। दीप्ती ने बताया कि इसकी दवाएं डेढ़ से दो साल तक चलती हैं। कई बार दवा न लेने पर इंजेक्शन भी देने पड़ते हैं। समस्या गंभीर हो जाती है तो शाक तक देने पड़ते हैं। इस बीमारी के शिकार लोग अकेले डाक्टर के पास नहीं आते हैं और इलाज शुरू होने के बाद कई मरीज तो दवा भी खाने से आनाकानी करते हैं। ऐसे में इस दौरान मरीज को परिजनों का पूरा साथ चाहिए होता है।
मरीज को क्या आभास होता है
- कोई उसे बुला रहा है या उसकी बातें सुन रहा है
- दिमाग में जो कुछ है उसे कोई चुरा रहा
- मैं जो सोच रहा वो दूसरों को पता चल रहा है
- हर जगह बदबू महसूस होना
- उसे किसी साजिश का शिकार बनाया जा रहा है
साइकोसिस एक बेहद कॉमन समस्या है। जिसमें नींद की कमी एक रिस्क फैक्टर जरूर है। ओपीडी में एक तिहाई मरीज इसी के आते हैं।
- डॉ। आदर्श त्रिपाठी, केजीएमयू
लोग इसे बीमारी मानते ही नहीं है। जिसके कारण दवा आदि शुरू नहीं करते है। ऐसे में परिजनों का सहयोग बेहद जरूरी है।
- डॉ। दीप्ती सिंह, सिविल अस्पताल