लखनऊ (ब्यूरो)। 'साहब! एडिशनल एसपी के बेटे की एक्सीडेंट में मौत हो गई थी तो आपकी पुलिस ने 24 घंटे के भीतर ही आरोपियों को पकड़कर सलाखों के पीछे भेज दिया था, लेकिन मुझे इंसाफ क्यों नहीं दिया जा रहा। 53 दिन पहले शहीद पथ पर मेरे बेटे पुरुषार्थ की एक एसयूवी ने जान ले ली थी, लेकिन आजतक उस गाड़ी की पहचान तक न हो सकी,' यह दर्द उस परिवार का है जिसने अपना इकलौता बेटा सड़क हादसे में खो दिया। यह तो सिर्फ एक परिवार का दर्द है, ऐसे न जाने कितने परिवार न्याय की आस लगाए बैठे हैं, जिन्होंने किसी सड़क हादसे में किसी अपने को खो दिया था

केस-1

थानों के चक्कर काटे, नहीं मिला इंसाफ

सत्यम सिटी, पारा, डिप्टी खेड़ा के रहने वाले विनोद उपाध्याय ने बताया कि 4 अक्टूबर 2023 को उनके बेटे पुरुषार्थ को फिनिक्स प्लासियो मॉल, शहीद पथ के पास एक तेज रफ्तार एसयूवी ने टक्कर मार दी थी। जिससे उसकी मौत हो गई। घटना को 53 दिन बीत गए, लेकिन पुलिस आरोपी को तलाश नहीं सकी है। कई बार थाने में चक्कर भी काटे, सिर्फ एक ही जवाब मिला कि विवेचना चल रही है।

केस-2

कैमरा भी लगा है, फिर भी नहीं पकड़ा गया आरोपी

सीतापुर के सेमरागौढ़ी निवासी लज्जाराम ने बताया कि वह 21 नवंबर को भतीजे सचिन के साथ बाइक से घर लौट रहे थे। वह हजरतगंज वीआईपी गेस्ट हाउस के पास पहुंचे तो पीछे आ रही एक तेज रफ्तार अज्ञात गाड़ी ने जोरदार टक्कर मार दी, जिससे सचिन की मौत हो गई। अबतक इस केस में पुलिस कुछ भी नहीं कर पाई है, जबकि यहां पर चौराहों पर कैमरा भी लगा है। पुलिस केस में हीलाहवाली कर रही है। उन्होंने बताया कि सचिन घर में इकलौता बेटा था। उसके खर्चे से परिवार चलता था।

60 प्रतिशत केस पेंडिंग

शहर की सड़कों पर आए दिन हिट एंड रन के केस होते हैं। एक आंकड़े के मुताबिक, रोजाना ऐसे मामलों में औसतन दो मौतें होती है। आंकड़े बताते हैं कि जनवरी से लेकर अबतक करीब 450 लोगों की सड़क हादसों में मौत हो चुकी है। इनमें से लगभग 60 प्रतिशत केस हैं, जिनमें अबतक आरोपियों तक पुलिस पहुंची ही नहीं, यानी हादसा करने वाली गाड़ियों की पहचान ही नहीं हो सकी।

सीसीटीवी पर निर्भर पुलिस

आंकड़ों के मुताबिक, शहर के अलग-अलग हिस्सों में 24 हजार से ज्यादा कैमरे लगाए गए हैं, जो आईटीएमएस से ऑपरेट होते हैं। कहीं भी एक्सीडेंट होने पर पुलिस फौरन इन सीसीटीवी कैमरों को चेक करती है। पुलिस घटनास्थल और आसपास के कैमरों को खंगालती है, ताकि वाहन नंबर की पहचान हो सके, लेकिन हकीकत तो यह है कि शहर के कई ऐसे प्वाइंट्स हैं, जहां पर कैमरा लगा ही नहीं है, जिसकी वजह से हिट एंड रन केस सॉल्व ही नहीं हो पाते हैं। जेसीपी लॉ एंड आर्डर उपेंद्र कुमार अग्रवाल ने बताया कि पेंडिंग केसेस में आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस काम कर रही है।

10 परसेंट केस में ही सजा

एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि हजारों केस पेडिंग हैं। हिट एंड रन के मामले में सजा का प्रतिशत इसलिए भी कम है क्योंकि केस के ट्रायल में इतनी ज्यादा देरी होती है कि असली आरोपी बच जाता है। ज्यादातर मामलों में गवाह गवाही देने ही नहीं पहुंचते या फिर अपना बयान बदल देते हैं। ट्रक और बस एक्सीडेंट में होने वाली मौतों कोकई बार पुलिस अज्ञात में दर्ज कर देती है। जिसके चलते भी मृतक को न्याय नहीं मिल पाता है। दूसरा पहलू यह भी है कि एक्सीडेंट क्लेम लेने के बाद लोग उसी को न्याय समझ लेते हैं और आरोपी को सजा दिलाने की पैरवी पर ध्यान नहीं देते। महज 10 परसेंट केस हैं, जिनमें आरोपियों को सजा होती है।

10 साल तक सजा

हिट एंड रन केस में पुलिस आईपीसी की धारा 304 ए के तहत एफआईआर दर्ज करती है। इसके बाद आरोपी चालक की गाड़ी नंबर के आधार पर पहचान करती है। इस धारा के तहत 10 साल सजा और जुर्माना का प्रावधान है।