लखनऊ (ब्यूरो)। एक तरफ जहां घरों में लगी होर्डिंग्स जानलेवा बनी हुई हैैं, वहीं दूसरी तरफ एक हजार से अधिक घरों या ऑफिसेस की छतों पर लगे मोबाइल टावर भी किसी बड़े खतरे से कम नहीं हैैं। अगर किसी घर में मोबाइल टावर लगा हुआ है तो नगर निगम और एलडीए, दोनों की मॉनीटरिंग संबंधी जिम्मेदारी है, पर दोनों ही विभागों की ओर से व्यापक स्तर पर कोई चेकिंग अभियान नहीं चलाया जाता। राजधानी के रिहायशी एरिया जैसे इंदिरानगर, आलमबाग, गोमतीनगर, हुसैनगंज, कृष्णानगर, फैजाबाद रोड के आसपास कई इमारतों में आसमान छूते मोबाइल टावर्स को लगा हुआ देखा जा सकता है। कई ऑफिसेस में तो इन टावर्स को सर्वर के लिए यूज किया जाता है।

हवा चलने पर खतरा

अमूमन मोबाइल टावर की ऊंचाई तीन मीटर से 40 मीटर के करीब होती है। गुजरते वक्त के साथ इनकी संख्या तेजी से जरूर बढ़ी है, लेकिन इनका एरिया कम हो गया है। पहले एक टावर से 20 किमी तक का एरिया कवर किया जाता था, लेकिन ट्राई के नए नियम के अनुसार, अब इनका एरिया 500 मी। से भी कम रह गया है।

1500 से किराये की शुरुआत

जिन घरों में मोबाइल टावर लगाए जाते हैैं, उनके भवन स्वामियों को 1500 रुपये किराया दिए जाने से शुरुआत होती है। हालांकि, यह मिनिमम रेट है और इसके बाद भवन स्वामियों की ओर से अपनी शर्तों के आधार पर भी किराया लिया जाता है, जो 10 हजार से 20 हजार हर महीने तक हो सकता है। हालांकि, इतना किराया एरिया पर भी डिपेंड करता है।

पब्लिक करती है विरोध

जिन एरियाज में घरों में मोबाइल टावर लगाए जाते हैैं, वहां की पब्लिक की ओर से विरोध जरूर दर्ज कराया जाता है। इसके बावजूद विरोध को नजरअंदाज करते हुए भवन स्वामी की सहमति से मोबाइल टावर लगा दिए जाते हैैं। लोगों का मानना है कि मोबाइल टावर की वजह से उनकी हेल्थ पर विपरीत असर पड़ सकता है, जबकि डॉक्टर्स इसको खारिज करते हैं।