लखनऊ (ब्यूरो)। एलयू में सोशियोलॉजी विभाग के डॉ एसके चौधरी बताते हैं कि समय के साथ सोसाइटी में कई बदलाव हुए हैं। जिसके चलते आज के फादर मार्डन एटिट्यूड अपना रहे हंै। इसमें भारतीयता का भी ध्यान रखा जा रहा है। अब वे बिना वजह बच्चों के बीच दखल नहीं दे रहे हैं। बच्चों को इंडिपेंडेंट बनाया जा रहा है। पिता अब पहले की तरह बच्चों पर अपनी बातें थोप नहीं रहे हैं। सिर्फ दो प्रतिशत पिता ही पहले की तरह बिहेव कर रहे हैं। मिडिल क्लास में यह समस्या अधिक मिलती है। पहले पितृसत्तात्मक सोच चलती थी, उसमें अब सकारात्मक बदलाव आया है।

पिता की भूमिका पहले से ज्यादा सर्पोटिव
मैं और मेरी वाइफ निधि श्रीवास्तव दोनों वर्किंग हैं। वो विशेष सचिव अवस्थापना एवं औद्योगिक के तौर पर कार्यरत हैं। मेरी दो बेटियां सुहाना और आम्रा हैं जो इस समय पढ़ाई कर रही हैं। हम दोनों के वर्किंग होने के चलते एक पिता के रूप में मेरे रोल में बदलाव आया है। हम उन्हें सही-गलत के बारे में तो बताते ही हैं लेकिन अपनी बात मनवाने का दबाव नहीं डालते हैं। हम उन्हें इंडिपेंडेट होने का महत्व बताते हैं। बच्चों को लेकर हम दोनों मिलकर डिसीजन लेते हैं। हमारा मानना है कि समय के साथ खुद में भी बदलाव लाना जरूरी है। पिता के तौर पर आपको भी खुद में बदलाव लाना होगा।
- आरपी सिंह, निदेशक हिंदी संस्थान

एक पिता का बड़ी भूमिका है
मैं और मेरी वाइफ इंदुलता दोनों डॉक्टर हैं। हमारा एक बच्चा है, जो 7वीं में पढ़ता है। हम नौ घंटे तक काम करते हैं ऐसे में पिता के रूप में मेरी भूमिका बढ़ जाती है। बच्चा अधिकतर समय हेल्पर के साथ बिताता है, ऐसे में घर आकर मैं समय मिलते ही उसकी पढ़ाई और अन्य चीजों में मदद करता हूं। कई बार वाइफ को इमरजेंसी में रात को भी जाना पड़ता है, उस दौरान बच्चे की जिम्मेदारी मेरी ही रहती है। बच्चा जब छोटा था तो उसे बोतल से दूध पिलाने का काम मेरा ही था। बच्चे को सही गलत की सीख देना, उसे सपनों को पूरा करने के लिए मोटिवेट करना एक पिता की भी जिम्मेदारी है। आज के फादर अपने बच्चों को खुले आकाश में उडऩे देना चाहते हैं।
- डॉ संदीप साहू, पीजीआई

बेहतर निर्णय ले पाते हैं
समाज में काफी बदलाव आया है। आज के पिता घरों के काम में हाथ बंटाने लगे हैं। पहले यह काम महिलाओं का ही माना जाता था। बच्चे जब पिता को घर का काम करते देखते हैं तो उनमें समानता की भावना आती है। मैं और मेरी वाइफ डा। शीतल वर्मा दोनों वर्किंग हैं। सभी निर्णय हम मिलकर लेते हैं। बच्चों की क्वालिटी लाइफ और क्वालिटी एजुकेशन पर हमारा अधिक फोकस रहता है। वर्किंग पेरेंट्स के बच्चे जल्द इंडिपेंडेंट हो जाते हैं। वे पेरेंट्स की तरह ही मेहनत करने लगते हैं। यही नहीं छोटे-छोटे डिसीजन वे खुद लेने लगते हैं। इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आते हैं।
- डॉ सौरभ कश्यप, केजीएमयू