- कुंडली में पितृ दोष तो करें तर्पण

- श्राद्ध करने से पितर होते हैं तृप्त

LUCKNOW: पितृपक्ष की शुरुआत पूर्णिमा श्राद्ध के साथ ही बुधवार से हो गई। गोमती के घाट पर तिलांजलि और ¨पडदान के दौरान परिवारीजन की आंखें नम हो गई। सुबह ¨पडदान व तिलांजलि के बाद दोपहर में उनकी पसंद का भोजन बनाया। पहले पूर्वजों के नाम से निकाला और फिर कौआ, गाय व अन्य बेजुबानों को खिलाकर उनकी आत्मा को तृप्त करने का विधान किया। कुडि़या घाट, लक्ष्मण मेला स्थल के साथ ही झूलेलाल घाट व लल्लूमल घाट पर शारीरिक दूरी के साथ लोगों ने श्राद्ध किया।

पूर्वज देते हैं सुख व शांति

आचार्य अनुज पांडेय ने बताया कि भादों मास की पूर्णिमा तिथि के साथ ही श्राद्ध पक्ष की शुरुआत होती है। 17 सितंबर तक हमारे पितर घर में विराजमान होंगे। मान्यता है कि पूर्वज घर में विराजमान होकर सुख, शांति व समृद्धि प्रदान करते हैं। जिनकी कुंडली में पितृ दोष हो, उनको अवश्य तर्पण करना चाहिए। श्राद्ध करने से हमारे पितर तृप्त होते हैं। जिन लोगों की मृत्यु पूर्णिमा को हुई है, वे पूर्णिमा को सुबह ¨पडदान करके दोपहर में पूर्वजों की पसंद का भोजन खिलाते हैं। गायत्री परिवार के उमानंद शर्मा ने बताया कि शारीरिक दूरी का पालन करते हुए एक साथ 18 लोगों ने ¨पडदान कर किया। शहीदों के नाम भी ¨पडदान किया गया।

यह है श्राद्ध

आचार्य शक्तिधर त्रिपाठी ने बताया कि पूर्वजों को जलदान व ¨पडदान के रूप में समर्पित किया गया भोजन ही श्राद्ध कहलाता है। देव, ऋषि और पितृ ऋण के निवारण के लिए श्राद्ध कर्म जरूरी माना गया है। अपने पूर्वजों का स्मरण करने और उनके मार्ग पर चलने और सुख-शांति की कामना ही श्राद्ध कर्म है।

ऐसे करें श्राद्ध

पं.जितेंद्र शास्त्री ने बताया कि पहले यम के प्रतीक कौआ, श्वान और गाय को भोजन का अंश निकालना चाहिए। किसी पात्र में दूध, जल, तिल और पुष्प लेकर कुश और काले तिलों के साथ तीन बार तर्पण करें। ऊं पितृदेवताभ्यो नम: का जाप भी करते रहें। कोरोना संक्रमण काल में पुरोहित न आने पर आप खुद ही यह कार्य संपन्न कर सकते हैं। पंडित का दान गरीबों में बांटा जा सकता है। बाएं हाथ में जल का पात्र लें और दाएं हाथ के अंगूठे को पृथ्वी की तरफ करते हुए उस पर जल डालते हुए तर्पण करते रहें। उसी समय दान को भी निकालना श्रेयस्कर होगा। आपके पास कोई सामग्री नहीं है तो आप दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके खड़े हो जाइए। अपने दाएं हाथ के अंगूठे को पृथ्वी की ओर करिए। 11 बार ऊं पितृदेवताभ्यो नम: और ऊं मातृ देवताभ्यो नम: का जाप करें, तो भी आपका श्राद्ध पूरा हो जाता है।

इसका रखें ध्यान

-श्राद्ध के दिन तेल और साबुन का प्रयोग न करें

-नए वस्त्र न पहनें,

-तामसिक भोजन न करें।

-पूर्वजों को याद कर उनके कर्मों का बखान करें।

-गरीबों और बेजुबानों को भोजन कराएं।

-प्रतिदिन ऊं पितृ देवताभ्यो नम: और ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम:का जाप करें।

-श्रीमद्भगवदगीता या श्रीमद्भागवत का पाठ करें।

श्राद्ध का भोजन गरीबों में बांटें

आचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि पुरुष का श्राद्ध पुरुष को व महिला का श्राद्ध महिला को करना चाहिए। कोरोना काल में पुरोहित नहीं हैं तो आप श्राद्ध का भोजन मंदिर में या गरीबों में बांट सकते हैं। श्राद्ध को नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि हमारे पूर्वज अपनी मृत्यु तिथि को श्राद्ध की अपेक्षा करते हैं। उनके दिवंगत होने की तिथि को श्राद्ध करना चाहिए। तिथि याद न होने की दशा में पितृ अमावस्या को अवश्य श्राद्ध करना चाहिए।

17 को सर्वपितृ अमावस्या

3 सितंबर - प्रतिपदा श्राद्ध

4 सितंबर - द्वितीया श्राद्ध

5 सितंबर - तृतीया श्राद्ध

6 सितंबर - चतुर्थी श्राद्ध

7 सितंबर - पंचमी श्राद्ध

8 सितंबर - षष्ठी श्राद्ध

9 सितंबर - सप्तमी श्राद्ध

10 सितंबर - अष्टमी श्राद्ध

11 सितंबर- नवमी श्राद्ध

12 सितंबर- दशमी श्राद्ध

13 सितंबर- एकादशी श्राद्ध

14 सितंबर - द्वादशी श्राद्ध

15 सितंबर-त्रयोदशी श्राद्ध

16 सितंबर चतुर्दशी श्राद्ध

17 सितंबर सर्वपितृ अमावस्या