- सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस ने किया हाईकोर्ट के नये भवन का उद्घाटन

- बोले, जनता के पैसों से बनी इमारत से इंसाफ की उम्मीद भी ज्यादा

- बार और बेंच मिलकर छुट्टियों का करें सदुपयोग

LUCKNOW: सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस टीएस ठाकुर ने शनिवार को लखनऊ में हाईकोर्ट के नये भवन का उद्घाटन करने के दौरान कहा कि न्यायालयों में तारीखें देने के बजाय तेजी से न्याय देना चाहिए। नसीहत दी कि वकीलों को भी तारीखें बढ़वाने की प्रवृत्ति से बचना चाहिए। करीब 1300 करोड़ रुपये से बना यह भवन जनता की गाढ़ी कमाई से बना है जो उन्होंने टैक्स के रूप में चुकाई है। इसी वजह से अब लोगों को इंसाफ मिलने की उम्मीद भी ज्यादा होगी। उन्होंने लोगों को जल्द न्याय दिलाने के लिए बार और बेंच को गर्मी की छुट्टियों का सदुपयोग करने की सलाह भी दी।

150वीं वर्षगांठ में हो खास बात

जस्टिस ठाकुर ने कहा कि 'हाई कोर्ट की इस भव्य इमारत ने जजों और वकीलों को लोगों को इंसाफ दिलाने के अत्याधुनिक साधन और संसाधन मुहैया करा दिये हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट की स्थापना की 150वीं वर्षगांठ के सालाना जश्न में कोई खास बात भी होनी चाहिए। साल के अंत में जब आप इस जलसे का समापन करें तो गर्व से कह सकें कि हमने इस वर्ष इतने लाख मुकदमे निपटा दिये.' हाई कोर्ट के नवीन भवन के बार रूम में आयोजित उद्घाटन समारोह में जस्टिस ठाकुर ने कहा कि यह सच है कि अक्सर वकील सुबह 10 बजे से पहले जज के चैंबर में अपने मामले की सुनवाई उसी दिन करने का अनुरोध करने के लिए लाइन लगाकर खड़े होते हैं। लेकिन ऐसा एक तरफ के वकील करते हैं। जबकि दूसरे पक्ष के वकील कभी सिरदर्द, कभी कमर दर्द तो भी कभी कुछ और दुहाई देकर मुकदमे की तारीखें बढ़वाने की कोशिश में लगे रहते हैं। उन्होंने कहा कि यदि दोनों पक्ष के वकील हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से मिलकर अनुरोध करें कि आने वाली गर्मी की छुट्टियों में वे अपने मुकदमे की बहस करना चाहते हैं तो वह भी मुख्य न्यायाधीश से उनके मुकदमे की तारीखें लगवाने और जजों से सुनवाई करने की गुजारिश करेंगे।

आधुनिक होने के बाद भी पहचान सुरक्षित

इससे पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि रवायत और आधुनिकता का उदाहरण प्रस्तुत करती यह भव्य इमारत अहसास कराती है कि हम आधुनिक होते हुए भी अपनी पहचान को सुरक्षित रख सकते हैं। जनता की सेवा करना हमारा फर्ज है। हम सभी अपने किरदार को जिम्मेदारी से निभाएं तो इस फर्ज को पूरी शिद्दत के साथ अंजाम दिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि बार और बेंच के बीच अच्छे रिश्ते होना जरूरी है। समारोह को राज्यपाल राम नाईक, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी, सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जस्टिस आरके अग्रवाल और अवध बार एसोसिएशन के अध्यक्ष हर गोविंद सिंह परिहार ने भी संबोधित किया। हाई कोर्ट के वरिष्ठ न्यायमूर्ति जस्टिस एपी शाही ने अतिथियों का आभार जताया।

टाइम और कॉस्ट ओवर रन से बचे न्यायपालिका

राज्यपाल राम नाईक ने हाई कोर्ट के नये भवन के निर्माण में ज्यादा समय और धन खर्च (टाइम और कॉस्ट ओवर रन) होने का जिक्र करते हुए न्यायपालिका को भी इससे बचने की सलाह दी। नये भवन की भव्यता की प्रशंसा करते हुए वह यह कहने से नहीं चूके कि वर्ष 2010 में जब यह इमारत बनना शुरू हुई थी तब इसकी लागत 770 करोड़ रुपये आकी गई थी। निर्माण 2014 में पूरा होना था कि लेकिन टाइम ओवर रन की वजह से कॉस्ट ओवर रन हुआ और अब इमारत की कुल लागत आयी है 1386 करोड़ रुपये। समय और संसाधन दोनों खर्च करके अदालत में सिर्फ तारीख पर तारीख पाने वाले वादकारियों की दुश्वारियों का जिक्र करते हुए उन्होंने समारोह में मौजूद न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं से पूछा-'क्या हम अपनी प्लानिंग व कार्यशैली में बदलाव कर इस टाइम और कॉस्ट ओवर रन से नहीं बच सकते.' न्याय मिलने में देर होने की वजह से कोर्ट के बाहर वादकारियों और गवाहों को धमका कर न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की भरपूर कोशिशें की जाती हैं। उन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट में बड़ी संख्या में जजों और निचले स्तर के पदों के खाली रहने पर भी चिंता जतायी। दो टूक लहजे में कहा कि यदि जजों की कमी की वजह से लोगों को न्याय नहीं मिलता है तो यह संसाधनों की बर्बादी है।