लखनऊ (ब्यूरो)। राजधानी के सरकारी चिकित्सा संस्थानों में रोजाना हजारों की संख्या में मरीज आते हैं, जिसमें बड़ी संख्या में नवजात बच्चे भी होते हैं। पर गंभीर समस्या से पीड़ित नवजातों के लिए राजधानी में केजीएमयू, पीजीआई और लोहिया संस्थान को छोड़कर अन्य किसी भी सरकारी अस्पताल में नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (एनआईसीयू) की सुविधा नहीं है। इन संस्थानों में करीब 66 एनआईसीयू की ही सुविधा है। ऐसे में बड़ी संख्या में गंभीर नवजातों को दूसरी जगह रेफर करना पड़ता है।

अन्य संस्थानों में करते हैं रेफर

राजधानी के सिविल अस्पताल, बलरामपुर अस्पताल और लोकबंधु अस्पताल तक में एनआईसीयू की सुविधा नहीं है। इतना ही नहीं, झलकारीबाई और अवंतीबाई महिला अस्पताल में भी एनआईसीयू की सुविधा नहीं है। हालांकि, सिविल में पीडियाट्रिक आईसीयू की सुविधा जरूर है। वहीं, कुछ महिला अस्पतालों में सिक न्यूबार्न केयर यूनिट जरूर है, पर इनमें महज ऑक्सीजन आदि की ही सुविधा होती है, वेंटिलेटर की नहीं। जिसके चलते गंभीर नवजात को अन्य मेडिकल संस्थानों के लिए रेफर कर दिया जाता है।

सभी बेड रहते हैं फुल

केजीएमयू के ट्रामा सेंटर पर एनआईसीयू वार्ड बना हुआ है। वैसे तो यहां पर कुल 50 बेड हैं, पर इसमें 22 बेड वेंटिलेटर युक्त और बाकि एचडीयू वाले हैं। ये सभी बेड अकसर फुल ही रहते हैं। यहां रोजाना 10-12 नवजात आते हैं, पर महज 1-2 ही भर्ती हो पाते हैं, जिसके चलते नवजात की जान तक पर बन आती है। इसके अलावा अकसर बेड के लिए बड़े अधिकारियों की ओर से फोन भी आते हैं, पर बेड फुल होने की वजह से भर्ती नहीं हो पाते हैं। केजीएमयू ट्रामा के सीएमएस डॉ। संदीप तिवारी ने बताया कि नवजात कई दिनों तक भर्ती रहते हैं, क्योंकि उनको ठीक होने में समय लगता है। जिसके चलते बेडों की कमी की समस्या बनी रहती है। पर इसके बावजूद पूरा प्रयास किया जाता है कि सबको इलाज मिल सके।

इन संस्थानों में महज 16 एनआईसीयू

वहीं, संजय गांधी पीजीआई में एनआईसीयू के 10 बेड ही हैं, जबकि 10 बेड साधारण हैं। एनआईसीयू हमेशा फुल रहते हैं, जिसकी वजह से मरीजों को दूसरी जगह के लिए रेफर कर दिया जाता है। लोहिया संस्थान के मातृ-शिशु रेफरल अस्पताल में महज 6 एनआईसीयू बेड ही हैं, जो हमेशा भरे रहते है। यहां रोजाना 10-15 सिफारिशें बेड दिलाने के लिए आती हैं।

नियोनेटोलॉजिस्ट की पड़ती है जरूरत

मातृ-शिशु रेफरल अस्पताल के सीएमएस डॉ। श्रीकेश सिंह ने बताया कि कोई भी गंभीर समस्या से पीड़ित नवजात, जो 0-1 माह के बीच का होता है, उसे एनआईसीयू में भर्ती किया जाता है। इसमें समय से पूर्व जन्म लेने वाले बच्चे भी शामिल होते हैं। एनआईसीयू की जरूरत बच्चों में जन्मजात विकृति, लंग्स में दिक्कत, गर्भ में गंदा पानी पी लेना, ब्रेन का सही से विकसित न होना या अन्य कोई वायटल आर्गन का न डेवलप होने पर पड़ती है। एनआईसीयू के लिए उपकरण से ज्यादा ट्रेंड स्टाफ की जरूरत है। इसके लिए नियोनेटोलॉजी एक्सपर्ट की जरूरत होती है, क्योंकि नवजातों के आईसीयू की जरूरत अलग होती है।