लखनऊ (ब्यूरो)। केजीएमयू में हॉस्पिटल रिवाल्विंग फंड (एचआरएफ) के सभी आउटलेट्स के लिए एडमिनिस्ट्रेटिव इंचार्ज तय कर दिए गये हैं, जो विभाग की जरूरतों के अनुसार दवा और सर्जिकल सामान उपलब्ध कराना सुनिश्चित करेंगे ताकि मरीजों को किसी प्रकार की कोई दिक्कत न हो साथ ही यहां पर किसी तरह की गड़बड़ी पर भी रोक लगाई जा सके।

निरीक्षण और जांच भी करेंगे

केजीएमयू में एचआरएफ के 13 काउंटर हैं। इनके तहत मरीजों को सस्ती दरों पर दवाएं और सर्जिकल उपकरण उपलब्ध कराए जाते हैं, जिनपर 80 फीसदी तक की छूट मिलती है। पर इसके बावजूद मरीजों को यहां सभी दवाएं और सामान उपलब्ध नहीं हो पाता है। इसी समस्या को दूर करने के लिए केजीएमयू प्रशासन द्वारा एडमिनिस्ट्रेटिव इंचार्ज तय किए गए हैं, जो अपने-अपने एचआरएफ काउंटर पर विभाग की मांग के अनुसार दवाएं, सर्जिकल सामान और इंप्लांट की उपलब्धता सुनिश्चित करायेंगे। इसके लिए वे विभागीय कोआर्डिनेटर से समन्वय भी स्थापित करेंगे। इसके अलावा, सभी इंचार्ज समय-समय पर अपने-अपने आउटलेट्स का औचक निरीक्षण और जांच करेंगे ताकि काउंटर पर सभी सामान उपलब्ध हों और मरीजों को सर्वसुलभता के साथ हासिल हो सकें। इसके अलावा वे विभागों की डिमांड के अनुसार जरूरी दवाएं आदि की उपलब्धता काउंटर पर सुनिश्चित करेंगे ताकि अधिक से अधिक मरीजों को बाजार से कम दरों पर दवाएं, सर्जिकल सामान और इंप्लांट मिल सकें।

कृत्रिम आंख, कान भी नेचुरल जैसे दिख सकते हैं

केजीएमयू ने पहले भारतीय प्रोस्थोडॉन्टिक सोसायटी सम्मेलन में प्री-कॉन्फ्रेंस कोर्स का आयोजन किया। डॉ। तीरथवज श्रीथिवाज, महिदोल विश्वविद्यालय, थाईलैंड और डॉ। सुनीत, डॉ। रघुवर और डॉ। बालेंद्र और डॉ। नीति सहित केजीएमयू की टीम ने कृत्रिम आंखों के निर्माण और इस सम्मेलन के आयोजन सचिव प्रो। पूरन चंद द्वारा सूचित अन्य चेहरे के कृत्रिम अंग के बारे में डॉक्टरों को प्रशिक्षित किया गया।

मरीजों को मिलेगी राहत

आयोजन अध्यक्ष प्रो। स्वतंत्र अग्रवाल ने कहा कि जनता को जागरूक किया जाना चाहिए कि कृत्रिम आंख, कान, उंगलियों को प्राकृतिक त्वचा के समान दिखने वाली सामग्री से बनाया जा सकता है। एम्स, नई दिल्ली की प्रो। वीना जैन ने डॉक्टरों को सभी दांतों के खराब या छोटे होने या बीमारी के कारण टूटने आदि के बारे में प्रशिक्षित किया। उन्होंने बताया कि मरीजों को आउटडोर क्लीनिक में जागरूक किया जाना चाहिए।

डिजिटल स्कैनर का यूज

डॉ। स्वाति गुप्ता ने डॉक्टरों को कृत्रिम दांत देने के बारे में प्रशिक्षित किया जो डिजिटल स्कैनर का उपयोग करके पर्याप्त कठोरता के साथ अधिक प्राकृतिक दिखता है। इस तकनीक से दूर-दराज के इलाकों में काम करने वाले डेंटल सर्जन भी मुंह की संरचनाओं को स्कैन कर भारत के किसी भी बड़े शहर की लैब में भेज सकते हैं। इस तरह मरीजों को बड़े शहर की यात्रा नहीं करनी पड़ेगी और कृत्रिम ताज की समान गुणवत्ता प्राप्त कर सकते हैं।