LUCKNOW: मुश्किल वक्त में आप सबसे पहले अगर किसी के पास जाना चाहते हैं तो वो कोई और नहीं आपके मम्मी-पापा होते हैं। मम्मी-पापा भी यही चाहते हैं कि मुसीबत के समय बच्चे उनके पास ही रहें। कोरोना काल में यह वास्तविकता भी बदलती नजर आ रही है। वे बच्चे जो अपने पैरेंट्स से दूर दूसरे शहरों में काम कर रहे हैं उनके पास जाना नहीं चाह रहे हैं। कारण यह है कि वे अपने मम्मी-पापा से बेहद प्यार करते हैं उन्हें डर है कि कहीं उनके घर जाने से उनके साथ संक्रमण भी वहां पहुंच न जाए। ऐसे लोग रोज अपने पापा को फोन कर कह रहे हैं, पापा आई लव यू, कोरोना है, अभी घर नहीं आएंगे। अपना ख्याल रखना

होली के बाद नहीं गया घर

मैं हमीरपुर का रहने वाला हूं और यहां एक टेलीकॉम कंपनी में ट्रेनिंग कर रहा हूं। पहले मैं हर माह कम से कम दो बार मम्मी-पापा से मिलने घर जाता था। होली के बाद से मैं घर नहीं गया हूं। जब अप्रैल में संक्रमण की रफ्तार यहां बेकाबू हो गई तो पापा ने फोन करके कहा कि तुम बहुत जरूरी हो तभी घर से निकलना। बेटा खतरा बहुत है। उस दिन से आज तक मैं दिन में कम से कम चार से पांच बार घर फोन करके उनका हाल-चाल लेता हूं। मम्मी जब भी मेरी पसंद की कोई चीज बनाती हैं तो उसे वीडियो कॉल पर मुझे दिखाती हैं और कहती हैं कि जब घर आओगे तो फिर बनाकर खिलाऊंगी। मेरा उनके पास जाने का बहुत मन करता है, लेकिन कहीं मेरे साथ वायरस वहां न पहुंच जाए, इसलिए मैं घर नहीं जा रहा हूं।

अभय कुमार, लालकुआं

फुल वैक्सीनेशन के बाद ही जाऊंगा

मेरे मम्मी-पापा कानपुर में रहते हैं और मैं यहां शिवानी विहार में रहता हूं। यहां से मेरे पैरेंट्स सिर्फ 105 किमी की दूरी पर हैं। पहले मैं सप्ताह में दो बार उनके पास जाता था। वहां किसी दोस्त के यहां पार्टी होती, तो पता चलते ही पहुंच जाता था। घर होली के बाद गंगा मेला में गया था, उसके बाद नहीं गया। अप्रैल में शिवानी विहार में कोरोना के काफी मामले सामने आए और कई लोगों की डेथ हो गई। इसके बाद मैं पैरेंट्स को लेकर डर गया। मैंने तय कर लिया कि घर तब तक नहीं जाऊंगा, जब तक कोरोना का कहर कम नहीं हो जाएगा और मुझे वैक्सीन की दोनों डोज नहीं लग जाएंगी।

मनोज बजाज, शिवानी बिहार

अभी खतरा टला नहीं है

मेरा पेस्ट कंट्रोल का बिजनेस है। कोरोना के कारण एक साल से काम मिलने के बाद भी शहर से बाहर नहीं गया। डर लगता है कि कहीं संक्रमण का शिकार न हो जाऊं। मेरे पैरेंट्स की एज काफी हो गई है। उनको लेकर चिंता रहती है। कई माह से मैंने अपने आप को घर के एक बगल वाले पोर्शन में शिफ्ट कर लिया है। मन में भय है कि कहीं मैं बाहर गया और वायरस का शिकार हो गया तो मेरे पैरेंट्स भी उसकी चपेट में न आ जाएं। एक ही मकान के अलग-अलग पोर्शन में हम लोग रह रहे हैं। मम्मी-पापा से मिलने का मन बहुत करता है, लेकिन उनकी सुरक्षा सबसे पहले है।

अमन श्रीवास्तव, साई कॉलोनी, चिनहट

इस वक्त घर में रहना ही बेहतर है

मेरे पापा की उम्र 55 साल से अधिक है और वो देवरिया में रहते हैं। मैं होली में घर गया था और उसके बाद से यहीं हूं। मैं रोज सुबह और रात के समय पापा से फोन पर बात करता हूं और उनसे कहता हूं कि कोरोना से डरने की जरूरत नहीं है, बस प्रोटोकॉल का पूरा पालन करते रहें। हालांकि मैं कोरोना से डरता हूं। यही कारण है कि लाख चाहने के बाद भी पापा से मिलने नहीं जा रहा हूं। मेरे लिए मेरे पापा ही सब कुछ हैं। मैंने अपने दोस्तों से भी कह दिया है कि अगर वे बाहर घूमते दिखें तो तुरंत मुझे बताओ। वे कहते हैं कि घर आ जाओ, मन ऊब रहा है। मैं उनसे यही कहता हूं कि इस बीमारी का इलाज घर पर ही रहना है।

कमलेश पांडेय, विश्वास खंड, गोमतीनगर