- जन औषधि केंद्रों पर लटके तालों ने बढ़ाई मरीजों की दिक्कत

- 12 गवर्नमेंट हॉस्पिटल्स राजधानी में

- 72 जन औषधि केंद्र हैं मौजूद

केस एक

तुलसीपुर निवासी 55 वर्षीय राम चंद्र दिल समस्या को लेकर सिविल हॉस्पिटल में दिखाने के लिए पहुंचे। डॉक्टर ने जो दवा लिखी वो काउंटर पर मिली नहीं। ऐसे में महंगी दवा बाहर खरीदने को मजबूर हुये।

केस 2 - बाराबंकी निवासी 25 वर्षीय सूर्यभान मानसिक समस्या होने पर पर सिविल दिखाने पहुंचे। डॉक्टर ने जो दवा लिखी वो काउंटर पर नहीं मिली। ऐसे में बाहर से दवा खरीदी।

केस 3 - लखनऊ निवासी समीर अपनी मां को दिखाने के लिए बलरामपुर अस्पताल पहुंचे। डॉक्टर ने शुगर की दवा लिखी जो अस्पताल में मिली नहीं। जिसकी वजह से दवा बाहर खरीदनी पड़ी।

केस 4 - रायबरेली निवासी अरवादीन पेशाब की समस्या के चलते केजीएमयू दिखाने पहुंचे। डॉक्टर ने ओपीडी के पर्चे पर दवा लिखने के साथ एक अलग पर्ची पर भी दवा लिख बाहर से लेने के लिए बताया। मजबूरी में उनको दवा बाहर जाकर खरीदनी पड़ी।

केस - 5

राजधानी निवासी राहुल अपनी पत्‍‌नी पूनम को सांस की समस्या होने पर लोहिया संस्थान दिखाने पहुंचे। डॉक्टर की लिखी दवा में खांसी की एक दवा नहीं मिली। जिसे बाहर से खरीद कर लाना पड़ा।

LUCKNOW :

यूं तो सरकार ने सभी सरकारी हॉस्पिटल्स में दवा या मुफ्त कर रखी है या फिर सस्ती दरों पर। लेकिन राजधानी के सरकारी हॉस्पिटल्स में ऐसा हो नहीं रहा है। हॉस्टिपल्स में दवा की भारी किल्लत है। जिसके चलते यहां बड़ी संख्या में आने वाले मरीजों को बाहर से दवा खरीदनी पड़ रही है। जब दैनिक जागरण आई आई नेक्स्ट को इस समस्या का पता चला हमने राजधानी के प्रमुख हॉस्पिटल्स में दर्द ए दवा का सच जानने का फैसला किया। पेश है अनुज टंडन की रिपोर्ट

सिविल हॉस्पिटल

राजधानी के सिविल हॉस्पिटल में गरीब मरीजों की संख्या सबसे अधिक होती है, लेकिन यहां हार्ट, मानसिक रोग व कुछ एंटीबायटिक दवाओं की कमी बनी हुई है। यहां पर सामान्य ओपीडी शुरू हो चुकी है। दवाओं की कमी से मरीजों को काफी परेशानी हो रही है। मामले पर निदेशक डॉ। मधु सक्सेना बताती है कि दवा की कमी पर डिमांड के अनुसार कार्पोरेशन से दवा मंगवाते है। कई बाद देर से आने की वजह से समस्या हो जाती है। जहां तक जन औषधि केंद्र का मामला है हम लोगों ने केवल जगह दी है। दवा की कमी को लेकर कई बार लिखा जा चुका है।

कोट

दवा की जरूरत के अनुसार कार्पोरेशन को लिखा जाता है। अगर कोई दवा कम है तो उसको दिखवाया जायेगा।

- डॉ। मधु सक्सेना, निदेशक सिविल हॉस्पिटल

बलरामपुर हॉस्पिटल

बलरामपुर हॉस्पिटल में भी जनरल ओपीडी शुरू हो चुकी है। रोजाना करीब एक हजार के आसपास तक मरीज दिखाने के लिए आ रहे हैं। शुगर समेत अन्य कई दवाओं की कमी बनी हुई है। इस पर सीएमएस डॉ। आरके गुप्ता का कहना है कि लोकल पर्चेस पहले ही बंद हो चुकी है। डॉक्टर्स द्वारा लिखी गई हर दवा फ्री में दी जाती है। अगर कोई डॉक्टर बाहर की दवा लिखता है तो मरीज उसके खिलाफ शिकायत कर सकता है। कई बार कार्पोरेशन से दवा देरी से आती है। जिसकी वजह से कुछ दवा मिलने में देरी होती है।

कोट

दवा काउंटर पर सभी दवा उपलब्ध है। अगर कोई दवा नहीं है तो उसके लिए कार्पोरेशन को लिखा जायेगा। बाहर की दवा लिखने पर मनाही है। अगर कोई लिखता है तो शिकायत कर सकता है।

- डॉ। आरके गुप्ता, सीएमएस बलरामपुर हॉस्पिटल

केजीएमयू

केजीएमयू में कोरोना काल से पहले रोजाना सात हजार से अधिक मरीज आते थे, लेकिन कोविड के चलते मरीजों की संख्या सीमित कर दी गई है। लेकिन, इसके बावजूद मरीज यूरोलॉजी, कार्डियोलॉजी समेत अन्य कई समस्याओं की दवाएं बाहर से खरीदने को मजबूर हो रहा है। जबकि कई मरीजों को अलग से पर्ची पर बाहर की दवा लिखी जा रही है। प्रवक्ता प्रो। सुधीर सिंह का कहना है कि बाहर से दवा लिखने पर मनाही है। अगर कोई डॉक्टर बाहर की दवा लिखता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जायेगी। इसके लिए मरीज को सीएमएस आफिस में आकर शिकायत करनी होगी। मामले की जांच कराई जायेगी।

कोट

बाहर से दवा लिखने पर रोक है। अगर किसी मरीज को बाहर से दवा लिखी गई है तो वो उसकी शिकायत सीएमएस से कर सकता है। मामले की जांच कराई जायेगी।

- डॉ। सुधीर सिंह, प्रवक्ता केजीएमयू

लोहिया संस्थान

यहां पर आसपास के शहरों के अलावा दूसरे प्रदेशों से भी मरीज दिखाने के लिए आते है। यहां हर साल करीब 10 लाख के आसपास मरीज दिखाने के लिए आते है। संस्थान में एचआरएफ के तहत दवा कम दरों पर दी जाती है। जबकि हॉस्पिटल ब्लॉक में ड्रग कॉर्पोरेशन से दवा की सप्लाई होती है। जो मरीजों को फ्री में दी जाती है। हालांकि, विलय होने के बाद यहां पर भी धीरे-धीरे एचआरएफ काउंटर खोले जा रहे है। यहां कई बार मरीज दवा की कमी के चलते बाहर से खरीदने को मजबूर होते है। हालांकि इसबार मरीजों की संख्या में काफी कमी रही। वहीं बाहर से दवा लेने के मामले पर प्रवक्ता डॉ। श्रीकेश सिंह का कहना है कि अस्पताल के अंदर सभी दवा उपलब्ध है। बाहर से कोई भी दवा नहीं मंगवाई जाती है। असाध्य और आयुष्मान कार्ड धारकों को फ्री में इलाज होता है।

कोट

सभी दवा अस्पताल में मौजूद है। बाहर से कोई दवा नहीं मंगवाई जाती है।

- डॉ। श्रीकेश सिंह, प्रवक्ता लोहिया संस्थान

गवर्नमेंट हॉस्पिटल में दवा फ्री

गवर्नमेंट हॉस्पिटल जैसे सिविल हॉस्पिटल व बलरामपुर हॉस्पिटल में दवा फ्री में दी जाती है। दवा के लिए कोई लग से बजट नहीं होता है। इसके लिए ड्रग कार्पोरेशन बनाया गया है। जहां से डिमांड के अनुसार दवा की सप्लाई की जाती है। यहां पर काउंटर पर मिलने वाली ही दवा लिखी जाती हैं। बाहर से दवा खरीदने पर रोक लग चुकी है। ऐसे में बाहर की दवा नहीं लिखी जा सकती। तो वहीं केजीएमयू में दवा के लिए अलग से बजट नहीं आता है। पूरे संस्थान को जो बजट दिया जाता है उसी के अनुसार काम किया जाता है। यहां पर असाध्य रोग जैसे कैंसर आदि बीमारी व अति पिछड़ा परिवार जिनकी सालाना आय 35 हजार से कम है उनके मरीजों को संस्थान में फ्री दवा का प्रावधान है। जबकि अन्य मरीजों के लिए एचआरएफ या अमृत फार्मेसी के तहत बाजार से सस्ती दर पर दवा दी जाती है। और बाहर से दवा लि ाने पर मनाही है।

जन औषधि केंद्र पर लगा ताला

राजधानी में सस्ती दर पर दवा उपलब्ध कराने के लिए जन औषधि केंद्र ोले गये है। लेकिन, केजीएमयू और सिविल में इन केंद्रों पर ताला लगा हुआ है। ऐसे में इस स्टोरों पर मिलने वाली 90 फीसद तक सस्ती दवाओं का लाभ गरीब मरीजों को नहीं मिल पा रहा है। दावा तो इन स्टोर के माध्यम से करीब 1400 दवाओं को सस्ती दर पर देने का था। लेकिन अधिकांश समय आधे से भी कम दवा मिलती थी। कई बार इसको लेकर शिकायत भी की जा चुकी है। लेकिन, दवा उपलब्ध होने की जगह यह स्टोर ही बंद हो गये। क्योंकि आपूर्तिकर्ता एजेंसी द्वारा सभी सरकारी हॉस्पिटल में दवा बिक्री पर रोक लगा दिया गया है। गौरतलब है कि राजधानी में 12 गवर्नमेंट हॉस्पिटल व 60 प्राइवेट क्षेत्रों में कुल 72 जन औषधि केंद्र है। इन स्टोर पर सरकार का उपक्रम ब्यूरो ऑफ फार्मास्युटिकल ऑफ इंडिया द्वारा दवा की आपूर्ति की जाती है।

कोट

जन औषधि के चार वेंडर में तीन के खिलाफ शिकायत मिलने पर बंद कराया गया था। लेकिन दो के साथ मामला हल हो गया है। जल्द ही सेंटर खुल जाएंगे।

- संगीता सिंह, सीईओ, साची