- रेपर्टवा फेस्ट के अंतिम दिन बैंड की धुन पर जमकर थिरके लखनवाइट्स

LUCKNOW:

सही और गलत की कसौटी पर बालि के सवालों और उर्दू शायरी में सुरों की परवाज के बीच सोमवार को रेपर्टवा फेस्ट विदा हुआ। पांच दिनों के इस उत्सव के अंतिम दिन संगीत नाटक अकादमी में बड़ी संख्या में कला प्रेमियों ने हिस्सा लिया। मीट द कास्ट में नाटक बालि और परवाज बैंड के कलाकार दर्शकों से रूबरू हुए।

कई सवाल उठा गया बालि

रेपर्टवा के आखिरी दिन इंग्लिश नाटक बालि ने सवाल उठाया कि सही और गलत की कसौटी आखिर क्या है? और जो व्यक्ति या कार्य किसी की नजर में सही है, वह दूसरे के नजर में सही हो यह जरूरी तो नहीं। रामकथा में बालि के जीवन, सुग्रीव से उसके युद्ध और फिर बालि की मृत्यु से जुड़े सवाल लोगों को बहुत कुछ सोचने को विवश करते हैं। बालि की पत्‍‌नी तारा के माध्यम से भी कई सवाल उठाए गए हैं।

सुरों ने भरा परवाज

वहीं रेपर्टवा की शाम परवाज बैंड के सुरों से सजी। बड़ी संख्या में म्यूजिक लवर्स के बीच बैंड के कलाकारों मीर कासिफ इकबाल, खालिद परवेज, सचिन, राहुल रंगनाथन आदि ने वेस्टर्न, इंडियन सहित लोक संगीत का सुंदर फ्यूजन पेश किया। इसमें कश्मीरी और उर्दू शायरी को गीतों के तौर पर पेश किया गया था। बैंड ने कलर वाइट, बेपरवाह, अब की है सुबह जैसे गीतों से समां बांधा तो दर्शक भी झूमने पर मजबूर हो गए और जमकर बैंड की धुनों पर थिरके।

जड़ें परंपरा में हों

मीट द कास्ट प्रोग्राम में बालि की निर्देशक निम्मी राफेल और कलाकार अरविंद राने ने कहा कि हमारी जड़ें परंपरा में होनी चाहिए लेकिन हमारी सोच समकालीन होनी चाहिए। हमें नहीं मालूम कि रंगमंच सामाजिक बदलाव में किस तरह सहायक सिद्ध हो सकता है। वहीं परवाज बैंड के मीर कासिफ इकबाल और खालिद परवेज ने कहा कि अगर आपकी कला में आत्मा नहीं है, तो यह बहुत प्रभावित नहीं कर सकती है। संगीत तैयार करते समय यह नहीं सोचते कि यह दूसरों को पसंद आएगा या नहीं।