लखनऊ (ब्यूरो)। देश में हर साल लाखों लोग लापता होते हैं, जिसमें से हजारों की मौत हो जाती है और स्वजन उनकी तलाश में भटकते रहते हैं। राजधानी में भी हर साल बड़ी संख्या में ऐसे शव मिलते हैं, जिनकी पहचान नहीं हो पाती। यहां पुलिस की ढीली कार्यशैली भी एक बड़ी वजह बनती है, जिसके चलते ऐसे शवों की पहचान नहीं हो पाती।

एप पर बना हुआ है कॉलम

राजधानी में हर साल 50 से ज्यादा लाशें लावारिस मिलती हैं, जिसमें महज 20 फीसदी मामलों में ही ऐसी लाशों की पहचान हो पाती है। इनमें ज्यादातर मामले आउटस्कट्र्स व नदी किनारे जुड़े थाना क्षेत्रों मेें सामने आते हैं। लावारिस लाशों की पहचान के लिए यूपी कॉप एप में एक कॉलम है। इसमें गुमशुदगी व लावारिस लाश, दोनों कॉलम को एक साथ जोड़ गया है। इस कॉलम में थाने स्तर पर मिलने वाली लाश की फोटो व अन्य पहचान अपलोड की जाती है। हालांकि, इससे पहचान बहुत कम ही हो पाती है।

पहचान के लिए कार्रवाई

लावारिस शवों की शिनाख्त में कोई गड़बड़ी न हो, इसके लिए उनका डीएनए मैचिंग प्रोफाइल तैयार करने का नियम है। पंचनामा से पहले मृतक के बाल, दांत, नाखूनों के नमूने सुरक्षित किए जाएंगे।

क्या होता है डीएनए टेस्ट

डीएनए का मतलब है डीऑक्सीराइबोज न्यूक्लिक एसिड। यह इंसान के शरीर का एक ऐसा एसिड, जो जिंदगी के कई रहस्यों को समेटे रहता है। हर इंसान में डीएनए का एक खास पैटर्न होता है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी एक से दूसरे जेनरेशन में ट्रांसफर होता है। बच्चे में मां और बाप, दोनों के पैटर्न होते हैं।

लावारिस शव मिलने पर पुलिस क्या करती है

- सबसे पहले एफआईआर दर्ज होती है

- शव की तस्वीर ली जाती है

- तस्वीर संग न्यूज पेपर में विज्ञापन देने का नियम है

- पास में मिले सामान की डिटेल देना जरूरी है

इन प्वाइंट पर रहता है फोकस

पोस्ट्मॉर्टम के दौरान मृत्यु की वजह के साथ-साथ मृतक के शरीर पर जन्म से मौजूद कोई निशान, शरीर पर कोई चोट, कोई टैटू की शिनाख्त की जाती है। कई बार इससे शव की शिनाख्त हो जाती है।

आधार कार्ड से हो सकती है पहचान

लावारिस लाशों की पहचान में आधार कार्ड मददगार साबित हो सकता है। फॉरेंसिक एक्सपर्ट की राय है कि लावारिस लाशों की पहचान के अब तक जितने तरीके हैं, वे फेल हैं और 72 घंटे में पहचान अमूमन नहीं ही हो पाती हैं। डॉक्टरों का कहना है कि आधार के बायोमीट्रिक सिस्टम से लावारिस लाश की पहचान एक मिनट में हो सकती है।

ये कदम उठाने चाहिए

-पुलिस को शहर में रहने वाले बेघर लोगों की पूरी डिटेल रखनी चाहिए

-शव के पास मिली चीजों के आधार पर आसपास के जिलों में करनी चाहिए पहचान की कोशिश

-सोशल मीडिया पर फोटो, कपड़े और चीजों को डाला जाए और पूरी सूचना लिखी जाए

यहां लापरवाही बरतती है पुलिस

-शवों के फिंगरप्रिंट नहीं लेते

- मीडिया में विज्ञापन देने की जगह खबर प्रकाशित करने पर फोकस

-अधिकतर शवों के डीएनए सैंपल नहीं लेते

-कपड़े तक संभाल कर नहीं रखे जाते

- सीआईडी सीबी शाखा को सूचना नहीं दी जाती

बीते एक हफ्ते में समाने आए मामले

29 अक्टूबर: पारा स्थित आगरा एक्सप्रेस वे किनारे नाले में मिला युवक का शव

28 अक्टूबर: चौक के दरिया मस्जिद के पार्क में मिला युवक का शव

24 अक्टूबर: पीजीआई में भर्ती रोड एक्सीडेंट में युवक की मौत

16 अक्टूबर: बीबीडी इलाके में रेगुलेटर इंदिरा नहर में फसी मिली युवक की डेडबॉडी