लखनऊ (ब्यूरो)। शिक्षा का अधिकार अधिनियम, आरटीई के तहत मिलने वाली फीस प्रतिपूर्ति का पैसा बीते तीन साल से निजी स्कूल प्रबंधन को नहीं मिला है। जिसके बाद राजधानी के स्कूल प्रबंधक इस मामले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट गए थे। जहां से हाईकोर्ट ने शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 12-2 के अन्तर्गत निजी स्कूलों को दी जा रही फीस प्रतिपूर्ति की धनराशि अब उत्तर प्रदेश आरटीई उप्र निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार नियमावाली 2011 के नियम 8-2 में दी गई व्यवस्था के अनुसार ही गणना करके देने को कहा है। जिसके बाद राजधानी के स्कूलों के बकाया करीब 70 करोड़ रुपए मिलने का रास्ता साफ हो गया है। वहीं, निजी स्कूल प्रबंधन का कहना है कि बीते तीन साल का उनका करीब 500 करोड़ रुपया फीस प्रतिपूर्ति का बाकी है। इसमें लखनऊ का 70 करोड़ रुपया बकाया है।

फीस न मिलने से सत्र बर्बाद

फीस प्रतिपूर्ति का पैसा न मिलने से पिछले साल राजधानी सहित कई जिलों में हजारों गरीब बच्चों को निजी स्कूलों ने एडमिशन नहीं दिया था। अधिकारी तमाम कोशिशों के बाद भी इन बच्चों को स्कूलों में एडमिशन नहीं दिला सके, जिससे उनका एक साल बर्बाद हो गया। विभाग स्कूलों पर एक्शन के नाम पर सिर्फ नोटिस देता रहा।

कितना मिलना चाहिए बजट

सरकार ने प्रति बच्चा 450 रुपए की राशि हर माह दिए जाने की घोषणा की है। पूरे साल 5400 रुपये इसमें खर्च आता है, लेकिन तीन साल से प्राइवेट स्कूलों को एक रुपया भी नहीं दिया गया है। इसे देखते हुए अनएडेड स्कूल एसोसिएशन की घोषणा के बाद सत्र 2022-23 में स्कूल ऐसे बच्चों के एडमिशन लेने से मना कर रहे हैं।

2019 में दायर की गई थी याचिका

उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2013 में शासनादेश 20 जून 2013 के माध्यम से प्रतिपूर्ति की अधिकतम धनराशि 450 प्रति माह निर्धारित की थी। जिसकी गणना न तो आरटीई उप्र नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार नियमावाली, 2011 के नियम 8-2 में दी गई व्यवस्था के तहत ही की गई थी और न ही इस धनराशि को अभी तक पुनरीक्षित ही किया गया था। ऐसे में सरकार से बार-बार अनुरोध करनेके बाद भी जब कोई निर्णय सरकार द्वारा नहीं लिया गया तो वर्ष 2019 में लखनऊ एजुकेशनल एंड ईसथेटिक डेवलेपमेंट सोसाइटी नाम की संस्था ने माननीय उच्च न्यायालय लखनऊ खंडपीठ में फीस प्रतिपूर्ति धनराशि की गणना अधिनियम के तहत करके देने के लिए एक वाद दायर कर दिया गया था।