- साहित्यजगत ने जताया शोक

- आज होगा अंतिम संस्कार

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रुष्टयहृह्रङ्ख: प्रसिद्ध रंगकर्मी, नाट्य लेखक, नाट्य निर्देशक व व्यंगकार उर्मिल कुमार का 80 वर्ष की उम्र में मंगलवार को निधन हो गया। उन्हें आंत का कैंसर था। दामाद सत्येंद्र मिश्र ने बताया कि अधिक उम्र के कारण उनकी कीमोथेरेपी नहीं हो पा रही थी। उन्होंने घर पर ही अंतिम सांस ली। उनके निधन की सूचना मिलने पर साहित्यजगत में शोक की लहर दौड़ गई। उनका अंतिम संस्कार बुधवार सुबह नौ बजे बैकुंठ धाम में होगा।

गढ़वाल में हुआ था जन्म

उर्मिल कुमार थपलियाल का जन्म 16 जुलाई 1943 को गढ़वाल में हुआ था। रंगमंच के प्रति ललक अपने बाबा और गढ़वाल के आदि नाट्यकार भवानी दत्त थपलियाल से मिला। 1965 में लखनऊ आ गये और आकाशवाणी लखनऊ में सोहन लाल थपलियाल के नाम से प्रादेशिक समाचार पढ़ना शुरु किया। उन्होंने नौटंकी का ग्रामर लिया और कंटेंट नए, समसामयिक और प्रासंगिक इससे जो शैली विकसित हुई उसे नौटकीं की थपलियाल शैली कहना गलत ना होगा। उनको यश भारती, केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की रत्‍‌न सदस्यता और अकादमी पुरस्कार, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का कला भूषण व भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार जैसे अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।

कोट

1. उर्मिलजी के साथ टेंट में रूकना साथ में खाना बेहद याद आ रहा है। वो मुझे एंकरिंग करने के लिए भी बोलते थे। रात में उनके साथ हम लोग काफी खेला करते थे। मैं उनके काफी करीब था। उनके साथ हमेशा फ्रेंडली नेचर रहा है। बेहद ही सजह व्यक्तित्व के धनी थे। उनका जाना मेरे लिए निजी क्षति के समान है।

- तरूणराज, सचिव एसएनए

2. बचपन से ही उर्मिलजी को पढ़ता आया हूं। वह कहते थे कि सबसे बड़ी मासूमियत यह है कि गरीब को पता ही नहीं होता कि वह गरीब है। वो गंभीर कटाक्ष भी मजे में कर जाते थे। उनकी भाषा चमत्कृत कर देती थी। उनके निधन से साहित्य जगत की बड़ी क्षति हुई है।

- पंकज प्रसून

3. लखनऊ मैं वर्ष 2002 में आया, तो मेरा व्यंग्य संग्रह कुर्सीपुर के कबीर की समीक्षा उन्होंने ही की थी। तब से उनसे नजदीकियां ज्यादा हुईं। वह सहज, विनम्र और बड़े सक्रिय व्यक्तित्व के थे। वह रचनाधर्मिता के स्तर पर आखिर तक सक्रिय रहे। उनके कालम में उनके व्यंग्य में दिखाई थी।

- गोपाल चतुर्वेदी, वरिष्ठ व्यंग्यकार