- पार्टी के मुखपत्र सामना में कमियां गिनाकर यूपीए की हालत एनजीओ जैसी बताई

- मौजूदा कांग्रेस नेतृत्व पर भी जताई चिंता, माना जा रहा सोनिया गांधी की चिट्ठी का जवाब

MUMBAI : राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार को यूपीए का अध्यक्ष बनाने की चर्चा एक पखवाड़े में दूसरी बार छेड़ी गई है। पवार के 80वें जन्मदिवस से ठीक पहले भी यह चर्चा उठी थी। अब शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए पवार का नाम लिए बिना उन्हें यूपीए की 'जमींदारी' सौंपने की वकालत की है।

'सामना' के संपादकीय में शनिवार को जहां कांग्रेसी नेतृत्व वाले संप्रग की कमियां गिनाई गई वहीं पवार की तारीफ में कशीदे काढ़े गए हैं। संपादकीय कहता है कि कांग्रेस के नेतृत्व में 'यूपीए' (संप्रग) की हालत किसी 'एनजीओ जैसी दिख रही है। 'यूपीए' में शामिल दल कौन हैं, और क्या करते हैं? इसको लेकर भ्रम की स्थिति है। 'यूपीए' के सहयोगी दल किसान आंदोलन को गंभीरता से लेते नहीं दिखाई देते। पवार के नेतृत्ववाली राकांपा को छोड़ दें तो 'यूपीए' के अन्य सहयोगी दलों में कोई हलचल नहीं है।

गिनाईं यूपीए की कमियां

चूंकि महाराष्ट्र की शिवसेनानीत सरकार में कांग्रेस शामिल है। इसलिए सामना ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी की सीधी आलोचना के बजाय सिर्फ यूपीए की कमियां गिनार्ई। अखबार ने लिखा कि कांग्रेस में एक साल से पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं है। सोनिया 'यूपीए' की अध्यक्ष हैं और कांग्रेस का नेतृत्व कर रही हैं। लेकिन उनके आसपास के पुराने नेता अदृश्य हो गए हैं। मोतीलाल वोरा और अहमद पटेल जैसे लोग अब नहीं रहे। ऐसे में कांग्रेस का नेतृत्व कौन करेगा? 'यूपीए' का भविष्य क्या है, इसे लेकर भ्रम बना हुआ है। जिस तरह 'यूपीए में कोई नहीं इसी तरह एनडीए (राजग) में भी कोई नहीं है। लेकिन भाजपा पूरी साम‌र्थ्य से सत्ता में है और उनके पास नरेंद्र मोदी जैसा दमदार नेतृत्व और अमित शाह जैसा राजनीतिक व्यवस्थापक है।

यूपीए में क्यों नहीं शामिल अन्य दल?

सामना के अनुसार राहुल व्यक्तिगत रूप से संघर्ष करते रहते हैं। लेकिन कहीं कोई कमी जरूर है। यूपीए में 'नेतृत्व की कमजोरी' की ओर इशारा करते हुए कहा गया कि तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना, अकाली दल, मायावती की बसपा, अखिलेश की सपा, आंध्र में जगन की वाईएसआर कांग्रेस, चंद्रशेखर राव की टीआरएस, नवीन पटनायक की बीजद और कुमारस्वामी के जदएस जैसे कई दल और नेता भाजपा के विरोध में हैं। लेकिन वे कांग्रेस के नेतृत्व वाले 'यूपीए' में शामिल नहीं हुए। जब तक ये दल 'यूपीए' में शामिल नहीं होंगे, विपक्ष का बाण सरकार को भेद नहीं पाएगा।

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राजनीतिक हलकों में सामना के इस संपादकीय को कुछ दिनों पहले लिखी सोनिया की उस चिट्ठी का जवाब माना जा रहा है, जो उन्होंने महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार द्वारा संयुक्त साझा कार्यक्रम पर गंभीरता से काम करने के लिए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लिखी थी। दूसरी ओर शिवसेना पवार को संप्रग अध्यक्ष के रूप में देखना चाहती है, क्योंकि महाराष्ट्र में उद्धव को पूरे पांच साल मुख्यमंत्री पद देने का निर्णय पवार के ही दिमाग की उपज है। शिवसेना को यह लगता है कि यदि पवार संप्रग अध्यक्ष हुए, तो महाराष्ट्र के किसी भी चुनाव में भाजपा को आसानी से पछाड़ा जा सकता है। इसीलिए सामना पवार की परोक्ष वकालत करते हुए कहता है कि विरोधी दलों की हालत उजड़े हुए गांव की 'जमींदारी' संभालने वाले की तरह हो गई है। यह जमींदारी कोई गंभीरता से नहीं लेता।

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कोट

'सोनिया गांधी कई सालों से संप्रग का नेतृत्व कर रही हैं। लेकिन अब समय आ गया है कि यूपीए में और पार्टियों को भी शामिल किया जाए और भाजपा के खिलाफ मजबूत विकल्प दिया जाए.'

संजय राउत, शिवसेना सांसद