लखनऊ (ब्यूरो)। लखनऊ यूनिवर्सिटी से असोसिएट कॉलेज स्टूडेंट्स का टोटा झेल रहे हैं। मौजूदा समय में कॉलेजों को सीट भरने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है, दूसरी ओर एलयू लगातार नए कॉलेजों को संबंद्धता और कोर्स के लिए मान्यता दे रहा है। एलयू की जून में हुई कार्यपरिषद की बैठक में करीब 15 नए कॉलेजों को संचालन की अनुमति दी गई है। साथ ही सौ से अधिक कॉलेजों में नए कोर्स की अनुमति भी मिली है, लेकिन एलयू से जुड़े ऐसे करीब 30 कॉलेज हैं जहां छात्र संख्या बेहद कम है।

एलयू से जुड़े हैं 550 कॉलेज

लखनऊ यूनिवर्सिटी से मौजूदा समय में 550 कॉलेज जुड़े हैं। इनमें चार जिलों के एडेड व निजी कॉलेज भी शामिल हैं। इन 550 कॉलेजों में तीन लाख से ज्यादा सीटें हैं। जिनको भरने में कॉलेजों को काफी मशक्कत करनी पड़ती है। कुछ कॉलेजों को छोड़ दें तो निजी के साथ-साथ एडेड कॉलेजों में यही समस्या है। जबकि मान्यता देते समय कॉलेजों का ब्योरा देना होता है। इससे एक क्षेत्र में कॉलेजों की संख्या कितनी है, वहां की आबादी के अनुसार पर्याप्त है या नहीं, को भी देखना पड़ता है, ताकि कॉलेजों के पास कोर्स के मुताबिक पर्याप्त छात्र संख्या भी रहे।

कई बार बढ़ाई गईं तारीखें

शैक्षिक सत्र 2023-24 के लिए कॉलेजों ने कई-कई बार आवेदन की तारीख बढ़ाई है। आवेदन की प्रक्रिया कहीं मार्च तो कहीं अप्रैल में शुरू हुई। टेंटेटिव लास्ट डेट मई रखी गई। बोर्ड का रिजल्ट जारी होने के बाद ज्यादातर कॉलेजों ने आवेदन 15 जून तक कर दिए। लेकिन पर्याप्त आवेदन न मिलने के बाद 15 जून को 30 जून कर दिया गया। मौजूदा समय में भी 31 जुलाई तक कई कॉलेज सीधे दाखिला भी ले रहे हैं। फिर भी कई कोर्स में सीटें खाली रह जाती हैं। यह स्थिति सिर्फ एडेड कॉलेजों में नहीं है, निजी कॉलेजों में भी यह समस्या आ रही है।

17 कॉलेज में नए कोर्स को मान्यता

एलयू की जून में हुई कार्यपरिषद की बैठक में 17 कॉलेजों को नए पाठ्यक्रम की अनुमति दी गई थी। वहीं 14 कॉलेजों कॉलेजों को संबद्धता दी गई थी।

लखनऊ के कॉलेजों की लिस्ट

-पंडित मदन मोहन मालवीय विधि महाविद्यालय (एलएलबी)

-एलबीएस लॉ कॉलेज (एलएलबी)

-सरोज कॉलेज ऑफ लॉ (एलएलबी)

-सिटी लॉ कॉलेज (एलएलबी)

-मां भगवती इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च (बीबीए, बीसीए)

-सरोज एजुकेशनल अहिमामऊ सुल्तानपुर (बीबीए, बीसीए, बीजेएमसी)

-आरएस लॉ कॉलेज (एलएलबी)

-दयानंद यादव को (एलएलबी)

कोई स्पष्ट नीति नहीं

लुआक्टा के अध्यक्ष डॉ। मनोज पांडेय के मुताबिक, कॉलेजों के पास स्टूडेंट्स की कमी है। सरकार की मान्यता को लेकर कोई स्पष्ट नीति नहीं है। सेमेस्टर एग्जाम साल भर चल रहे हैं। एनईपी के तहत यूजी चार साल का हो गया है। वोकेशनल कोर्स का उद्देश्य ही पूरा नहीं हो पा रहा है। एलयू ने सेंट्रलाइज्ड व्यवस्था के तहत स्टूडेंट्स को और अधिक कंफ्यूज किया है। एलयू इससे धनउगाही कर रहा है। चाहे सेंट्रलाइज्ड दाखिला प्रक्रिया हो या संबद्धता व मान्यता का खेल। शिक्षा धन उगाही का साधन बन चुकी है। ऐसे में पढ़ाई पर फोकस होगा भी कैसे? स्टूडेंट्स आएंगे कैसे? इस पर सबको विचार करने की जरूरत है।