लखनऊ (ब्यूरो)। आज की भागदौड़ भरी जिदंगी ने सभी की लाइफ में स्ट्रेस और टेंशन भर दिया है। खासतौर पर युवाओं में यह समस्या ज्यादा देखने को मिल रही है, जो पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ की टेंशन के बीच एंग्जायटी और डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं। एक्सपर्ट्स का भी मानना है कि वर्क कल्चर का किसी संस्थान में काम करने वालों की मेंटल हेल्थ पर बड़ा असर होता है। अगर वर्क कल्चर खराब होगा तो माइंड में निगेटिविटी होने से डिप्रेशन की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में वर्कप्लेस में मेंटल पीस के लिए पॉजिटिविटी का होना बेहद जरूरी है। युवाओं को भी स्ट्रेस मैनेजमेंट के बारे में सीखना चाहिए।

वर्क कल्चर से बढ़ रहा स्ट्रेस लेवल

केजीएमयू के साइकियाट्री विभाग के डॉ। अनिल कुमार निश्चल ने बताया कि ऑफिस जाने वाले यूथ में कई बेसिक प्राब्लम्स देखने को मिलती हैं। खासतौर पर 25 से 40 वर्ष की उम्र वालों में ज्यादा होती है, क्योंकि युवाओं में वर्क रिलेटेड स्ट्रेस सबसे ज्यादा होता है। इसमें जॉब सिक्योरिटी, वर्क लोड, बॉस का बिहेवियर, काम्प्टीटिव इन्वायरमेंट, टारगेट, कॉलेज के बाद आसानी से जॉब न मिलना आदि जैसे कई फैक्टर होते हैं, जो टेंशन और स्ट्रेस को बढ़ाने का काम करते हैं। यह टेंशन अगर एक लिमिट के बाहर हो जाये तो स्ट्रेसफुल होने से एंग्जायटी और डिप्रेशन की आशंका बढ़ जाती है। जॉब रिलेटेड स्ट्रेस, एंग्जायटी, डिप्रेशन और स्लीप डिस्आर्डर से जुड़ा होता है। इसके अलावा, किसी कलीग द्वारा नई कार खरीदना, घर खरीदना या शादी करना आदि सोशल प्रेशर भी बढ़ जाता है, जिसकी वजह से युवा और अधिक टेंशन में आ जाते हैं। वर्क कल्चर अगर बेहतर होगा तो मेंटल हेल्थ भी बेहतर रहेगी।

लव रिलेशन में भी टेंशन

कई बार फैमिली या लव रिलेशन में भी टेंशन देखने को मिलती है, क्योंकि रिलेशन बनाये रखने के लिए टाइम निकालना पड़ता है। इसके अलावा, फैमिली और फ्रेंड्स का एटीट््यूड भी बड़ा असर डालता है। हालांकि, क्लोज फ्रेंड्स आपकी मदद करते हैं, लेकिन कई बार युवा अपने मन की बात किसी और से नहीं कह पाते। ऐसे में वे समस्याओं को मन में ही दबाये रखते हैं, जो आगे चलकर स्ट्रेस और एंग्जायटी बढ़ाता है और वे लो-फील करने लगते हैं।

स्ट्रेस मैनेजमेंट बेहद जरूरी

प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ के स्ट्रेस को कंट्रोल में रखने के लिए युवाओं को स्ट्रेस मैनेजमेंट की ट्रेनिंग देना बेहद जरूरी हो गया है। यह एक ऐसी टेक्नीक है जिसमें टाइम मैनेजमेंट, रिलैक्स मैनेजमेंट जैसे पिकनिक, योगा मेडिटेशन आदि के अलावा प्रॉब्लम साल्विंग टेक्नीक के बारे में बताया जाता है। जबतक काम रहेगा, स्ट्रेस भी रहेगा, ऐसे में स्ट्रेस मैनेजमेंट का काम यही है कि स्ट्रेस को डील करना आ जाये। इसके अलावा, लो फील करें तो करीबी दोस्तों से बात करें। इससे मानसिक शांति मिलती है और स्ट्रेस में कमी आती है। अगर इसके बावजूद मैनेज नहीं कर पा रहे हैं, तो किसी प्रोफेशनल एक्सपर्ट जैसे साइकियाट्रिस्ट या साइकोलॉजिस्ट की मदद लें। अगर समस्या गंभीर हो जाये तो मेडिसिन की मदद ली जाती है। हर किसी की परिस्थितियां अलग होती हैं और स्ट्रेस से वह अलग तरह से डील करता है।

वर्कप्लेस का कल्चर अच्छा होगा तो मेंटल हेल्थ भी अच्छी होगी। युवाओं को स्ट्रेस मैनेजमेंट के बारे में बताना चाहिए। समस्या गंभीर हो तो किसी एक्सपर्ट को जरूर दिखाएं।

-डॉ। अनिल कुमार निश्चल, केजीएमयू