14 फीसद लोगों में मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम की आशंका
10 फीसद पुरुषों में मानसिक समस्या का खतरा
15 फीसद महिलाओं में मानसिक समस्या का खतरा
400 साइकियाट्रिस्ट की कमी प्रदेश में
- देश में आबादी के हिसाब से साइकियाट्रिस्ट की है कमी
- प्रदेश में ही आबादी के अनुसार करीब 400 साइकियाट्रिस्ट की कमी
द्यह्वष्द्मठ्ठश्र2@द्बठ्ठद्ग3ह्ल.ष्श्र.द्बठ्ठ
रुष्टयहृह्रङ्ख:
कोरोना काल में डिप्रेशन, एन्जायटी आम समस्या बनती जा रही है। इसके शिकार लोग जल्द डॉक्टर के पास इलाज के लिए भी नहीं जाते हैं। आज भी अपने देश में साइकियाट्रिस्ट या उससे संबंधित स्टाफ की कमी है। इसी को देखते हुए इस बार वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे की थीम मानसिक स्वास्थ्य, अधिक से अधिक निवेश, ज्यादा से ज्यादा पहुंच रखी गई है।
बनानी होगी बेहतर पॉलिसी
केजीएमयू के मनोरोग विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ। आदर्श त्रिपाठी ने बताया कि एक अनुमान के अनुसार 13 से 14 फीसद लोगों में मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम होने की आशंका है। हर एक लाख की आबादी पर एक साइकियाट्रिस्ट होना चाहिए। इस अनुसार प्रदेश में ही करीब 400 साइकियाट्रिस्ट की कमी है। एक सर्वे के अनुसार 8 से 10 फीसद पुरुष और 12 से 15 फीसद महिलाओं में मानसिक समस्या होने का खतरा रहता है। युवाओं में यह मामले ज्यादा देखने को मिल रहे हैं।
अच्छा रखें व्यवहार
राज्य मानसिक अधिकारी सुनील पांडेय ने बताया कि कोरोना से ठीक होने के बाद भी लोग मानसिक दबाव में हैं। उन्हें चिंता है कि लोग आगे उनके साथ कैसा व्यवहार करेंगे। उनकी इस समस्या का समाधान तभी संभव है जब हम उनके साथ अच्छा व्यवहार करें। स्टेट हेल्पलाइन पर इस तरह की काफी कॉल आती हैं।
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अधिकारी होंगे सम्मानित
कोरोना काल में जिम्मेदारी से ड्यूटी करने वाले जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के करीब 50 कर्मचारियों को वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे के अवसर पर शनिवार को सम्मानित किया जाएगा।
यह है लक्षण
क्या हैं तनाव के लक्षण
- इंसान का किसी से बात न करना
- थकान और सुस्ती का महसूस होना
- किसी चीज में मन न लगना
- शराब या तंबाकू का सेवन करना
- बात-बात में गुस्सा आना
- कभी ज्यादा तो कभी कम भूख लगना
- शरीर में दर्द रहना
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तनाव से कैसे बचें
- 7 से 8 घंटे की नींद जरूर लें
- डेली योग या एक्सरसाइज करें
- परिवार एवं दोस्तों के साथ बात करें
- नशे से दूर रहें
- हेल्दी फूड को डाइट में शामिल करें
- निगेटिव सोच से दूर रहें
कोट
डिप्रेशन की समस्या लोगों में काफी देखी जा रही है, लेकिन उस हिसाब से साइकियाट्रिस्ट नहीं हैं। सरकार को इसे लेकर पॉलिसी बनानी चाहिए।
डॉ। आदर्श त्रिपाठी, एडीशनल प्रोफेसर, मनोरोग विभाग, केजीएमयू