लखनऊ (ब्यूरो)। केजीएमयू में किडनी ट्रांसप्लांट, ओटी और आईसीयू न मिलने के कारण ठप है। पूर्व वीसी द्वारा समस्या को दूर करने का दावा किया गया था। हालांकि, हकीकत यह है कि उनके आदेश के करीब तीन माह बाद भी किडनी ट्रांसप्लांट शुरू नहीं हो चुका है। जिसके कारण बीते छह माह से यहां किडनी ट्रांसप्लांट नहीं किया जा सका है। इसका खामियाजा गंभीर समस्या से जूझ रहे मरीजों को भुगतना पड़ रहा है, जबकि अधिकारियों द्वारा संस्थान को किडनी ट्रांसप्लांट हब बनाने का दावा किया जा रहा है। पेश है अनुज टंडन की रिपोर्ट

छह माह से ट्रांसप्लांट रुका

केजीएमयू की नेफ्रोलॉजी ओपीडी सप्ताह में चार दिन संचालित होती है। जहां रोज 125-150 तक मरीज आते हैं, जिनमें 60 से 70 मरीजों को डायलिसिस की जरूरत पड़ती है। इन्हीं मरीजों में किडनी ट्रांसप्लांट के भी मरीज शामिल होते हैं। विभाग के अथक प्रयासों के बाद बीते साल दिसंबर माह में बड़ी जद्दोजहद के बाद किडनी ट्रांसप्लांट प्रोग्राम शुरू हो पाया था।

अप्रैल में आखिरी ट्रांसप्लांट

अप्रैल में आखिरी ट्रांसप्लांट के बाद काम पूरी तरह से ठप हैं। इस दौरान भी महज पांच ही ट्रांसप्लांट हो पाये थे। आखिरी ट्रांसप्लांट के बाद जिस विभाग की ओटी में ट्रांसप्लांट होता था और मरीजों को जिस आईसीयू वार्ड में रखा जाता था, उसे देने से मना कर दिया गया।

दूसरे अस्पताल जा रहे मरीज

जुलाई माह में पूर्व वीसी द्वारा ओटी और आईसीयू की समस्या को दूर कर नियमित किडनी ट्रांसप्लांट का दावा किया गया था। पर उनके आदेश के तीन माह बीत जाने के बाद भी ओटी और आईसीयू नहीं मिल पाया है। जिसकी वजह से करीब 4 से 5 मरीज किडनी ट्रांसप्लांट का इंतजार कर रहे हैं। कई मरीज इंतजार लंबा होने के कारण दूसरी जगह का रुख कर चुके हैं। ऐसे में मरीजों को तारीख के अलावा कुछ नहीं मिल रहा है।

सस्ते में होता है ट्रांसप्लांट

यहां की ओपीडी में आने वाले मरीजों में अधिकतर को डायलिसिस की जरूरत होती है। इन मरीजों में करीब 60 से 80 फीसद मरीजों के लिए किडनी ट्रांसप्लांट बेहतर विकल्प होता है। जिससे उनको डायलिसिस से छुटकारा मिल जाता है। पर महज एक फीसद के पास ही ट्रांसप्लांट के लिए डोनर होता है। जिसकी वजह से बड़ी दिक्कत आती है। कई बार डोनर की किडनी मैच नहीं करती क्योंकि परिवार में किसी को डायबिटीज, कैंसर आदि बीमारियां होती हैं या फिर ब्लड ग्रुप मैच नहीं करता, जिसकी वजह से दिक्कत और बढ़ जाती है।

4 लाख के करीब खर्च

यहां पर ट्रांसप्लांट का खर्च करीब 3 से 4 लाख रुपये आता है। जबकि, निजी अस्पतालों में यही खर्च 10 लाख से ऊपर तक चला जाता है, इसीलिए मरीज भी सरकारी संस्थानों का रुख करते है। इसके अलावा, संस्थान में आयुष्मान और असाध्य रोग योजना के तहत ट्रांसप्लांट पूरी तरह फ्री में होता है, जिससे गरीब मरीजों को बड़ी राहत मिलती है। ऐसे में अधिकारियों को मरीज हित में जल्द से जल्द किडनी ट्रांसप्लांट का शुरू करवाना चाहिए।

कुछ तकनीकी दिक्कतें थीं, जिन्हें दूर कर लिया गया है। जल्द की संस्थान में किडनी ट्रांसप्लांट फिर शुरू हो जाएगा। मरीजों को किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं होने दी जाएगी।

डॉ। सुधीर सिंह, प्रवक्ता, केजीएमयू