-अभी ट्रॉमा सेंटर शुरू होने में लगेगा काफी समय

-13 वर्ष बाद भी लिवर ट्रांसप्लांट की सुविधा नहीं हुई शुरू

sunil.yadav@inext.co.in

LUCKNOW:

पिछले कई वर्षो से संजय गांधी पीजीआई प्रशासन अपने दीक्षांत समारोह में मरीजों के लिए ट्रॉमा सेंटर शुरू करने की घोषणा के साथ ही कई अन्य सुविधाएं शुरू करने की घोषणा करता है। करोड़ों की योजनाएं बनाई जाती हैं। विश्वस्तरीय सुविधाओं की बात होती है लेकिन समय बीतता जाता है पर मरीजों को नई सुविधाएं नहीं मिलती हैं। मरीज आज भी नई सुविधाओं का यहां इंतजार कर रहे हैं।

एसजीपीआई ट्रॉमा सेंटर

पीजीआई की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक 218 बेड के अत्याधुनिक सुविधाओं से लैसअपेक्स ट्रॉमा सेंटर का निर्माण 2006 में शुरू हुआ था। इसे तीन वर्ष में पूरा किया जाना था लेकिन इसके निर्माण में ही दस साल लग गए। एक जनवरी 2016 को इसे केजीएमयू को देकर शुरू किया गया। केजीएमयू के संसाधनों पर यहां 800 से अधिक मरीजों की सर्जरी भी की गई और 2800 से अधिक को इलाज दिया गया। 2017 में सरकार बदलने के साथ ही इसे फिर पीजीआई के हवाले कर दिया गया। जिसके बाद से यहां इलाज ठप है। अधिकारियों के मुताबिक फिलहाल अगले एक साल तक यहां ट्रीटमेंट शुरू हो पाना मुमकिन नहीं है।

लिवर ट्रांसप्लांट ब्लॉक

यह प्रोजेक्ट 2005 में बनना शुरू हुआ था। 30 करोड़ रुपए की लागत से बिल्डिंग बना ली गई है। लेकिन अभी तक यह मरीजों के लिए उपलब्ध नहीं है। ना ही यहां मशीनें आई हैं। पीजीआई प्रशासन और संबंधित अधिकारियों ने बिल्डिंग बनने के बावजूद इसमें रुचि नहीं ली। जिससे मरीज लिवर ट्रांसप्लांट के लिए दिल्ली, बंगलौर जैसे शहरों में जाने को मजबूर हैं।

रीजनल कैंसर सेंटर

रेडियोथेरेपी डिपार्टमेंट को रीजनल कैंसर सेंटर के रूप में तब्दील किया जाना था। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की मदद से यह सेंटर शुरू होना था। इसके लिए पहले फेज में पांच करोड़ रुपए भी 2005 में ही स्वीकृत कर दिए गए। लेकिन न तो मशीनें आईं और न ही कैंसर के मरीजों को सुविधाएं मिलीं।

एचआईएस अपग्रेडेशन

पीजीआई के हॉस्पिटल इनफॉर्मेशन सिस्टम को 2008 में अपग्रेड करने की प्रक्रिया शुरू की गई। इस सिस्टम पर ही मरीज रजिस्टर और भर्ती होते हैं। उनकी जांच व इलाज से लेकर पूरा ब्यौरा ऑनलाइन रहता है। अपग्रेडेशन के लिए संबंधित एजेंसी को 12.50 करोड़ रुपए दिए गए लेकिन अभी भी परचेज माड्यूल, एक्विपमेंट इनवेंटरी, हाउस कीपिंग सर्विसेज, अकाउंट, ड्रग लाइब्रेरी सहित अन्य सुविधाओं को इससे जोड़ा नहीं गया।

कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी

वर्ष 2000 में 23 करोड़ की लागत इसका निर्माण शुरू हुआ। पांच वर्ष का प्रोजेक्ट था लेकिन 2009 में नौ वर्ष बाद यह पूरा हो सका। उसके बाद से अब तक न तो फैकल्टी का चयन किया गया और न ही कोई कोर्स चलाया गया। संस्थान ने बिल्डिंग के एक हिस्से में कॉलेज ऑफ नर्सिग शुरू किया। अगर यहां कई कोर्स चलाए जाते तो युवाओं को रोजगार के नए अवसर मिल सकते थे।

लाइब्रेरी/लेक्चर थिएटर

वर्ष 2003 में 18 करोड़ की लागत से इसका निर्माण शुरू हुआ। इसे तीन वर्ष में पूरा होना था। लेकिन 12 वर्ष बाद (2017) इसका कांस्ट्रक्शन पूरा हो सका। तीन फ्लोर पर लाइब्रेरी बनी और शेष को हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन व एचआईएस को दे दिया गया। इस दौरान लाइब्रेरी के लिए लाए गए करोड़ों के फर्नीचर को उखाड़कर हटा दिया गया।

हिमैटोलॉजी/बोन मैरो ट्रांसप्लांट ब्लॉक

18 करोड़ की लागत से वर्ष 2003 में यह प्रोजेक्ट शुरू हुआ। इसे तीन वर्ष में पूरा होना था। 13 वर्ष बाद 2016 में बिल्डिंग का निर्माण पूरा हुआ। लेकिन विभाग ने इसे अभी आंशिक रूप से ही अपने कब्जे में लिया है। सूत्रों के मुताबिक निर्माण में जमकर घोटाले किए गए जिसकी जांच के लिए कई बार कमेटियां बनीं लेकिन कमेटियों की रिपोर्ट अब तक नहीं आई।

एनिमल हाउस

रिसर्च, ट्रेनिंग, एडवांस सर्जिकल तकनीक विकसित करने के लिए पीजीआई में एनिमल हाउस 2006 में बनना शुरू हुआ। 27 करोड़ की लागत से 9 वर्ष बाद 2015 में बिल्डिंग वर्क पूरा हुआ लेकिन सुविधाएं अभी तक पूरी नहीं हैं। विश्व स्तरीय रिसर्च वर्क का उद्देश्य अभी आंशिक रूप से ही पूरा हो पा रहा है।

अब नए प्रोजेक्ट के लिए मिले

पुराने प्रोजेक्ट को न चला पाने वाले संजय गांधी पीजीआई प्रशासन को अब फिर 473 करोड़ की योजनाओं की सौगात दी गई है। 28 फरवरी को प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा, पीजीआई के निदेशक डॉ। राकेश कपूर, चिकित्सा अधीक्षक डॉ। अमित अग्रवाल व अन्य की मौजूदगी में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से ऋण के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए गए। इन 473 करोड़ से 210 बेड की इमरजेंसी मेडिसिन, 180 बेड का किडनी ट्रांसप्लांट सेंटर, लिवर ट्रांसप्लांट के लिए आवश्यक उपकरण और रोबोटिक सर्जरी की स्थापना होनी है। लिवर ट्रांसप्लांट को छोड़कर पुराने किसी प्रोजेक्ट को शुरू करने में शासन प्रशासन की रुचि नहीं दिख रही है।

बोले जिम्मेदार

473 करोड़ का लोन मिला है। जिससे रीनल ट्रांसप्लांट, लिवर ट्रांसप्लांट, रोबोटिक सर्जरी, इमरजेंसी मेडिसिन शुरू होनी है। लिवर ट्रांसप्लांट की बिल्डिंग रेडी है। एक्विपमेंट करीब 38 करोड़ के दे रहे हैं। कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी को इसी वर्ष शुरू किया जाएगा। लाइब्रेरी शिफ्ट कर दी गई है। एचआईएस को न्यू लाइब्रेरी में शिफ्ट किया जा रहा है। एनिमल हाउस एक्टीवेटेड है। रीजनल कैंसर सेंटर के लिए अभी हमें मशीन खरीदने के लिए स्टेट शेयर मिला है। मशीनें खरीदी जा रही हैं। टेंडर कर दिया गया है। ट्रॉमा सेंटर मैनपावर की कमी से रुका है। मैनपावर की पोस्ट एडवर्टाइज कर दी गई और एक्विपमेंट का टेंडर जारी कर दिया गया है। जल्द सभी सुविधाएं शुरू करने का प्रयास है।

प्रो। राकेश कपूर, डायरेक्टर, एसजीपीजीआई