लॉकडाउन में मां की तरह ही पिता के भी करीब आए बच्चे, बने बेस्ट फ्रेंड

दैनिक जागरण आईनेक्स्ट से बच्चों और माता-पिता ने शेयर किए अनुभव

पिता एक उम्मीद है, एक आस है

परिवार की हिम्मत और विश्वास है,

बाहर से सख्त अंदर से नर्म है

उसके दिल में दफन कई मर्म हैं।

पिता संघर्ष की आंधियों में हौसलों की दीवार है

परेशानियों से लड़ने को दो धारी तलवार है।

Meerut। जेब फटी भी हो, पर दुनिया की सबसे महंगी चीज दिलाने का विश्वास दिलाते हैं, मेरे पापा ही तो हैं जो खुशियों का आसमान दिलाते हैं। फादर्स डे पर कविताओं की पंक्तियां मौजूं भी हैं और सच भी, क्योंकि बच्चों के जीवन में पिता का साया भगवान से भी बढ़ा होता है। आज के दौर मां-बाप काम सिलसिले में बिजी होने के चलते बच्चों के साथ कम ही समय बीता पाते हैं।

करीब आ गए पापा

हालांकि पिता के मामले ये सबसे ज्यादा होता है। मां घर पर रहने के कारण बच्चों के ज्यादा करीब आ जाती है लेकिन मां वाला सॉफ्ट कॉर्नर बच्चे पिता के साथ शेयर नहीं कर पाते। मगर कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन ने सब कुछ बदलकर रख दिया। अब बच्चे पिता के उतने ही करीब आ गए हैं, जितने मां के थे। लॉकडाउन में मां के साथ-साथ पिता ने भी बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताया। अपने जीवन के अनुभवों को भी बच्चों के साथ शेयर किया। इसी का नतीजा है कि अब बच्चों के पिता उनके लिए पापा द ग्रेट बन गए हैं।

आई पापा के करीब

कृष्णा विहार की रहने वाली राध्या बताती हैं कि उनके पिता हरिओम एक टीचर हैं। आम दिनों में वो अपने स्कूल होते थे और मैं अपनी पढ़ाई में बिजी होती थी। सो पिता के साथ वक्त बीताने के मौके कम ही मिलते थे। मगर लॉकडाउन में हम दोनों की छुट्टी रहीं और हमने घर पर रहकर खूब इंज्वॉय किया। हालांकि पापा के प्यार में पहले भी कोई कमी नहीं थी लेकिन अब मैं उनके जितना करीब आई, उतना पहले कभी नहीं थी। अब मैं दोस्त की तरह अपनी हर बात पापा से शेयर कर लेती हूं। हमने इन दिनो में एक-दूसरे से बहुत कुछ सीखा और सिखाया। खेल हो, कुकिंग हो या फिर पढ़ाई।

सब कुछ बदल गया

पंजाबीपुरा के रहने वाले विकास सेठी ने बताया कि वो एक व्यापारी हैं इसलिए पूरे दिन अपने व्यापार में इतना उलझे रहते हैं कि बच्चों के साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाते। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन में सब कुछ बंद पड़ा था और इस दौरान मैंने अपने बच्चों के साथ बहुत समय बिताया। इस दौरान न केवल बच्चों को करीब से जानने का शानदार मौका मिला बल्कि मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा। उनके साथ दोस्त की तरह रहना, उनकी हर खुशी में मौके पर मौजूद होने ने सब बदलकर रख दिया। अब मेरे बच्चे अपने किसी भी काम से पहले मुझसे सलाह लेते हैं। मेरे साथ गेम्स खेलते हैं, मुझे व्हाट्सएप वाले जोक सुनाते हैं। मुझे अब पता चला कि मैं बिजी होने के चलते लाइफ में क्या-क्या मिस कर रहा था।

बच्चों की बेस्ट फ्रेंड

दिल्ली रोड निवासी पारुल जैन ने बताया कि बीते लॉकडाउन के दिनों में पूरी फैमिली ने क्वालिटी टाइम बिताया। पारुल ने बताती हैं कि इन दिनों में पूरी फैमिली ने साथ सोना, खाना, खेलना और यहां तक पढ़ने के काम भी साथ-साथ किया। बच्चे अपनी तैयारी करते थे और हम नॉवल्स और कुछ और किताबें पढ़ते थे। पारुल ने बताया वैसे तो वो हरदम बच्चों के साथ दोस्त की तरह रहते हैं, लेकिन लॉकडाउन में बच्चे हमारे और हम बच्चों के बहुत करीब आ गए। पारुल ने बताया कि मैं पेशे से टीचर हूं इसलिए घर में पढ़ाई का माहौल रहता ही है लेकिन इस लॉकडाउन में हम हर काम में बच्चों के न केवल पार्टनर बने बल्कि उनके बेस्ट फ्रेंड की लिस्ट में भी हम शामिल हो गए हैं।