मेरठ (ब्यूरो)। रविवार शाम को भी श्रद्धालुओं ने डूबते सूर्य को संध्या अघ्र्य देकर पूजन किया। इसके लिए शहर के कई इलाकों में पूर्वांचल के लोगों ने विधिवत अघ्र्य दिया। इसके साथ ही परिजन समेत देशवासियों के स्वस्थ रहने की मंगल कामना की। छठ पूजा के लिए खास तौर पर गगोल तीर्थ पर इंतजाम किए गए थे। रविवार को छठ पूजा का तीसरा दिन था। पहले दिन नहाय-खाय, दूसरे दिन खरना और तीसरे दिन रविवार शाम को डूबते सूर्य को संध्या अघ्र्य दिया गया। सोमवार प्रात: काल उगते सूर्य को प्रात: अघ्र्य दिया जाएगा, जिसके बाद प्रसाद वितरण होगा।

हजारों की भीड़
रविवार को डूबते सूर्य को अध्र्य देने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु गगोल तीर्थ दोपहर बाद पहुंचे तो उन्हें सरोवर समेत पूरा परिसर साफ-सुथरा मिला। यहां पर आकर्षक रंगोली बनाई गई। पूरे मेला परिसर की ड्रोन कैमरे से वीडियोग्राफी कराई गई। पथ प्रकाश से लेकर मेला परिसर की प्रकाश व्यवस्था सुबह ही दुरस्त कर दी गई। मोबाइल टायलेट और पानी भरे टैंकर खड़े किए गए। अपर नगर आयुक्त प्रमोद कुमार, सफाई के नोडल अधिकारी डॉ। हरपाल ङ्क्षसह ने व्यवस्थाओं का जायजा लिया।

ठहरने का इंतजाम भी
ऋषि विश्वामित्र की तपस्थली गगोल तीर्थ में छठ पूजन का ²श्य देखते ही बन रहा था। यहां पैर रखने की जगह नहीं बची थी। सरोवर के चारों ओर डूबते सूर्य को अध्र्य देने को लोग हजारों की संख्या में कतारबद्ध थे। बांस की टोकरी में फल व ठेकुआ का प्रसाद पूजन सामग्री रखकर भगवान सूर्य से सुख शांति की मनोकामना मांगी। अब सोमवार सुबह उगते हुए सूर्य को अध्र्य देकर 36 घंटे के व्रत का पारण होगा। दूरदराज से आए श्रद्धालुओं के ठहरने का इंतजाम भी किया गया है। गगोल तीर्थ पर श्रद्धालुओं ने सरोवर की परिक्रमा की। सुरक्षा के लिए पुलिस कर्मी तैनात रहे। वाहनों की पार्किंग मैदान में की गई। मेले का भी लोगों और बच्चों ने खूब लुफ्त उठाया। झूलों का आनंद बच्चों ने उठाया। हालांकि श्रद्धालुओं को यहां पहुंचने के लिए जाम का सामना करना पड़ा। वहीं, परतापुर में माधवकुंज में भी छठ व्रती ने डूबते सूर्य का अध्र्य दिया।

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टोकरी का विशेष महत्व
छठ महापर्व पर बांस से तैयार चीजें व सूप यानी टोकरी खासतौर पर भगवान सूर्य को अध्र्य देने के लिए उपयोग में लाई जाती है। शास्त्रों में बांस से तैयार सूप का विशेष महत्व माना जाता है। बांस को शुद्धता, पवित्रता व सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। बांस से तैयार सूप या टोकरी में ही महिलाएं फल व प्रसाद रखकर घाट तक लाती हैं। इसके बाद ही महिलाएं सूर्य देव को अध्र्य देती हैं और छठी मैया को भेंट करती हैं।