हर स्कूल पेरेंट्स पर बाजार की स्टेशनरी ना खरीदने का प्रेशर है। स्कूलों ने अपनी कापी छपवा ली हैं। इन्हीं को खरीदने का प्रेशर पेरेंट्स पर बनाया जा रहा है। पूछने पर कहा जाता है कि सभी बच्चे एक सी कापी रखते हैं तो देखने में अच्छा लगता है। स्कूल इस बात को भूल रहे हैं कि यहां पर बच्चे पढऩे आते हैं फैशन परेड में हिस्सा लेने नहीं आते।

क्या है मामला

अधिकतर स्कूलों ने स्टैंडर्ड कापी के नाम पर अपने नाम की छपी हुई कापी को ही पास किया है। इसके अलावा किसी दुकान की कापी खरीदने पर बच्चे को डांट पड़ रही है। यहां तक की नई कापी ना लाने पर बच्चों को कापी फाड़ देने को भी कहा जा रहा है।

बहुत महंगा है

एक बार को पेरेंट्स अपने बच्चे के लिए स्कूल की मनमानी भी मान ले। लेकिन यहां पर भी स्कूल पेरेंट्स की जेब तराशने से बाज नहीं आ रहे। अधिकतर स्कूलों की कापी में 120 पेज हैं। ये कॉपी 18 से 20 रुपए में स्कूलों में बेची जा रही है। जबकि इसकी पेपर क्वालिटी भी अच्छी नहीं है। जबकि बाजार में 180 पेज की कापी 18 रुपए में मिल रही है और उसकी पेपर क्वालिटी भी बहुत अच्छी है।

10 कॉपी ज्यादा

ऑन एन एवरेज हर साल एक सब्जेक्ट में बच्चे की चार कॉपी लग जाती है। अगर वो स्कूल की कॉपी खरीदेगा तो उसे हर बार ज्यादा पैसे देने होंगे और कम पेज मिलेंगे। इस हिसाब से ये कॉपियों की संख्या चार से बढक़र छह तक चली जाती है। कम से कम पांच से छह सब्जेक्ट होते ही हैं। जिनमें कुल मिलाकर 10 से 12 कापी ज्यादा खरीदनी पड़ेंगी।

हर जगह लूट

ताकि स्कूल की कापी पर स्कूल का नाम दिखता रहे बच्चे को कापी पर या तो स्कूल की तरफ से दिया गया कवर चढ़ाना होगा या फिर सिर्फ टेलेक्शीट लगानी होगी। यानी अब स्कूल पढ़ाने से ज्यादा ध्यान कापी कौन सी है उस पर कैसा कवर चढ़ा है इस पर देंगे। स्क्रैब बुक, टैग फाइल, स्कूल डायरी में भी इसी तरह का खेल चल रहा है। सिर्फ कापी ही नहीं रफ रजिस्टर तक भी स्कूल अपने यहां से ही दे रहे हैं।

नहीं होती सुनवाई

प्राइवेट स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ा रहे पेरेंट राज कुमार ने बताया कि दो रुपए के टैग की कीमत दस रुपए वसूली जा रही है। बाजार से कापी खरीदी जाए तो बच्चों को डांटा जाता है। उनका कहना है कि पीटीए वाले भी कुछ करने को तैयार नहीं है। आम आदमी की कहीं पर भी सुनवाई नहीं हो रही है। प्रिंसीपल से मिलने जाएं तो वो मिलने से इनकार कर देती हैं।

"अगर सभी बच्चे एक जैसी कॉपी रखेंगे तो ये देखने में अच्छा लगता है। इससे कापी चेक करने में भी परेशानी नहीं आती है."

-करुणा गुप्ता, प्रिंसीपल मेरठ सिटी पब्लिक स्कूल

"मेरा बेटा फोर्थ क्लास में पढ़ता है। स्कूल से प्रेशर है कि जो कॉपी स्कूल दे रहा है वही खरीदो, नहीं तो कॉपी फाड़ दी जाएगी."

-राज कपूर, शिव शक्ति नगर

मेरी बेटी का एडमिशन आज की एक स्कूल में कराया है। हमने स्कूल की कॉपी खरीदने से इनकार किया तो स्कूल ने इसके लिए प्रेशर बनाया। बेटी को बाद में परेशानी ना हो इस लिए कापी खरीदनी पड़ी।

-आराधना, मोदीपुरम

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