मेरठ (ब्यूरो)। क्रांतिधरा ने भारतीय पुरुष क्रिकेट में कई नामचीन सितारे दिए हैं। इनमें से प्रवीण कुमार, भुवनेश्वर कुमार, शिवम मावी, प्रियम गर्ग आदि प्रमुख हैं, लेकिन महिला क्रिकेट खिलाडिय़ों को अभी तक वो नेम और फेम हासिल नहीं हो सका है। ऐसा नहीं हैं कि शहर में बेटियां क्रिकेट नहीं खेलना चाहती हैं। वो भी क्रिकेट की पिच पर चौके -छक्के जडऩा चाहती हैं। वे भी धोनी की तरह हेलीकॉप्टर शॉट लगाना चाहती हैं। लेकिन स्टेडियम में महिला क्रिकेट कोच न होने से बेटियों को अवसर नहीं मिल पाता है। हालत यह है कि महिला कोच न होने से बेटियों को क्रिकेट की प्रॉपर ट्रेनिंग तक नहीं मिल पा रही है। कुछ बेटियों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, लेकिन वे क्रिकेट में बेहतर करना चाहती हैं। उन्हें भी मौके मिलने चाहिए। इस मुद्दे पर दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने कॉलेज गोइंग स्टूडेंट्स, स्पोट्र्स पर्सन से बातचीत की। स्कूल और कॉलेज की बेटियों से उनकी समस्याओं को जाना-समझा।

महिला कोच की तैनाती
अधिकतर लड़कियों ने कहा कि वे क्रिकेट तो सीखना चाहती हैं। वे भी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी और अपने शहर की पहचान बनाना चाहती हैं, लेकिन हालत यह है कि स्टेडियम में महिला क्रिकेट के लिए न तो सुविधाएं हैं और न ही कोच की तैनाती है। इसलिए मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। अगर महिला कोच की तैनाती हो, साथ ही क्रिकेट की प्रॉपर ट्रेनिंग मिले तो वे भी इंटरनेशनल लेवल पर कमाल कर सकती हैं।

मैनें भी सोचा था कि महिला क्रिकेट टीम में जाने का मौका मिले, लेकिन यहां कोई खास सिखाने वाला ही नहीं है। अगर यहां कोई अलग से क्रिकेट के लिए महिला स्टेडियम हो जाए तो बेहतर होगा।
मनस्वी

हम सीखना तो चाहते हैं, लेकिन यहां हमारे लिए सुविधाएं ही नहीं हैं। ऐसे में लड़कियों के लिए क्रिकेट जैसे खेल को सीखना मुश्किल है। बिना सुविधा के वो कैसे सीख पाएंगी और कैसे बढ़ पाएंगी।
महक

एक बार मैं भी विक्टोरिया पार्क गई थी, लेकिन वहां जब देखा कि लड़के ही सीखने आ रहे है तो थोड़ा अलग लगा। मन में विचार आया लड़कियां भी होती तो मैं भी सीख लेती।
आरती