- सीबीएसई ने स्कूल बसों में मानक के अनुसार हॉर्न लगाने के दिए निर्देश

- बच्चों के कान खराब होने की शिकायत पर लिया गया बड़ा फैसला

Meerut : क्या आप जानते हैं आपका बच्चा स्कूल से घर तक का सफर कितनी मुश्किल से तय करता है, जी हां बसों में लगे हॉर्न उनके कानों को बहरा तक करने की क्षमता रखते हैं, इसलिए जरा संभल जाए और यह ध्यान रखें कि आपका बच्चा जिस बस में सफर कर रहा हैं क्या वो नियमों के अनुसार है भी या नहीं। हालांकि अभी सीबीएसई ने भी इस स्कूल बसों के संबंध स्कूलों को अलर्ट किया है। लेकिन आपको खुद भी अलर्ट होना होगा।

सीबीएसई को मिली शिकायतें

अभी हाल में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन दिल्ली ने सीबीएसई को एक रिपोर्ट दी है। इसमें कहा गया है कि स्कूल बसों के हॉर्न से देश भर में एक लाख से अधिक बच्चों को सुनने में समस्या आ रही है और कुछ बहरे भी हो गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार यूपी यूपी में 20 हजार से अधिक बच्चों को कानों में आवाज गूंजना, माइग्रेन और 20 प्रतिशत के बहरे होने की शिकायत हो गई है। डॉक्टर्स की इस रिपोर्ट के अलावा सीबीएसई के पास ऐसे दस हजार से अधिक पेरेंट्स की शिकायतें भी लास्ट इयर पहुंची है।

जारी किया है सर्कुलर

सीबीएसई के पास पहुंची शिकायतों के बाद बोर्ड ने अभी स्कूलों को सर्कुलर जारी किया है व इस संबंध में एक बैठक भी की है। सर्कुलर में स्कूलों को लिखा गया है कि अपने स्कूलों की बसों के हॉर्न को चेक करवा लें और उन्हें पॉल्यूशन बोर्ड के नियमों के अनुसार ही करवाएं ताकि बच्चों को इस तरह की शिकायतें न आए।

--------

सेंट्रल पॉल्यूशन बोर्ड के मानक

इंडस्ट्रीयल एरिया में हॉर्न

दिन में 75 डेसिबल

रात में 70 डेसिबल

कॉमर्शियल एरिया में हॉर्न

दिन में 65 डेसिबल

रात में 60 डेसिबल

रेजिडेंशियल एरिया में हॉर्न

दिन में 55 डेसिबल

रात में 40 डेसिबल

साइलेंस एरिया में हॉर्न

दिन में 50 डेसिबल

रात में 40 डेसिबल

जबकि शहर में स्कूल बसों में बजने वाले 90 प्रतिशत हॉर्न 70 या उससे ऊपर के डेसिबल के हैं।

वर्जन

किसी भी बच्चे के लिए दस डेसीबल से ज्यादा शोर सुनना घातक हो सकता है। यदि यह शोर बच्चों को बार-बार सुनाई देगा तो बच्चे को बहरापन तक आ सकता है।

-डॉ। रविन्द्र रस्तोगी, इएनटी विशेषज्ञ

--------

क्या कहते हैं प्रिंसिपल

हमारा भी दायित्व बनता है, लेकिन स्कूल की बसें प्राइवेट होती है। इसमें स्कूल को कोई दायित्व नही हैं। मगर इतना जरुर है कि बसों की जांच करवाते रहें।

-कपिल सूद, जीटीबी

जिम्मेदारी तो स्कूल पूरी तरह से निभाते है, मगर अचानक से घटने वाली घटनाओं को तो स्कूल भी नहीं रोक सकते हैं।

-प्रेम मेहता, सिटी वोकेशनल

ऐसा सुनने में आया है कि सीबीएसई डॉक्टर्स ने सीबीएसई को रिपोर्ट दी है। सभी बसें प्राइवेट है इस बारे में मैनेजमेंट से भी बात की गई है। बसों की समय-समय पर जांच की जाएगी व हॉर्न में भी बदलाव करवाया जाएगा।

-मधु सिरोही, प्रिंसिपल, एमपीजीएस

हमारी बसों में पूरी जिम्मेदारी से बच्चों को लाया जाता है। वैसे तो बसे प्राइवेट होती है। तथा सबकुछ पेरेंट्स व स्कूील बस वालों के बीच ही तय होता है। फिर भी स्कूल मैनेजमेंट बसों पर नजर रखता है।

-एचएम राउत, प्रिंसिपल, दीवान स्कूल

-----------

स्कूल बस और बच्चे

स्कूल-बस-बच्चे

जीटीबी -5 - 400

दीवान पब्लिक स्कूल -20- 1100

सोफिया ग‌र्ल्स स्कूल -4 -250

एमपीएस -12 -1000

सिटी वोकेशनल -24 -3000

सिटी के स्कूलों में आधी से ज्यादा बसें खटारा हो रही है, जिनके पास आरटीओ का फिटनेस सर्टिफिकेट भी नहीं है।

सुरक्षा के साथ भी खिलवाड़

बसों में न तो कोई आपातकालीन खिड़की हैं और न ही कोई फ‌र्स्ट एड बॉक्स। वहीं सिटी में 80 से अधिक सीबीएसई स्कूलों में एक फीसदी बसों में हेल्पर हैं, लेकिन वर्दी में कोई नहीं होता है। अगर किसी हादसे में कोई बच्चा घायल हो जाए तो फ‌र्स्ट एड बॉक्स नहीं है। गेट का बंद रखने का नियम भी नहीं अपनाया जाता है। बसों का रंग पीला होना चाहिए, लेकिन स्कूलों की 50 फीसदी बसें सफेद, नीली व लाल ही हैं। पूछने पर ड्राइवर मालिकों पर बात टालते हैं कि उन्हें वर्दी नहीं मिलती हैं। जीटीबी के बस ड्राइवर शीशपाल कहते हैं कि उसे ड्रेस मिलेगी तो वो पहनेंगे।