मेरठ (ब्यूरो)। मूर्ति निर्माण प्राचीनतम कलाओं में से है लेकिन आज भी यह युवाओं के लिए रोजगार का प्रमुख साधन है। ललित कला विभाग द्वारा इस क्षेत्र में आने को योजनाएं संचालित की जा रही है। मूर्ति कला कार्यशाला में कार्यशाला संयोजिका का प्रो। अलका तिवारी ने बताया पिछले 20 वर्षों में मूर्तियां बनाने वालों की संख्या लगभग 15 गुना बड़ी है। वही इस क्षेत्र में डिग्री लेने वालों की संख्या लाखों में है ऐसे युवाओं के लिए राज्य ललित कला अकादमी पर्याप्त प्रोत्साहन व साधन उपलब्ध करा रही है। एक सर्वेक्षण के मुताबिक पिछले 20 वर्षों में भारतीय कलाकारों द्वारा निर्मित मूर्तियों की मांग हमारे देश ही नहीं विदेशी बाजारों में 30 प्रतिशत बड़ी है। पारंपरिक मूर्तियों की मांग स्थानीय बाजारों में तकरीबन 25 प्रतिशतऔर विदेशी बाजारों में 40 प्रतिशत बड़ी है। ऐसे में राज्य ललित कला अकादमी, कला एवं कलाकारों को प्रोन्नति एवं प्रोत्साहन की ओर निरंतर अग्रसर होती हुई। अकादमी द्वारा कलाकारों को प्रोत्साहित करने की दिशा में किया जा रही योजनाओं को समय-समय पर कार्यशाला में अवगत कराया जाएगा।

पारम्परिक मूर्ति की बताई विशेषता
मूर्ति कला कार्यशाला के पांचवे दिन प्रवक्ता सलोनी त्यागी, आरुषि गर्ग द्वारा विद्यार्थियों को पारंपरिक मूर्ति कला का प्राथमिक प्रशिक्षण दिया गया। उन्होंने भारत की पारंपरिक मूर्ति कला की विशेषताओं से स्टूडेंट्स को अवगत कराया। मूर्तिकार आकाश कुमार के दिशा निर्देशन में विद्यार्थियों ने प्रथम दिवस से प्रारंभ की गई मूर्तियों के विवरणों की बारीकी को उकेरा। कार्यशाला में यूनिवर्सिटी के अनेक विभागों से विद्यार्थियों ने कार्यशाला का अवलोकन कर युवा कलाकारों की सराहना की।

ये रहे कार्यशाला में मौजूद
कार्यशाला में कलाकार सलोनी त्यागी, कलाकार आरुषि गर्ग, डॉ। शालिनी धामा, डॉ। पूर्णिमा वशिष्ठ श्रीमती शालिनी त्यागी, सुदेश कुमार, आकाश कुमार का विशेष सहयोग रहा। इस मौके पर युगांशी शर्मा, कशिश, फैजा, अर्चिता, रिद्धिमा, गौरंगी, मानसी, तेजस, श्रेया, पायल, सार्थक, पियूष, राहुल, आदित्य, यशस्वी, जय श्री आदि विद्यार्थी कार्यशाला में उपस्थित रहे।