- मेरठ के 5000 वकीलों में से 500 वकीलों ने भी नहीं दिए दर्शन

- 10 जिलों में 100 वकील ही आए महापंचायत में

- बाकी लोगों से कैसे लगाई जा सकती है कोई आस

- वकीलों की आपसी गुटबाजी का नतीजा है फ्लॉप महापंचायत

Meerut : जिस वेस्ट यूपी हाईकोर्ट बेंच के लिए पिछले कई सालों से लड़ाई लड़ी जा रही है, उसकी पोल वकीलों ने खुद महापंचायत आयोजित कर खोल कर रख दी। वेस्ट यूपी के करीब दो लाख वकीलों में से इस महापंचायत में दो हजार वकील नहीं पहुंचे। अगर बात मेरठ की करें तो तो करीब पांच हजार वकीलों की संख्या में भ्00 वकील बामुश्किल ही दिखाई दिए। अब सवाल कई हैं। आखिर इस महापंचायत में वकीलों की संख्या कम क्यों रही। क्या वेस्ट यूपी के बाकी जिलों में वकीलों हौसला टूट गया है। हाईकोर्ट संघर्ष समिति क्यों वकीलों को एकीकृत नहीं कर पा रही है।

क्0 फीसदी वकील तक नहीं पहुंचे

वेस्ट यूपी हाईकोर्ट संघर्ष समिति के पदाधिकारियों को बिल्कुल भी उम्मीद नहीं होगी कि आज की महापंचायत में अपने ही लोगों का रिस्पांस काफी कम होगा। जी हां, ये बात पूरी तरह से सही है। आज की महापंचायत में मेरठ के ही कुल वकीलों की संख्या में क्0 फीसदी भी नहीं पहुंचे। मेरठ जिले में कुल भ्000 वकीलों की संख्या है जो मेरठ बार और जिला बार में रजिस्टर्ड हैं। संख्या कम क्यों रही इस बारे में कोई पदाधिकारी कुछ भी कहने को तैयार नहीं है। सिर्फ इतना कहना है कि लोगों की भीड़ काफी जुटी और हमें आम जनता का पूरा समर्थन है। बेंच को लेकर हमारा आंदोलन जारी रहेगा।

भर जाना चाहिए था कमिश्नरी चौराहा

पिछले तीन-चार महीनों से वकीलों का आंदोलन करो या मरो का था। ये रैली कई लिहाज से काफी महत्वपूर्ण थी। राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक को अपना शक्ति प्रदर्शन करने का एक बेहतरीन मौका था। वकीलों की लिहाज से और वेस्ट यूपी बेंच को देखते हुए ख्ख् जिले टच करते हैं। जिनमें सिर्फ वकीलों की संख्या करीब दो लाख हैं। अगर मेरठ के आसपास के दस जिलों की बात करें तो वकीलों की संख्या करीब 90 हजार के आसपास है। अगर इस महापंचायत में से भ्0 हजार वकील भी आते तो पुलिस और प्रशासन के पसीने छूट जाते। वकीलों की गूंज लखनऊ से ज्यादा दिल्ली तक पहुंचती, लेकिन वकीलों की कम संख्या ने इस मौके पूरी तरह से गंवा दिया है।

वकीलों से ज्यादा तो ये लोग थे

वकीलों की संख्या को देखकर बेंच की मांग को लेकर समर्थन कर रहे बाकी संगठन के लोग भी काफी निराश थे। आम आदमी पार्टी, भाकियू, संयुक्त व्यापार मंडल और जाट सभा, राज्य कर्मचारी महासंघ, राष्ट्रीय ब्राह्मण युवजन सभा के कई लोग पहुंचे। ऐसे लोगों की संख्या वकीलों के मुकाबले दो गुना थी। संगठनों के पदाधिकारियों का कहना था कि ये आयोजन वकीलों द्वारा किया गया था। तो ऐसे में वकीलों की पूरी संख्या पहुंचनी काफी जरूरी थी। बाकी जिलों के ना आते, लेकिन मेरठ के वकीलों की पूरी संख्या पहुंचनी काफी जरूरी थी।

आपसी मन मुटाव बनी वजह

इस महापंचायत के फ्लॉप होने की सबसे बड़ी वजह वकीलों का आपसी मनमुटाव सबसे बड़ा कारण है। ये मनमुटाव दो जिलों के बारों में नहीं बल्कि संघर्ष समिति के मेंबर्स और पूर्व मेंबर्स में ज्यादा है। जब पूर्व मेंबर्स कोई सुझाव देते हैं तो उन्हें पूरी तरह से दरकिनार कर दिया जाता है। किसी भी महत्वपूर्ण मुद्दे पर पूर्व मेंबर्स से कोई राय मीटिंग में शामिल नहीं किया जाता है। अगर बुलाते भी हैं तो सिर्फ खाली सीटों को भरने के लिए ही बुलाया जाता है। तो वकीलों एक पूरा खेमा संघर्ष समिति के पूरी तरह से खिलाफ है। इससे अलग दूसरे जिलों के बारों को भी इस संघर्ष समिति से कई तरह की प्रॉब्लम हैं। जो अक्सर मीटिंग में उठाई जाती हैं। लेकिन उनको दूर करने के कोई कदम नहीं उठाए जाते हैं। इसलिए भी बाकी बारों के वकील भी काफी नाराज हैं।

नहीं है कोई प्रॉपर लीडर

वहीं वेस्ट यूपी में हाईकोर्ट बेंच के मुद्दे को चलाने वाले लीडर्स की भी काफी कमी है। मौजूदा समय में जो आंदोलन को रन कर रहे हैं वो काफी उम्रदराज हो चुके हैं। साथ ही वो लोग यूथ को मौका देने से काफी हिचकिचा रहे हैं। पुराने वकीलों और नेताओं की मानें तो आज के वकीलों में काफी एग्रेशन हैं। वो न तो किसी की सुनते हैं और न ही वो किसी को आंदोलन को ठीक से चलाना जानते हैं। न ही वो सीनियर्स से कुछ सीखने की लालसा रखते हैं। ऐसे में उन्हें इतनी बड़ी जिम्मेदारी देना कहां तक उचित है।

प्रोफेशनल्स की हमेशा से ही यही समस्या रही है। इसमें खास बात ये रही कि वकील अपनी बात को लेकर ओपन फोरम में आए। ये बात ठीक हो सकती है कि अगर वकीलों की संख्या ज्यादा होती दिल्ली में गूंज ज्यादा होती। साथ ही वेस्ट की राजनीतिक सक्रियता, ईस्ट के मुकाबले काफी कमजोर भी है।

- मेजर हिमांशु, आप नेता

जब आंदोलन को जनआंदोलन का रूप नहीं दिया जाएगा तब तक कुछ नहीं होगा। आज की पंचायत के बाद हम सभी वकीलों को एक बारा फिर से एनालिसिस की जरुरत है कि हम अपने आंदोलन को किस ओर ले जाना चाहते थे और किस ओर ले जा रहे हैं।

- रामकुमार शर्मा, पूर्व महामंत्री, मेरठ बार एसोसिएशन

इस महापंचायत में जितने लोगों को पहुंचना चाहिए था, वो नहीं बिल्कुल भी नहीं पहुंचे। ये संतोषजनक नहीं है। इसके कई कारण हैं। पब्लिक भी इंट्रस्ट नहीं ले रही है। अगर बात वकीलों की बात करें तो केंद्र और राज्य सरकारों के बयानों से काफी हताश हैं।

- उदयवीर सिंह राणा, पूर्व अध्यक्ष, वेस्ट यूपी हाईकोर्ट बेंच स्थापना केंद्रीय संघर्ष समिति