हम आपको बता दें कि शहर की एक भी बिल्डिंग में फायर सेफ्टी के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। फिर वो अस्पताल हो या स्कूल। या हो कोई होटल। खतरा हर जगह है। सब कुछ भगवान भरोसे चल रहा है।

सिटी की हर बिल्डिंग में आग का खतरा
शहर में खड़ी हो रही बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स, अस्पताल और कॉलेज लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करने पर तुले हैं। किसी भी बिल्डिंग में नेशनल बिल्डिंग कोड ऑफ इंडिया के नॉम्र्स फॉलो नहीं किए जा रहे हैं। यहां आग से बचाव के लिए पूरे इंस्टूमेंट भी नहीं हैं। बस सबकुछ चल रहा है तो जुगाड़ पर। जो यूटिलिटी सर्टिफिकेट लेकर उसको एनओसी बताकर काम चला रहे हैं, जिसको प्रशासन और संबंधित विभाग अनदेखा कर रहा है। लोगों के काम तो चल रहे हैं, लेकिन जिंदगी का भरोसा नहीं है। ऐसे में विक्टोरिया पार्क जैसा अग्निकांड कभी भी हो सकता है।

शहर में बिल्डिंग
देखा जाए तो शहर में छोटे-बड़े करीब 400 हॉस्पिटल हैं। करीब 129 बारात घर हैं। 150 एजूकेशनल बिल्डिंग हैं। पांच सौ से अधिक कॉमर्शियल बिल्डिंग, अपार्टमेंट और रेजीडेंशियल बिल्डिंग्स हैं। फायर ब्रिगेड के मुताबिक इनमें से किसी के पास भी फाइनल एनओसी नहीं है। क्योंकि ये नेशनल बिल्डिंग कोड ऑफ इंडिया में दिए रूल्स और रेगुलेशन का यूज नहीं कर रहे।

यूटिलिटी सर्टिफिकेट दिखाते हैं
चीफ फायर ऑफिसर बताते हैं कि अस्पतालों में स्मोक और फायर सेफ्टी मैनेजमेंट होना चाहिए। लेकिन कोई भी इसका पालन नहीं कर रहा। बड़ी बिल्डिंग जिसमें बाहर निकलने के लिए एक ही रास्ता हो उसमें 12 एयर चेंजर या फिर 6 एयर चेंजर होने चाहिए। जो एक मिनट में बारह व छह बार एयर बाहर फेंकेगा साथ ही फ्रेश एयर अंदर करेगा।

अधिकारियों पर सवाल
यूटिलिटी सर्टिफिकेट को ही एनओसी बताकर मिसगाइड किया जा रहा है। यह दशा शहर के नब्बे फीसदी अस्पतालों की है। यूटिलिटी सर्टिफिकेट केवल अस्पताल में लगे उपकरणों का होता है। बड़ा सवाल है कि जब तक फायर विभाग से फाइनल एनओसी नहीं मिलती तो अस्तपालों के रजिस्ट्रेशन कैसे हो गए।

मिनिमम रिक्वायरमेंट
नेशनल बिल्डिंग कोड ऑफ इंडिया के टेबल नंबर 23 में दी गई मिनिमम रिक्वायरमेंट फोर फायर फाइटिंग इंस्टालेशन भी लोग फॉलो नहीं कर रहे हैं। सुशीला जसवंत राय अस्तपाल में टेबल नंबर 23 के नॉम्र्स को फॉलो नहीं किया गया था, जिसमें साफ लिखा है कि इंस्टीट्यूशनल और अस्पताल की बिल्डिंग के सभी कमरों में ऑटोमैटिक स्प्रिंकलर सिस्टम होना चाहिए। अगर बिल्डिंग के किसी कमरे में तापमान 65 डिग्री से अधिक होता है तो इसमें लगा स्प्रिंकलर का शीशा ऑटोमैटिक टूट जाता है और फव्वारा चल जाता है। जिससे आग पर आसानी से काबू पाया जा सकता है।  
क्या है एनबीसीआई
एनबीसीआई (नेशनल बिल्डिंग कोड ऑफ इंडिया-2005)। इसमें दिए गए बिल्ंिडग कोड का पालन करना सभी के लिए जरूरी है। इसके अनुसार ही बिल्डिंग का निर्माण होता है। अगर कोई नेशनल बिल्डिंग कोड के नॉम्र्स को फॉलो नहीं करता उसको एनओसी नहीं दी जाती। यह हाइकोर्ट के सख्त निर्देश भी हैं। बिल्डिंग में लाइफ सेफ्टी के सभी नॉम्र्स एनबीसीआई के अंतर्गत हैं। जो सभी रेजिडेंशियल बड़ी बिल्डिंग, अस्पताल, कॉलेजेज, स्कूल और सरकारी विभागों की बिल्डिंग्स में यूज होते हैं। किसी जलसा या फिर बड़े आयोजन से पहले एनओसी लेना जरूरी होता है।
जुगाड़ से चल रहा सबकुछ
अस्पतालों की यह गत है कि कोई भी नेशनल बिल्डिंग कोड ऑफ इंडिया का पालन नहीं कर रहा है। यहां तक कि फैक्ट्रियों में भी नॉम्र्स फॉलो नही किए ज रहे हैं। अस्तपालों को सीएमओ की ओर से, कॉलेजों को यूनिवर्सिटीज और बोर्ड की ओर से आसानी से मान्यता मिल जाती है। जबकि नेशनल बिल्डिंग कोड के नॉम्र्स फॉलो किए बिना इनको मान्यता नहीं मिलनी चाहिए।


"हमारी तरफ से पिछले 14 महीने में किसी को भी फाइनल एनओसी नहीं दी गई है। जो भी नेशनल बिल्डिंग कोड को फॉलो नहीं करते, वे लोगों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं उनको नोटिस दिए जा रहे हैं."
- राकेश राय, चीफ फायर ऑफिसर