बॉडी का कोई भी ऑर्गन डोनेशन के बाद किसी दूसरे को नई जिंदगी दे सकता है। मगर हम इस बारे में सोचते ही नहीं। तो क्यों न इस खास मौके पर हम सब जागें और इस महादान में अपनी भागीदारी दर्ज कराएं।

परिवार में पहली पहल

गढ़ रोड पंचशील नगर निवासी सोहन लाल हम सबके लिए एक मिसाल हैं। उन्होंने आंखें डोनेट की, किसी ऐसे शख्स के लिए जो देख नहीं सकता और सोहन लाल की आंखों ने उसे इस खूबसूरत दुनिया को देखने की कुव्वत बख्शी। साल 2009 में सोहन लाल का देहांत हुआ था। उनकी इच्छा थी कि वो अपने शरीर का कोई अंग दान करें। इसके लिए इन्होंने आवेदन भी किया। मौत के बाद उनकी पत्नी केला देवी ने आगे बढक़र पति की आंखें दान करने में सहायता की। इनके पोते नितिन बताते हैं कि जब दादा जी की डेथ हुई तो हमें इस बात का ध्यान ही नहीं रहा। जब ध्यान आया तो हमारे दु:ख में शामिल होने आए कई लोगों ने इस बात का विरोध किया मगर हमारी दादी ने आगे बढक़र दादा जी की इस इच्छा को पूरा किया। आज हमें संतोष है कि उनकी आंखों ने किसी इंसान की मदद की है।

कर दी बेटे की आंखें डोनेट

दिल्ली रोड पर कृषि परिसर में रहने वाले ओमपाल सिंह भी ऐसा ही एक नाम है जिसने इस महादान के लिए सहमति दी। अक्टूबर 2011 को ओमपाल सिंह और शांति देवी के 19 वर्षीय बेटे अमरीश का बीमारी के चलते निधन हो गया। ओमपाल सिंह ने इस पहाड़ जैसे गम से जूझते हुए अपने बेटे की आंखें दान करने की पहल की। ओमपाल सिंह बताते हैं मेरे दो बेटे और तीन बेटियां हैं। बीमारी की वजह से बेटे की मौत हुई तो हमारे परिवार को भारी धक्का लगा क्योंकि बुखार जैसी मामूली बीमारी से मेरा 19 साल का बेटा हमें छोडक़र चला गया। मैं डेरा सच्चा सौदा से जुड़ा हूं और तब मुझे लगा कि मेरा बेटा तो अब इस दुनिया में नहीं है मगर उसकी आंखें इस दुनिया में जिंदा रह सकती हैं। मेरे हिसाब से इससे अच्छी मानव भलाई नहीं हो सकती। हमें अपने बेटे को खो देने का दु:ख हमेशा रहेगा मगर ये सोच कर खुशी होती है कि हमारे बेटे का जीवन व्यर्थ नहीं गया।

किस भ्रम में जी रहे हैं हम

बॉडी डोनेट करना या बॉडी का कोई भी ऑर्गन डोनेट करना अक्सर लोगों को रास नहीं आता। इसके पीछे जो सोच और मान्यता लाद दी गई है वो भी बड़ी विचित्र है। इसमें कितना सच है ये तो कोई नहीं जानता मगर इस भ्रम में हम जैसे लाखों लोग जी रहे हैं। अगर परिवार का कोई व्यक्ति अपनी बॉडी या ऑर्गन डोनेट करने की इच्छा जाहिर करता है तो उसे रोका जाता है। अगर वो आगे बढक़र बॉडी डोनेशन के लिए रजिस्ट्रेशन कराता है तो उसकी मौत के बाद परिवार उस जिम्मेदारी को उठाता ही नहीं है। बहुत सारे लोग ये मानते हैं कि अगर बॉडी का कोई भी ऑर्गन डोनेट कर दिया जाता है तो अगले जन्म में उस व्यक्ति को शरीर रूप में वहीं चीज नहीं मिलती। अगले जनम में आंखें, दिल, फेफड़े और किडनी जैसी चीजों को खो देने का वहम लोगों को बॉडी डोनेशन के लिए आगे नहीं आने देता।