मेरठ (ब्यूरो)। वैसे तो राष्ट्रीय वन नीति के तहत 33 फीसदी हिस्सा हरा-भरा होना चाहिए। लेकिन यह आंकड़ा मेरठ के लिए नहीं है। मेरठ में सिर्फ 2.67 फीसदी भू-भाग ही वनाच्छादित है। ऐसा नहीं है कि हरियाली बचाने के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए। हर साल पौधरोपण अभियान चलाया जाता है। बड़ी बड़ी बातें होती हैं, लेकिन सच यही है कि देखरेख के अभाव में या तो पौधे सूख जाते हैं, या फिर वे जानवरों का चारा बन जाते हैं। सच कहें तो पौधरोपण अभियान एक फरेब के अलावा कुछ नहीं है। पौधरोपण अभियान की इसी सच्चाई को टटोलने के लिए दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने सात दिवसीय 'पौधारोपण एक फरेब' अभियान की शुरूआत की है। इसके तहत सरकारी विभागों और निजी संस्थाओं की ओर से रोपे गए पौधों की हालत टटोली जाएगी। साथ ही हरियाली की वास्तविक स्थिति सच्चाई जानेंगे।

तीन फीसदी भी है वन क्षेत्र
गौरतलब है कि फारेस्ट सर्वे आफ इंडिया (एफएसआई) ने इंडिया स्टेट आफ फारेस्ट रिपोर्ट-2021 की रिपोर्ट तैयार की थी। इसके मुताबिक मेरठ के कुल भू-भाग का 2.67 प्रतिशत हिस्सा ही वनाच्छादित है। जबकि राष्ट्रीय वन नीति में कुल भौगोलिक क्षेत्र के 33 प्रतिशत हिस्से को हरा-भरा बनाने का लक्ष्य है। जिले के वन क्षेत्र में कोई परिवर्तन न होना यह दर्शाता है कि साल दर साल प्रशासन पौधारोपण का लक्ष्य तो बढ़ाता है, लेकिन उन पौधे के संरक्षण को लेकर सार्थक प्रयास नहीं हो रहे हैं।

इस साल 27 लाख पौधे रोपे
हां यह बात तो है कि जिले में ट्री कवर (पेड़ों का आवरण) की संख्या जरूर बढ़ी है। इस वनावरण को बढ़ाने के लिए हर साल बड़े स्तर पर पौधरोपण होता है। इस साल 2023 में भी वन विभाग के अलावा ग्राम्य विकास, आवास विकास, बिजली विभाग, परिवहन विभाग, पंचायती राज, कृषि समेत अन्य विभागों की मदद से करीब 27 लाख पौधे लगाए गए हैं।

सैटेलाइट से हो रही निगरानी
सच्चाई यह है कि पौधारोपण के दौरान बड़े-बड़े दावे होते हैं, लेकिन विभाग पौधे के रखरखाव को भूल जाता है। इस कारण से हर साल लाखों पौधे सूख जाते हैं। वैसे वन विभाग का दावा है कि पौधरोपण के लिए सैटेलाइट सर्वे करता है। यह दावा भी हवा हवाई साबित होता है। क्योंकि सैटेलाइट सर्वे में कई बार छोटे-छोटे ब्लाकों में लगे पेड़ या हरियाली नजर नहीं आ पाती। इसी तरह हाल ही में लगे पौधे और छोटे-छोटे पौधे भी कई बार नहीं प्रदर्शित हो पाते। इसके कारण सर्वे में एकदम सटीक डाटा नहीं आ पता।

पौधारोपण के बाद भी संबंधित विभाग को निगरानी करने के आदेश दिए गए हैं। जहां तक हो सके पौधों के लिए अधिक से अधिक बचाव का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि कुछ जगहों पर लापरवाही के कारण पौधे खराब हो जाते हैं।
राजेश कुमार, डीएफओ मेरठ