स्टेडियम में विभिन्न खेलों के लिए सैकड़ों खिलाड़ी रोज सुबह-शाम पसीना बहाकर इस चाह में प्रैक्टिस करते हैं कि एक दिन वो भी देश के लिए खेलेंगे, लेकिन आईओसी द्वारा भारतीय ओलंपिक संघ के निलंबन के बाद खिलाडिय़ों को अपना भविष्य अंधकारमय लग रहा है। सवाल है कि आखिर ये खिलाड़ी किस लिए पसीना बहा रहे हैं। किस ऐम को लेकर ये मैदान में घंटों प्रैक्टिस कर रहे हैं।

क्यों हुआ निलंबन

दरअसल, नवबंर 2012 में हुए भारतीय ओलंपिक संघ के चुनावों में जीते पदाधिकारियों को इंटरनेशनल ओलंपिक समिति ने भ्रष्टाचारी बताते हुए इन्हें संघ से हटाने का निर्देश दिया था। तमाम नोटिसों के बाद भी ओईओए ने ऐसा नहीं किया। ऐसे में आईओसी ने आईओए को निलंबित कर दिया। हाल ही में हुई आईओसी की मीटिंग में कुछ हल निकलने की उम्मीद थी, लेकिन बावजूद इसके आईओसी अपने फैसले पर अडिग रहा है।

खिलाडिय़ों का नुकसान

इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी ने भारतीय ओलंपिक संघ को निलंबित कर दिया है। ऐसे में भारतीय खिलाड़ी किसी भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर का टूर्नामेंट खेलते हैं तो वो ओपनली खेलते हैं। उनके साथ भारत का नाम नहीं जुड़ता। अगर मेडल जीतते हैं तो पॉडियम पर चढ़ते वक्त न तो तिरंगा ऊपर लहराता है और न ही नेशनल एंथम बजता है। ऐसा तब तक जारी रहेगा जब तक निलंबन खत्म नहीं हो जाता।

हर कोई वाकिफ नहीं

दरअसल, स्टेडियम में बैडमिंटन, जूडो, बॉक्सिंग, कुश्ती, एथलेटिक्स, वुशू, शूटिंग, तीरंदाजी में सैकड़ों खिलाड़ी प्रैक्टिस करते हैं। इनमें से कई ऐसे भी हैं जो एक दिन देश को मेडल दिलाने का सपना लेकर प्रैक्टिस तो कर रहे हैं, लेकिन उन्हें आईओए के निलंबन की खबर तक नहीं है। ऐसे में इन्हें नहीं पता इस निलंबन का मतलब क्या है?

यहां नहीं जुड़ा नाम

भारत निलंबन के बाद से काफी अंतर्राष्ट्रीय मैचों भाग ले चुका है। जिसमें एशियन चैंपियनशिप में भारतीय मुक्केबाजों का मेडल जीतना सबसे बड़ी उपलब्धि थी, लेकिन इस चैंपियनशिप में ये खिलाड़ी भारत के झंडे के नीचे नहीं खेले। वहीं वल्र्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप, वल्र्ड जूनियर कुश्ती चैंपियनशिप, शूटिंग वल्र्ड कप में भी भारतीय खिलाड़ी ओपनली खेले।

'इसमें खिलाडिय़ों का भला क्या दोष है। खिलाड़ी तो देश को मेडल जीताने का सपना लेकर मैदान में पहुंचता है। लेकिन जब देश से उसका नाम ही नहीं जुड़ेगा तो मेडल किस काम का?'

-ज्ञानेन्द्र सिंह, हॉकी कोच

'खिलाडिय़ों के लिए परेशानी तो है ही, तिरंगे से खिलाडिय़ों के जज्बात जुड़े होते हैं। ऐसे में तिरंगे से दूरी तो दुख देती है। '

-अभिषेक कुमार, बॉक्सिंग कोच

'खिलाड़ी और कोच मेडल के लिए पूरी तरह से मेहनत करते हैं, लेकिन संघों के आगे किसकी चलती है। आखिर आईओसी क्या गलत कह रहा है?'

-गौरव त्यागी, एथलेटिक्स कोच, विक्टोरिया पार्क एकेडमी

'खिलाडिय़ों के साथ ये पूरी तरह से ज्यादती है। इससे भारतीय खेल को नुकसान हो रहा है। खिलाडिय़ों के जज्बात टूट रहे हैं.'

-जबर सिंह सोम, कुश्ती कोच

'ये तो गंभीर मामला है। ऐसे में खिलाडिय़ों को काफी नुकसान पहुंच रहा है। इसका निपटारा जल्द होना चाहिए.'

गरिमा, जूडो खिलाड़ी

'खिलाडिय़ों का मोराल डाउन हो रहा है। आखिर क्यों खिलाडिय़ों के साथ ऐसा हो रहा है। '

प्रियंका, एथलेटिक्स

'खिलाड़ी खेलें तो किसके लिए खेले। इसमें देश की बेइज्जती भी हो रही है। संघों का हाल बहुत बुरा है। '

अभिनव चौधरी, शूटिंग