- दस साल की आरुषि शर्मा ने खेल से लेकर पढ़ाई तक में गाड़े झंडे

- एक टांग न होने पर क्रिकेट खेलने का जुनून

Meerut : शहर में ऐसे कई हुनरबाज हैं जो दिव्यांग होते हुए भी अपनी उम्र, कद को पीछे छोड़ते हुए सिर्फ अपने हौसले से एक नया मुकाम हासिल किया। फिर बात करें 10 साल की आरुषि शर्मा की या शावेज और सुनील की। उन्होंने अपने हौसले और कठिन परिश्रम से अपने लिए एक नई जगह बनाई है। जो दूसरों को प्रेरणा देगी। आइए आपको भी बताते हैं इनके बारे में

पढ़ाई के साथ खेल में भी गाड़ा झंडा

आरुषि शर्मा महज दस साल की है। न तो सुन सकती है और न ही बोल सकती है, लेकिन उसकी उम्र और कमी कामयाबी के आगे कभी आड़े नहीं आई। हम आरुषि को एक शानदार बैडमिंटन प्लेयर कहें, या फिर चेस प्लेयर या फिर कमाल की स्वीमर। बात की पढ़ाई की करें तो 2014 में इंग्लिश ओलंपियाड, मैथ ओलंपियाड और साइंस ओलंपियाड में सेकंड रैंक हासिल की। 2015 में सेकंड डीफ बैडमिंटन चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल हासिल किया। फिर जनवरी में 20वां नेशनल गेम्स ऑफ द डीफ 2016 में बैडमिंटन डबल में थर्ड पोजिशन हासिल की थी। वहीं बात चेस की करें तो 11वें यूपी चेस चैंपियपशिप ऑफ द डीफ 2015 में गोल्ड मेडल जीता था।

हौसलों से दे रहे संदेश

शावेज अगर बल्ले का उस्ताद हैं तो सुनील बल्ले और गेंद दोनों से ही कमाल दिखाता है। जीवन संदेश ट्रस्ट की हैंडीकैप क्रिकेट टीम की ओर से खेलते हैं। शावेज की एक टांग नहीं है। 50 फीसदी हैंडीकैप हैं। ढिबाई नगर का रहने वाला शावेज पहले दिल्ली की टीम से खेलता था। पांच साल पहले प्लास्टिक टांग लगाकर खेल रहे शावेज का कहना है कि प्रदेश और केंद्र सरकार को दिव्यांग क्रिकेट को बढ़ावा देने के लिए आगे आना होगा। जिला स्तर पर एसोसिएशन को एफिलिएशन देना होगा। ऐसा ही कुछ सुनील का भी कहना है। किठौर निवासी सुनील भी पिछले पांच साल से क्रिकेट खेल रहा है। पैर से सुनील 40 फीसदी हैंडीकैप है। उनका कहना है कि दिव्यांग क्रिकेट में काफी कम सहुलियत मिल पाती है। खिलाडि़यों को आगे बढ़ाने के लिए सरकार को कई कदम उठाने होंगे।