मोरीपाड़ा की रामलीला

दरअसल, कोतवाली थाने के पीछे मोरीपाड़ा नाम का एक छोटा सा मोहल्ला है। यहां हर साल रामलीला का मंचन होता है। हम इसी का पता लगाने इस मोहल्ले में पहुंचे। संकरी गलियों से गुजरते हुए हम एक ऐसी जगह पहुंचे जहां एक बड़ा चौक था। यहां मोहल्ले के लोग मिलकर चौक की पूजा कर रहे थे। इसके बाद शुरू हुआ हथियारों का मंचन जहां 5 साल के बच्चे से लेकर 80 साल तक के बुजुर्ग लाठी, डंडे, आग, तलवारों से करतब दिखा रहे थे। ऐसा नजारा शायद ही कहीं किसी मोहल्ले में दिखता हो।

क्या है मान्यता

कभी अपने जमाने में यहां होने वाली रामलीला में हनुमान की भूमिका निभाने वाले दिनेश चंद बताते हैं कि यहां 1823 से रामलीला होती आई है। मोरीपाड़ा स्थित शुक्लों के चौक को सारे मोहल्ले वाले पूजते हैं, जिससे कोई बुरी बला यहां के लोगों पर न आ पाए। इस पूजन के बिना यहां का दशहरा और रामलीला अशुभ मानी जाती है। दिनेश बताते हैं कि यह मोहल्ला ऊंचाई पर बसा है। इसके चारों ओर खंदक है। ऊंचाई पर होने वाला पूरा एरिया कभी मंदोदरी का किला था।

यहां मनता है शोक

चूंकि रावण यहां के दामाद थे, तो दशहरे पर जश्न नहीं मनाया जाता है। रावण के देहांत पर यहां पर कच्चा खाना बनाया जाता है। घरों में काली दाल बनाई जाती है, जिसके बाद रामलीला होती है।

हजारों साल पुरानी मूर्ति

श्री बालरामलीला कमेटी मोरीपाड़ा समिति के सदस्यों ने बताया कि यहां मौजूद हरिद्वारी महादेव मंदिर में हजारों साल पुरानी विष्णु जी की मूर्ति है।

बचपन से मिलती कला

यहां रहने वाले लोग बचपन से ही अपने बच्चों को लाठी, डंडे, तलवार चलाना सीखाते हैं, जिसके बाद ये बच्चे बड़े होकर हथियारों का मंचन करते हैं। इसका मकसद यही रहता है कि सभी इन हथियारों को चलाना सीखकर अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा कर सकें। यही नहीं हर साल होने वाली एक दिन की रामलीला में अब मोहल्ले के लोग में से ही सनुज शर्मा रावण, दिनेश चंद हनुमान जी, देवेश राम का किरदार निभाते हैं। वैसे लोगों का कहना है कि रामलीला के समय पर ही ये किरदार बांट दिए जाते हैं।

"108 वर्ष से हमारे पूर्वज इस आयोजन को करते आए हैं, अब हम इस आयोजन की जिम्मेदारी निभा रहे हैं."

दिनेश चंद, निवासी मोरीपाड़ा

"हमें बचपन से ही हथियार चलाना सिखाया गया, जिससे हम अपनी सुरक्षा खुद कर सकें."

नवीन, निवासी मोरीपाड़ा

Story by Nikhil Sharma