तब और अब

जब ज्वाइंट फैमिली में सारे भाई एक साथ मिलकर रहते थे, तब घर में दादा-दादी की भूमिका टीम लीडर की हुआ करती थी। लेकिन फिर फैमिली सिस्टम में आए बदलाव के कारण सबके रोल बदलते चले गए। मेरठ कॉलेज की समाजशास्त्र विभाग की एचओडी संगीता गुप्ता कहती हैं कि लोग तेजी से ज्वाइंट फैमिली की तरफ लौट रहे हैं। लेकिन इस ज्वाइंट फैमिली में कई पीढिय़ां एक साथ नहीं रहतीं। सिर्फ हम दो हमारे दो और दो दादी-दादा। बढ़ते खर्च को देखते हुए हजबैंड वाइफ का जॉब करना मजबूरी हो गई है। ऐसे में दादा-दादी का रोल बढ़ जाता है। ग्रैंड पेरेंट्स बच्चों को सोशलाइजिंग बेहतर तरीके से सिखाते हैं और उनके पास समय भी ज्यादा होता। सबसे बड़ी बात ये कि दादा-दादी का प्रेम निस्वार्थ होता है। इसके अलावा घर में दादा-दादी के होने से सुरक्षा की भावना भी मन में रहती है।

Case - 1

कुमुद भूषण और भारत भूषण अपने छोटे बेटे हिमांशु के साथ रहते हैं। हिमांशु का अपना बिजनेस है और उनकी वाइफ पूजा टीचर हैं और मुरादाबाद पोस्टेड हैं। इनकी छह साल की बेटी है गौरिका। पूजा तो छुट्टी में ही घर आती हैं तो गौरिका की पूरी देखभाल कुमुद ही करती हैं। उसके रूटीन के बारे में बताते हुए कुमुद कहती हैं कि गौरिका सुबह 6-7 बजे तक उठ जाती है। उसे नहलाकर स्कूल के लिए तैयार करती हूं, नाश्ता कराती हूं। शाम को पढ़ती है और थोड़ी देर टीवी देखकर रात 9 बजे तक सो जाती है। गौरिका की हर आदत मुझे पता है। ये बहुत शैतान बच्ची नहीं है। आप सामान कहीं भी रख दें मगर वो उसे उठाकर खुद सही जगह पर रख देती है। कहीं पानी गिर जाए तो खुद उसे साफ करने लगती है। मुझे लगता है कि हमारी दूसरी लाइफ शुरू हो गई है। बेशक शारीरिक क्षमता कम हुई है मगर गौरिका के साथ खेलना और उसकी जिम्मेदारियां उठाना मुझे अच्छा लगता है।

Case - 2

विजय कुमार रस्तोगी और इंदू रस्तोगी अपने तीन बेटों के साथ ही रहते हैं। बड़े बेटे आलोक और उनकी पत्नी अंशु की डेढ़ साल की बेटी है अंशिका। दूसरे बेटे अनुराग और उनकी पत्नी सुविधा की साढ़े तीन साल की बेटी है आध्या और तीसरे बेटे अंकित की और उनकी पत्नी मनीषा की चार महीने की बेटी है गुनगुन। दोनों छोटी बहुएं हाउसवाइफ हैं, लेकिन बड़ी बहू अंशु दौराला में गवर्नमेंट टीचर हैं। ऐसे में इनकी बेटी की पूरी जिम्मेदार इनकी मदर इंदू ही उठाती हैं। अंशिका की आदतों के बारे में इंदू कहती हैं कि अंशिका दूध पीने में परेशान करती है। घर में तीन बच्चियां हैं तो मुझे तीनों के साथ खेलना और उनकी देखरेख करनी होती है। मैं नहीं चाहती मेरी पोतियों के लिए कोई मेड रखी जाए। इन बच्चियों की जिम्मेदारी उठाकर हमें ऐसा लगता है कि अभी हमें इनका भी भविष्य बनाना है। इन बच्चों के साथ खालीपन और बुजुर्गियत का अहसास ही नहीं होता।